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जिन सूत्र भाग : 2
पाने की तैयारी समझो। जरा-सी दृष्टि बदलने की बात है, जरा | मिटते हुओं को देखकर क्यों रो न दे 'मज़ाज़' दृष्टिकोण बदलने की बात है और सब अर्थ और हो जाता है। आखिर किसी के हम भी मिटाये हुए तो हैं अकेलापन अकेलापन मालूम होता है अगर उन लोगों का सीने में उनके ज़ल्वे छुपाये हुए तो हैं खयाल करो, जिनने कल तक घेरा था और अब वे दूर हटते चले | हम अपने दिल को तूर बनाये हुए तो हैं गये हैं। स्वभावतः अगर पति ध्यान करेगा, पत्नी थोड़ी दूर होने बस इतना ही खयाल रहे कि रोशनी जलती रहे। दिल का दीया लगेगी। पत्नी ध्यान करेगी, पति थोड़ा दूर होने लगेगा। जलता रहे। भीतर होश बना रहे। संसार तो छूटेगा, छूटना ही घर-द्वार, बच्चे, अपने, दूर होने लगेंगे। ऐसा बाहर से दूर हों है। लाख उपाय करो, पकड़कर रखा जा सकता नहीं। कोई नहीं ऐसा जरूरी नहीं, लेकिन भीतर। भीतर कोई सरकने लगेगा पार, रख सका, तुम भी न रख सकोगे। कोई अपवाद नहीं है। गहरे में जाने लगेगा। बाहर से आंख झपकने लगेगी, भीतर | जो कल छूटना ही है, उसे अपने हाथ से छोड़ देना कला है। आंख खुलने लगेगी।
शान है उसमें। गरिमा है, गौरव है। यही तो संन्यासी का गौरव रोज ऐसा होता है।
है। संन्यासी का गौरव क्या है? यही कि संसारी को जबर्दस्ती रात तुम सोते हो, तब तुम्हें पत्नी की याद रह जाती है? पति | छुड़ाया जाता; संन्यासी खुद ही कह देता है कि ठीक है, जो की याद रह जाती है? बेटे-बेटी की याद रह जाती है? छूटना है, छूट गया। संसारी बड़ी पीड़ा से छोड़ता है, रो-रोकर मित्र-प्रियजन की याद रह जाती है? कुछ भी नहीं। आंख बंद छोड़ता है, दीन होकर छोड़ता है। लगता है जैसे लूटा जा रहा है। हुई, संसार गया। तुम अपने भीतर डूबे। ध्यान में तो यह घटना | संन्यासी यह देखकर कि यहां तो सभी लुट जाते हैं, खुद खड़ा
और भी गहरी घटेगी। तो अकेलापन आयेगा। अगर तुमने होकर लट जाता है। कहता है, ठीक है। पीड़ा होगी, भीड़ विदा बाहर पर नजर रखी, तो यह लगेगा अकेलापन; अगर भीतर पर होगी, अकेलापन आयेगा, उसी अकेलेपन की राह से परमात्मा नजर रखी तो यह लगेगा एकांत। एकांत और अकेलेपन में बड़ा | आयेगा। अकेलापन तो सेतु है उसके आने के लिए; हमने पुल फर्क है। भाषाकोश में कोई फर्क नहीं है। भाषाकोश में तो दोनों बनाया। इसे इस तरह देखोगे, तो इस पीड़ा में भी सुख होगा। का अर्थ एक ही लिखा है। जीवन के कोश में बड़ा फर्क है। जब तुम कुछ निर्माण कर रहे होते हो, तो माथे से पसीना बहता
एकांत का अर्थ तो बड़ा आनंदपूर्ण है। अकेलेपन का बड़ा | रहे, तो भी सुख होता है। क्योंकि तुम जानते हो, यह तो श्रम है। दुखपूर्ण है। तुम गलत व्याख्या मत करो। इसे अकेलापन मत और इस श्रम के पीछे फल है। यह तो श्रम है, सृजन है। इसके कहो, इसे कहो एकांत। इसे कहो शुद्ध अपना होना। इसे कहो पीछे अहोभाव चला आ रहा है। इसके पीछे उपलब्धि है। तैयारी। प्रभु के पास जा रहे हैं, तो भीड़ लेकर तो कोई कभी गया | इस एकांत से ही परमात्मा तुम्हारे पास आयेगा। जिस दिन तुम नहीं। एकाकी। अकेले ही जाना पड़ता है। उस मंदिर में दो तो मौन हो जाओगे, उस दिन वह बोलेगा। जिस दिन तुम अकेले हो कभी साथ प्रविष्ट हुए नहीं। एक ही प्रविष्ट होता है। तो इसे जाओगे, उसी दिन उसके हाथ तुम्हारे हाथ में आ जाते हैं। वह तैयारी समझो। और जितना एकांत बढ़ने लगेगा उतना जानना कोई दूर थोड़े ही है। पास ही है, लेकिन तुम भीड़ में इतने उलझे कि प्रभु पास आ रहा है, संसार दूर हो रहा है। एक क्रांति घट रही हो कि उसे देख नहीं पाते। है। पहले-पहले तो यह मिटने-जैसा ही लगेगा। इसीलिए तो खुद दिल में रह के आंख से परदा करे कोई इसको मैं मृत्यु कहता हूं।
हां, लुत्फ जब है पा कर भी ढूंढा करे कोई मिटते हुओं को देखकर क्यों रो न दे ‘मज़ाज़'
ऐसा ही लुत्फ चल रहा है। पाया ही हुआ है, उसी को ढूंढ रहे | आखिर किसी के हम भी मिटाये हुए तो हैं
हैं। उसे कभी खोया नहीं है, लेकिन भीड़ में आंखें उलझ गयी जो मेरे पास आ रहे हैं, वह समझेंगे। वह इस बात को हैं। भीड़ में आंखें उलझने के कारण वह तुम्हारे पास ही खड़ा है, समझेंगे। जब वह दूसरे को मिटते, एकांत की पीड़ा में उतरते कंधे से कंधा सटाये, तुम्हारे हृदय में धड़क रहा है, तुम्हारी सांसों देखेंगे, तो वह समझेंगे।
में चल रहा है, बह रहा है, दिखायी नहीं पड़ता। इधर से अकेले
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