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________________ - गुरु है मन का मीत मैं क्रोध से भी भरता हूं, और जिससे तुम यह कह रहे हो अगर व्यक्ति है। वह यह मौका नहीं छोड़ेगा। तुमने पाप की बात उसकी आंखों में निंदा झलक जाए, तो समझ लेना यह आदमी | कही, तो उसकी आंख कहेगी, अच्छा, तो फिर एक पापी गरु नहीं है। यह आदमी अभी पार नहीं हआ। क्योंकि जो पार आया! तुम्हारे पाप को देखकर वह अपने को पुण्यात्मा समझने हो गया, उसकी आंखों में करुणा बेशर्त है। और अगर इस । लगेगा। तुम्हारे पाप के कारण वह अपने को बड़ा समझेगा, तुम्हें आदमी की आंखों में निंदा झलक जाए, तो फिर तुम कैसे इसके छोटा समझेगा। सामने अपने को खोल पाओगे? जिस आंख से तुम्हें पता चले कि तुम छोटे किये जा रहे हो, वह और अगर यह आदमी किसी भी तरह से तुम्हारे संबंध में | गुरु की आंख नहीं। अगर इस एक सूत्र को तुम ठीक से समझ निर्णय बनाने लगे, तुम्हारे किये, सोचे हुए कारणों से, तो फिर | लो तो गुरु खोजने में बड़ी आसानी हो जाएगी। तुम भटक न यहां तुम अपने को खोल न पाओगे। यहां खुलना संभव न | सकोगे। जो तुम्हें सर्वांगरूप से स्वीकार कर ले। तुम जैसे हो। होगा। यहां भी तुम बंद ही रह जाओगे। उसकी आंख ही तुम्हें | जो तुम्हें अन्यथा नहीं बनाना चाहता। जो यह भी नहीं कहता कि बंद कर देगी। उसके बैठने का ढंग ही तुम्हें बंद कर देगा। उसके तुम अच्छे बनो, क्योंकि अच्छे बनने की चेष्टा में तो तुम्हें बुरा देखने का ढंग ही तुम्हारे द्वार पर ताला जड़ देगा। तुम फिर खोल मान ही लिया। जो तुमसे यह भी नहीं कहता कि छोड़ो यह पाप, न पाओगे। पुण्य की कसम लो, क्योंकि जिसने पुण्य की कसम लेने के लिए इसे तुम गुरु की कसौटी समझो। गुरु खोजने के लिए यह एक तुमसे कहा उसने तुम्हारे पापी होने को स्वीकार कर लिया। जो बड़ा आसान उपाय है कि तुम अपने पापों की बात कहना, अपनी स्वीकार कर लिया गया, वह क्षमा नहीं होता। भूलों की बात कहना, अगर गुरु सच में जाग्रतपुरुष है, तो उसकी नहीं, जिसकी करुणा और जिसके प्रेम में तुम अपने को खोल करुणा तुम्हारी तरफ गहन होकर बहेगी। उसकी क्षमा बेशर्त है। सको, जैसे सुबह का सूरज निकलता है और कलियां गहरी श्रद्धा वह यह नहीं कहता कि तुमने क्या किया है, वह कहता है, तुम से खुल जाती हैं किरणों की चोट पड़ते ही। पता नहीं, खिलकर जो हो, वह परम हो, धन्य हो! क्या होगा? अनजान घटना है, कली कभी खिली नहीं है, सूरज इसे ऐसा समझो! तुम्हारी आत्मा तुम्हारे कृत्यों का जोड़ नहीं। ने द्वार पर दस्तक दी है, कली उस द्वार पर दस्तक देते मेहमान की तुम्हारी आत्मा तुम्हारे विचारों का जोड़ नहीं। तुम्हारी आत्मा बात सुनकर, पुकार सुनकर खुल जाती है। सूरज ने पुकारा है, तुमने जो किया है उससे बहुत बड़ी है। तुम्हारी आत्मा तुमने जो कली खुल जाती है, पंखुड़ियां खोल देती है, गंध को मुक्त कर सोचा है उससे बहुत बड़ी है। तुम्हारी आत्मा के संबंध में कोई देती है। उसी खुलने में कली फूल बन जाती है। तुम जब तक निर्णय तुम्हारे विचार और कृत्य से नहीं लिया जा सकता है। अपने को छिपाये हो, तुम्हें एक भी व्यक्ति ऐसा न मिला जिसके तुम्हारा विचार और तुम्हारा कृत्य तो बाहर की बातें हैं। तुम्हारी | सामने तुम अपने को पूरा खोल देते। यही महावीर की नग्नता का आत्मा तो भीतर है। तुम्हारी आत्मा का मूल्य निरपेक्ष है, सापेक्ष सूत्र है। दिगंबर होने का मौलिक अर्थ यही है। तुम्हें एक ऐसा नहीं है। वह किसी चीज से आंका नहीं जा सकता। तुम तुम होने व्यक्ति न मिला जिसके सामने तुम निपट नग्न हो जाते! तुम जैसे की वजह से मूल्यवान हो। तुम होने की वजह से मूल्यवान हो। | थे वैसे ही हो जाते! जिसकी मौजूदगी तुम्हारे लिए किसी तरह की तुम्हारा अस्तित्व बस काफी है। तुम परमात्मा हो। ऐसी जहां निंदा न थी, प्रशंसा न थी, अपमान न था। जिसकी मौजूदगी में किसी की आंख तुम पर पड़े और तुम्हारे भीतर के परमात्मा को | तुम्हें अन्यथा करने की कोई चेष्टा न थी। तुम जैसे थे, भले थे। जगाने लगे, तो ही जानना कि गुरु मिला। तुम्हें वैसा ही स्वीकार किया था। जहां निंदा हो, जहां तुम्हारे पापों के प्रति क्रोध पैदा हो, जहां अगर तुम्हें एक भी व्यक्ति ऐसा मिल जाए, तो उसी के पास तुम्हारे पापों में रस पैदा हो, क्योंकि निंदा रस है; और जो तुम्हारे तुम्हें पहली दफे अपनी आत्मा की खबर मिलेगी। क्योंकि उसी पाप में रस ले रहा है—निंदा करने का ही सही, बुरा कहने का ही के पास तुम नग्न, सहज, सरल हो पाओगे। वह तुम पर कोई सही, तुम्हें नीचा दिखाने का सही, वह अहंकार से भरा हुआ आग्रह नहीं रखता। वह यह कहता ही नहीं कि तुम्हें कोई आदर्श 245 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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