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________________ जिन सूत्र भाग: 2 तुम कभी चकित होओगे, तुम कोई एक शब्द ले लो, बिलकुल निष्पक्ष शब्दः गाय, घोड़ा, हाथी या कार या कुत्ता; और शांत बैठकर यह कोशिश करो कि अब कुत्ता शब्द के उठते ही तुम्हारे भीतर जो-जो शब्द उठते हैं उन्हें तुम लिखते जाओ। तुम चकित हो जाओगे। जिन शब्दों का कुत्ते से कोई संबंध नहीं है, जिन विचारों का कोई ज्ञात कारण नहीं मालूम होता कुत्ते से क्यों जुड़े होंगे, वे उठने शुरू हो जाते हैं। एक साधारण-सा शब्द कुत्ता तुम्हारे भीतर लहर पैदा करता है और उस लहर में बंधे हुए अचेतन से न-मालूम कितने वर्षों के या जन्मों के भाव और विचार चले आते हैं, किसी तरह बंधे। कुत्ता शब्द कहते ही शायद तुम्हें याद आ जाए अपना कोई मित्र, जिसके पास कुत्ता था। मित्र की याद आते ही आ जाए उसका मकान । मकान की याद आते ही तुम चल पड़े। कुत्ते से यात्रा शुरू हुई थी, तुम कहां पूरी करोगे, कहना कठिन है। इसको मनोवैज्ञानिक कहते हैं - 'फ्री एसोसिएशन ।' स्वतंत्र-साहचर्य का नियम। तुम्हारे भीतर सभी चीजें गुंथी पड़ी हैं। सभी तार उलझे हैं। एक तार खींचो, दूसरे तार खिंच आते हैं। लेकिन यही गुत्थी तो मनुष्य का रोग है। यही तो उसका शल्य है। इस गुत्थी को सुलझाना है। कहीं से भी शुरू करो। मनस्विद कहता है, तुम बोले जाओ । चिकित्सक सुनता रहता है। कुछ करता नहीं, कुछ बोलता नहीं, सिर्फ इतनी याद दिलाता रहता है कि हां, मैं यहां हूं। मैं सुन रहा हूं, ध्यानपूर्वक सुन रहा हूं। वह जितने ध्यानपूर्वक सुनता है, उतने ही तुम्हारे गहरे अचेतन से चीजों को निकलना आसान हो जाता है। इसीलिए तो हम किसी आदमी को खोजते हैं जो हमारी बात शांति से सुन ले । कितना दूभर हो गया है ऐसे आदमी का पाना, जो हमारी बात शांति से, ध्यानपूर्वक सुन ले । जब भी तुम्हें कोई ऐसा आदमी मिल जाता है जो घड़ीभर तुम्हारे दिल की बात सुन लेता है, तुम हलके हो जाते हो। कहां से आता है हलकापन ? कोई बात | पत्थर की तरह छाती पर पड़ी थी, किसी ने बांट ली। कुछ किसी | ने बोझ तुम्हारा उतार लिया। किसी ने सहारा दे दिया, तुम्हारे सिर पर जो पत्थर था उसे नीचे रख दिया। बात करके आदमी हलका है। मनस्विद इस सदी में जाकर इस सूत्र को पकड़ पाये। महावीर ने आज से ढाई हजार साल पहले कहा है। कहा है कि जब तक 244 Jain Education International 2010_03 तुम्हारे भीतर कुछ भी ऐसा पड़ा है जो तुम बताने में डरते हो, तब तक तुम बीमार रहोगे, तब तक कांटा छिदा रहेगा। तुम्हें नग्न होकर प्रगट हो जाना है। कहते हैं महावीर, कम से कम अपने गुरु के पास तो इतना करो। शायद संसार में तो बहुत मुश्किल होगी। वहां इतने समझदार व्यक्ति पाने कठिन होंगे, जो तुम्हारी भूलों को, चूकों को क्षमा कर सकें। वहां ऐसे व्यक्ति पाने कठिन होंगे, जो तुम्हें तुम्हारी बातों को सुनकर, तुम्हारे संबंध में कुछ निर्णय न बनाने लगें। तुम कहो कि मैंने चोरी की है, तो जो तुम्हें चोर न समझने लगें, ऐसे व्यक्ति पाने कठिन होंगे। तुम कहो कि मैंने पाप किया है, तो तुम्हें पापी समझकर निंदित न मान लें। इसीलिए तो आदमी डरा है। तुम किसी से कह नहीं सकते कि मैं झूठ बोला। लोग कहेंगे, झूठ बोले ! तुम्हारा भरोसा टूट जाएगा। तुम्हें जिंदगी में अड़चन होगी । तो झूठ को तुम छिपाते हो । पता भी चल जाए, तो तुम सिद्ध करने की कोशिश करते हो कि नहीं, मैं सच ही बोला। अगर पकड़ भी जाओ, तो तुम कहते हो भूल-चूक से हो गया होगा, मेरे बावजूद हो गया होगा, मैंने न था। पहले तो तुम छूटने की कोशिश करते हो कि किसी को पता न चल पाये। संसार में ऐसी आंखें खोजनी कठिन हैं, जो तुमने क्या किया क्या नहीं किया, क्या सोचा क्या नहीं सोचा, इसके बावजूद भी तुम्हारा मूल्य कम न करें। जो तुम्हारे अस्तित्व को बेशर्त स्वीकार करते हों। गुरु का यही अर्थ है, एक ऐसे आदमी को खोज लेना जो उन रास्तों से गुजरा है, जिन पर तुम अभी हो। एक ऐसे आदमी को खोज लेना जिसने भूलें की हैं, पाप किये हैं, चूकें की हैं और उनके पार हो गया। एक ऐसे आदमी को खोज लेना जो समझेगा तुम्हारी पीड़ा, क्योंकि इसी पीड़ा से वह भी गुजरा है। तो अगर तुम्हें कोई ऐसा गुरु मिल जाए जिसकी आंखों में तुम्हारी निंदा न हो, तो ही गुरु मिला। जहां निंदा हो, वहां तो समझना कि संसार ही जारी है। इसे खयाल में लेना। अगर तुम जाओ किसी मुनि, किसी साधु, किसी संन्यासी के पास और तुम कहो कि मैं बहुत बुरा आदमी हूं, और मेरे मन में चोरी के भाव उठते हैं, और कभी ऐसे सपने भी मैं देखता हूं कि पड़ोसी की पत्नी को ले भागा हूं, और कभी किसी की हत्या कर देने की भी वासना जग उठती है, कभी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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