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________________ हुए, भीड़ को विदा किया, वह दिखायी पड़ने लगेगा। एक दफा दिखायी पड़ जाए, फिर मैं तुमसे नहीं कहता कि भीड़ को छोड़ो, फिर मैं कहता हूं, उतर जाना संसार में। फिर तुम्हें सभी के भीतर वही दिखायी पड़ने लगेगा। फिर भीड़ उसी की भीड़ है। लेकिन अभी भीड़ उसी की नहीं है। अभी तो अपने भीतर भी उसे नहीं जाना, तो दूसरे के भीतर कैसे जानना हो सकता है ! 'तरु' का प्रश्न है । रोयें न अभी अहले-नजर हाल पर मेरे होना है अभी मुझको खराब और जियादा आवारा-ओ-मजनू ही पे मौकूफ नहीं कुछ मिलने हैं अभी मुझको खिताब और जियादा तो तरु से मैं कहता हूं, अभी घबड़ा मत, अभी तो और मुसीबतें आने को हैं । और कोई तुझसे सहानुभूति दिखायें तो उनसे कह देना रोयें न अभी अहले-नजर हाल पे मेरे होना है अभी मुझको खराब और जियादा आवारा-ओ-मजनू ही पे मौकूफ नहीं कुछ मिलने हैं अभी मुझको खिताब और जियादा लेकिन मजनू हुए बिना कौन लैला को पा सका ! और मजनू हुए बिना कोई परमात्मा को कैसे पा सकता है! आवारा हुए बिना! आवारा का अर्थ है जिसका अब कुछ भी नहीं; रिक्त, खाली, अकेले । ऐसा हुए बिना कौन उसे निमंत्रण दे सका ! जीसस निरंतर कहते थे कि कोई गड़रिया अपनी भेड़ों को | लेकर आता । सांझ का अंधेरा घिरने लगा, सूरज ढल गया, अचानक देखता कि एक भेड़ खो गयी। तो सभी भेड़ों को स अंधेरी रात में किसी वृक्ष के तले छोड़कर, उस भेड़ को खोजने निकल जाता है जो खो गयी। मिले हुओं को छोड़कर उसे खोजने निकल जाता जो खो गयी। अंधेरी रात में पुकारता, टेरता, और जब वह मिल जाती, तो पता है क्या करता? उसे कंधे पर रख लौटता। खो गये को कंधे पर रखकर लौटता है । और जीसस कहते थे, मैं भी ऐसा ही गड़रिया हूं। अगर हम सच में ही रो उठें, तो उसके हाथ तुम्हारे आंसू तक पहुंच ही जाएंगे, पोंछ देंगे तुम्हारे आंसू। अगर हम सच ही पीड़ा से भर जाएं, तो वह दौड़ा चला आयेगा । हम अगर भटक ही जाएं उसको खोजते खोजते, तो आयेगा जरूर, और कंधे पर Jain Education International 2010_03 जीवन तैयारी है, मृत्यु परीक्षा है रखकर ले जाएगा । उसे खोजना कोई आदमी का ही अकेले कृत्य थोड़े ही है। उसकी भी कुछ जिम्मेवारी है। दोतरफा जिम्मेवारी है। हम उसे खोजें, वह हमें खोजे। और ऐसा ही चल रहा है । परमात्मा तो हमें खोज ही रहा है। जिस दिन हम खोजने लगते हैं, उसी दिन हममें और उसमें तालमेल हो जाता है। आखिरी प्रश्नः भगवान श्री, तेरी रज़ा पूरी हो ! चैतन्य भारती ने पूछा है। 'पूछना' कहना ठीक नहीं, कहा है । 'तेरी रज़ा पूरी हो ।' यही प्रार्थना का मूलमंत्र है। इसमें ही पग जाओ पूरे-पूरे, तो कुछ और करने को नहीं है ! जीसस को सूली हुई, आखिरी क्षण उन्होंने आकाश की तरफ मुँह उठाकर कहा कि हे परमात्मा, यह क्या दिखा रहा है ! एक संदेह उठ आया होगा कि मैं तेरे लिए जीआ, तेरी प्रार्थना में जी, तेरी पूजा में जीआ, तेरे नाम को फैलाने के लिए जीआ और यह तू मुझे क्या दिखा रहा है! एक शिकायत आ गयी होगी – हलकी-सी बदली, छोटी-सी बदली जीसस की छाती पर तैर गयी । एक क्षण को सूरज ढक गया होगा। लेकिन जीसस तत्क्षण पहचान लिये कि चूक हो गयी, भूल हो गयी । तत्क्षण कहा, क्षमा कर, यह मैंने क्या कहा ! तेरी रज़ा पूरी हो ! तू जो दिखा रहा है, वही ठीक है। तेरी रज़ा से ऊपर मेरी रज़ा नहीं है। तेरी इच्छा से ऊपर मेरी इच्छा नहीं है। तू जो चाहता है, वही मैं चाहूं, बस इतनी ही मेरी इच्छा है। यह मैंने कैसे कहा ! आखिरी क्षण ! बिलकुल स्वाभाविक है। बड़ी पीड़ा जीसस को दी गयी । सूली पर लटकाया गया । स्वाभाविक है, मानवीय । इस बात से सिद्ध होता है कि जीसस परमात्मा के बेटे तो थे ही, आदमी के बेटे भी थे। इससे कुछ और सिद्ध नहीं होता। इससे सिर्फ आदमियत सिद्ध होती है। और जीसस ने बहुत बार बाइबिल में जगह-जगह कहा, कहीं वह कहते हैं मैं आदमी का बेटा हूं, कहीं कहते हैं परमात्मा का बेटा हूं। वह दोनों हैं। सभी दोनों हैं। उन्हें याद आ गयी, सभी को याद नहीं आयी है। तो आदमी का बेटा बोला, यह क्या दिखा रहा है मुझे ! लेकिन तभी उन्हें स्मरण आ गया होगा कि अरे ! मैं आदमी का बेटा ही For Private & Personal Use Only 275 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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