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________________ जिन सूत्र भाग: 2 पूरे करने हैं। वह कहता है, तुम तो परमात्मा हो ही। अगर धर्मगुरु के सामने, जो भी तुमने पाप किया हो उसे प्रगट कर भूल-चूक भी हुई है, तो परमात्मा से हुई है। और जो हो गया, हो देना। सरल मन से कह देना, यह भूल हो गयी है। यह स्वीकार गया। जो जा चुका, जा चुका। बीती को बिसार दो। जो घटा था करते ही कि मुझसे भूल हो गयी है, भूल से मुक्ति होनी शुरू हो वह तो ऐसा ही था जैसे पानी पर खींची लकीरें-अब कहीं भी जाती है। स्वीकार में मुक्ति है। और जैसे ही तुम कह आते हो नहीं हैं। अब तुम व्यर्थ परेशान मत होओ। | किसी को जो निंदा नहीं करेगा, जिसका तुम्हें भरोसा है कि जो गुरु का अगर सत्संग मिल जाए, तो कर्मों से ऐसे ही छुटकारा तुम्हारे संबंध में बुरी धारणा न बनायेगा, जिसका तुम्हें भरोसा है मिल जाता है जैसे सुबह जागकर सपनों से छुटकारा मिल जाता कि तुम इंचभर नीचे न गिरोगे उसकी नजर में, वस्तुतः तुम ऊपर है। अगर गुरु की मौजूदगी हो और फिर भी कर्मों से छुटकारा न उठोगे क्योंकि पाप की स्वीकृति, भूल की स्वीकृति पुण्यात्मा का मिले, तो समझना कि तुमने अपने को खोला नहीं। तुमने अपने कृत्य है, तो तुम हलके होकर लौटोगे।। को प्रगट नहीं किया। हिंदू गंगा में स्नान कर आते हैं। सोचते हैं, पाप का प्रक्षालन हो यह सूत्र अति क्रांतिकारी है। ईसाइयत ने जीसस के इसी सूत्र जाएगा। अगर भावपूर्वक किया हो, तो हो जाएगा। गंगा नहीं के आधार पर मेरी अपनी दृष्टि तो यही है कि जीसस ने अपना करती पाप का प्रक्षालन। गंगा क्या करेगी? तुम्हारा भाव करता उपदेश शुरू करने के पहले भारत में ही शिक्षा ली—इसीलिए है। अगर तुम यह भाव से गहरे भरे हो कि गंगा में स्नान कर यहूदी उन्हें कभी स्वीकार न कर पाये। क्योंकि वह कुछ लाते थे | आयेंगे तो जो-जो भूल-चूक की थी वह धुल जाएंगी, अगर जो बड़ा परदेशी था। उससे यहूदी-विचार का कोई तालमेल नहीं | तुम्हारा भाव यह प्रगाढ़ है, तो निश्चित ही गंगा में डुबकी लेते ही बैठता था। ईसाइयों के पास भी जीसस के तीस वर्ष के जीवन की तुम दूसरे हो जाओगे। क्योंकि गंगा के सामने तुमने स्वीकार कर कोई कथा नहीं है। आखिरी तीन वर्षभर की कथा है। बाकी तीस लिया–हो गयी थी भूलें, अब तू बहा दे मां, और क्षमा कर! तो वर्ष कहाँ बिताये, कैसे बिताये? किन गुरुओं के पास, किस संभव है कि तुम लौट आओ हलके होकर। ताजे होकर। जरूर सत्संग में, कहां जागा यह व्यक्ति, इसकी कोई कथा उनके पास नहीं है कि यह घटे, तुम पर निर्भर है। तुम कितने गहन भाव से, नहीं है। | कितनी गहरी श्रद्धा से, कितने संकल्प और समर्पण से झुके थे, इतना तो तय है कि जीसस अपने देश में नहीं थे। देश से तो। डुबकी लगायी थी, तुम्हारी श्रद्धा कितनी गहरी थी, उतना ही गंगा उन्हें जैसे ही वह पैदा हुए हट जाना पड़ा था, भाग जाना पड़ा था। असर कर पायेगी। सूत्र वही है। मां-बाप लेकर उन्हें भाग गये थे। फिर जीसस मिस्र में रहे, अब यह भी सोचने-जैसी बात है, किसी मनुष्य के सामने भारत में रहे, तिब्बत में रहे। संभावना तो यहां तक है कि वह अपने पाप को प्रगट करने में खतरा तो है ही। कौन जाने वह जापान तक पहुंचे। क्योंकि जापान में भी एक जगह है, जहां आदमी अभी उस जगह हो या न हो। संदेह तो रहेगा ही। यह अभी भी लोक-कथा प्रचलित है कि वहां जीसस का आगमन आदमी अभी ऐसी जगह न हो और तुम अपना पाप खोल दो, हुआ था। उन्होंने सारे पूरब में तलाश की।। और यह आदमी अभी उसी जगह हो जहां इसे अभी पाप में रस निश्चित ही जब जीसस भारत आये होंगे, तो महावीर की वाणी है, और यह कुतूहलवश तुम से पूछने लगे...। उस समय तक प्रज्वलित वाणी थी। पांच सौ वर्ष पहले ही फ्रायड ने एक जगह लिखा है कि मनोवैज्ञानिक तभी ठीक अर्थों महावीर विदा हुए थे। बुद्ध की वाणी अभी जीती-जागती थी। में मनोवैज्ञानिक हो पाता है जब उसकी क्यूरिआसिटी, उसकी अभी हवा में तरंग थी। फूल जा चुका था, लेकिन अभी हवा में कुतूहलता समाप्त हो जाती है। जब तक कुतूहल है, तब तक वह गंध नहीं चली गयी थी। गंध अभी मौजूद थी। निश्चित ही सहयोगी नहीं हो सकता। जीसस ने जो सूत्र पकड़ा, जिसको ईसाई कनफेशन कहते हैं, वह किसी ने आकर तुमसे कहा कि मैंने एक स्त्री के साथ व्यभिचार महावीर के इसी सूत्र से कहीं जुड़ा होना चाहिए। सिर्फ ईसाइयत किया है। पहली बात तुम्हारे मन में क्या उठती है? कतहल अकेला धर्म है जिसने कनफेशन को बहुत मूल्य दिया है। जाकर उठता है। तुम जानना चाहते हो कौन-सी स्त्री, किस की स्त्री, 246 Jair Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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