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गुरु है मन का मीत
पात-पत्ते, सब धूल-धवांस, सब गिर गयी, कुछ भी न बचा, विवाह करे। अकेला मैं ही क्यों दुख पाऊं इसकी वजह से? तुम ही बचे तुम्हारी निपट शुद्धि में, तुम्हारा एकांत बचा, तुम्हारा | कोई और भी तो चखे दुख! और फिर एक और कारण है। मर कैवल्य बचा, बस तुम्हारी भीतर की रोशनी बची, शून्य में जाने के बाद कम से कम एक आदमी तो दुखी रहेगा, कि मुल्ल जलता हुआ प्राण का दीया बचा, सब हट गया, वही मोक्ष है। न मरता तो अच्छा था। मोक्ष कोई भौगोलिक अवस्था नहीं। मोक्ष तुम्हारी शुद्धतम लोग कहते कुछ, भीतर कुछ और होता। बोलते कुछ, भाव अवस्था है। कहो परमात्मा या मोक्ष, एक ही बात है। कुछ और होते। पर्त दर पर्त आदमी में झूठ है। बाहर फिर हम 'अतः सतत ज्ञानाभ्यास करना चाहिए।' महावीर के इस वही देखते चले जाते हैं जो पर्त दर पर्त हममें फैला है। तुम दूसरे वचन को जैन-मुनियों ने समझा कि सतत शास्त्र पढ़ते रहना में वही देख लेते हो, जैसी तुम्हारी देखने की आदत हो गयी है। चाहिए। करते ही यही बेचारे! शास्त्र-अभ्यास तो खूब हो जाता चोर चोर को ही देखता रहता है। चोर को साधु दिखायी पड़ता ही है, लेकिन न तो उससे ध्यान सधता है-वस्तुतः नहीं, दिखायी पड़ ही नहीं सकता। वह मान ही नहीं सकता कि शास्त्र-अभ्यास के कारण ध्यान असंभव हो जाता है—न उससे कोई साधु हो सकता है। जब वह खुद ही नहीं हो सका साधु, तो कर्मों की निर्जरा होती है, न मोक्ष मिलता है। फिर भी-न पौधा कौन हो सकता है! दिखायी पड़ता, न फल लगते, न फूल आते-फिर भी वे बैठे महावीर कहते हैं ज्ञान के अभ्यास का अर्थ है, तथ्य को देखने हैं। शास्त्र का अध्ययन किये जा रहे हैं।
की कला। अपने को हटाना, बीच में मत डालना। व्यवधान म ज्ञान-अभ्यास का महावीर का अर्थ है. तथ्य को तथ्य की तरह बनना. सब पर्दे हटा लेना और जैसा हो उसको वैसा ही देखना देखने का अनुशासन। जो जैसा है उसे वैसा ही देखने की | चाहे कोई भी कीमत देनी पड़े, चाहे कोई भी कीमत चुकानी पड़े। प्रक्रिया। इसे साधना होगा। क्योंकि जन्मों-जन्मों तक हमने शास्त्र-अभ्यासी तो केवल परंपरा के अंधे पूजक हैं। तथ्यों को झुठलाना सीखा है। हम कुछ का कुछ देख लेते हैं। लीक-लीक गाड़ी चले, लीकै चले कपूत हम देखते भी होते हैं, लेकिन वह नहीं दिखायी पड़ता जो है। लीक छोड़ि तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत
और वह दिखायी पड़ जाता है जो हम देखना चाहते हैं। हमारे | वह जो शास्त्र की लकीर पीटते रहते हैं, वह तो कपूत हैं। वह भीतर की तरंगें जगत के पर्दे पर छायाएं बनाती रहती हैं। तो कायर हैं। उनमें तो कोई बल नहीं।
मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन मेरे पास आया। उसने अपनी लीक छोड़ि तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत। वसीयत लिखी। वसीयत देखकर मैं चौंका। मैंने कहा, मल्ला, जो भी लीक को छोड़कर चल सकता है, जो पिटी-पिटायी बड़े उदार हो। क्योंकि वसीयत में उसने लिखा, कि मेरे मरने के बात को नहीं देखता, जो पिटे-पिटाये शब्दों को नहीं दोहराता, बाद में मेरी पत्नी को पचास हजार रुपये मिलें। लेकिन यदि वह जो पिटी-पिटायी धारणाओं में नहीं जीता, जो सब जाल को हटा विवाह करे, तो एक लाख रुपये मिलें। मैंने कहा, लोग तो लिख देता है और जीवन के तथ्य को देखता है और उस तथ्य के जाते हैं कि अगर पत्नी विवाह करे, तो एक पैसा न मिले। अगर अनुसार जीता है, वही बहादुर है, वही साहसी है, वही महावीर सदा मेरे नाम के लिए रोती रहे, तो सब मिल जाए। तुमने यह है। शायर, सिंह, सप्त। उसी के जीवन में काव्य का जन्म क्या किया? तुम बड़े उदार हो। कभी मैंने सोचा नहीं कि तुम होगा। उसी के जीवन में वीर्य का जन्म होगा। वही सपत है। इतने उदार होओगे। उसने कहा, आप गलत न समझें, मेरा | क्योंकि वही जीवन को धन्य कर पायेगा। वही भाग्यवान है। मतलब कुछ और ही है, लेकिन अब आपसे क्या छिपाना! क्या 'उन महाकुल वालों का तप भी शुद्ध नहीं है जो प्रव्रज्जा धारण मतलब है तेरा? तो उसने कहा, पहली तो बात यह है कि जो कर पूजा-सत्कार के लिए तप करते हैं। इसलिए कल्याणार्थी को मूर्ख-और केवल कोई मूर्ख ही उससे विवाह करेगा–विवाह | इस तरह तप करना चाहिए कि दूसरे लोगों को पता तक न चले। करेगा, उसके लिए खर्च-पानी के लिए कुछ जरूरत पड़ेगी, अपने तप की किसी के समक्ष प्रशंसा नहीं कर लेकिन उसमें भी मेरा रस नहीं। रस मेरा इसमें है कि कोई उससे | आदमी ऐसा उलटा है, बेबूझ है। उलटी खोपड़ी है आदमी
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