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________________ वही सही। लेकिन अगर तुममें हिम्मत है और मेरे साथ आ सकते हो, तो आश्वासन है— आनंद भी मिल सकता है। अहोभाव भी हो सकता है। तुम धन्यभागी हो सकते हो। लेकिन निर्णय तो करना पड़े, कीमत तो चुकानी पड़े। यह निर्णय करना ही कीमत चुकानी है। नहीं तो सभी कोई आनंद को उपलब्ध हो जाएं। जो निर्णय करते हैं, वही हो पाते हैं। 'जिन-सूत्र पर प्रवचन अच्छा लगता है। पर भोग में भी रस बहुत है।' जिन सूत्र पर प्रवचन क्यों अच्छा लगता है ? प्रवचन के कारण ? तो जिन सूत्र से क्या लेना-देना ! जिन सूत्र के कारण ? तो प्रवचन से क्या लेना! जिन सूत्र के कारण अच्छा लगता है, तो उसका अर्थ हुआ कि तुम्हारे अहंकार को तृप्ति मिलती है कि अहो, धन्यभाग, जैन- कुल में पैदा हुआ ! ऐसी मूढ़ता सभी को सिखायी गयी है। हिंदू- कुल में पैदा हुए, धन्यभाग! भारत-भूमि में पैदा हुए, धन्यभाग ! जैसे और सब अभागे हैं दुनिया में। जैनों को तो सिखाया जाता है बचपन से कि तुम जैन- कुल में पैदा हुए, धन्यभागी । एक तो मनुष्य होना दुर्लभ, फिर जैन होना ! बिलकुल दुर्लभ ! जिन सूत्र पर प्रवचन अच्छा लगता है उसका कुल कारण इतना ही है कि तुम्हारे अहंकार को तृप्ति मिलती है, जब मैं कहता हूं महावीर ठीक, तुम्हें लगता है - बिलकुल ठीक; तो हम भी ठीक, तो मैं भी ठीक! जब मैं कहता हूं गीता ठीक, कृष्ण ठीक, हिंदू अकड़ जाता है, कहता है - बिलकुल ठीक। नहीं कि उसे मैं समझ में आ रहा हूं, कि कृष्ण समझ में आ रहे हैं, कि गीता समझ में आ रही है, उसे सिर्फ अहंकार में खुजलाहट आ रही है, खुरदुरी आ रही है । फुरफुरी आ रही है। वह इसका अहंकार मजा ले रहा है, वह कह रहा है - बिलकुल ठीक । फूल के कुप्पा हो जाता है। इसीलिए रस आ रहा होगा। यह रस नहीं है। बड़ा रुग्ण रस है। यह स्वस्थ नहीं है, यह बीमार है। यदि तुम मुझे सुनते हो, तो मैं कह रहा हूं उसकी फिकिर करो। तुम खूंटियों की फिकिर कर रहे हो। मैं क्या खूंटी पर टांग रहा हूं, उसकी फिकिर करो। गुठलियां गिन रहे हो, आम चूसो । मगर मन बड़ा पागल है। अगर महावीर की मैंने प्रशंसा कर दी, जैन अकड़कर चलने लगता है। तो वह कहता है कि फिर ठीक; तो हम जो मानते थे, बिलकुल ठीक। तुम्हारी मान्यता को ठीक नहीं कह रहा हूं। जब Jain Education International 2010_03 ज्ञान ही क्रांति मैं महावीर को ठीक कहता हूं तो मैं जैनों को ठीक नहीं कह रहा हूं, ध्यान रखना। अगर जैन ठीक हैं, तो महावीर गलत हैं। अगर महावीर सही हैं, तो जैन गलत हैं। महावीर और जैनों का क्या लेना-देना ! इन्हीं दुष्टों के कारण तो सब खराब हुआ । इन्हीं ने तो डुबाया । ये खुद तो डूबे, महावीर को भी ले डूबे | महावीर इनसे मुक्त होते, तो... तो ज्यादा साफ होता आकाश । इन्हीं की बदलियां तो घिर गयीं, उनका सूरज ढक गया। इन्हीं के कारण तो महावीर को समझना मुश्किल हो गया है। हिंदुओं के कारण कृष्ण को समझना मुश्किल । ईसाइयों के कारण जीसस को समझना मुश्किल । मुसलमानों के कारण मुहम्मद की फजीहत! क्योंकि जिसने मुसलमान को देखा, अनजाने जो मुसलमान कर रहा है उसका दोषारोपण मुहम्मद पर भी चला जाता है। जाएगा ही। जिसने जैन को गौर से देखा, वह महावीर के चरणों में सिर नहीं झुका सकता। क्योंकि अगर यह महावीर का परिणाम है, तो महावीर में कुछ दोष रहा ही होगा। लेकिन खयाल रखना, अनुयायी अकसर गुरु से उलटे होते हैं। शायद जीवित गुरु के पास जो अनुयायी इकट्ठे होते हैं, वे तो गुरु की थोड़ी-बहुत मानते - थोड़ी बहुत कहता हूं, पूरी मान लेते तो न मालूम कितने महावीर एक-साथ पैदा हो जाते - थोड़ी-बहुत मान लेते हैं; पर थोड़ी-बहुत सही, उतनी थोड़ी भी उनको बचा लेती है। फिर उनके बच्चे पैदा होते हैं, फिर उनके बच्चे पैदा होते हैं, महावीर दूर पड़ते जाते हैं। फिर महावीर एक पिटी हुई लकीर रह जाते हैं। जिसे तुमने नहीं चुना है, वह कभी भी तुम्हारे लिए जीवंत धर्म नहीं हो सकता। जो तुमने मां-बाप से ले लिया है, परंपरा से ले लिया है, संस्कार से ले लिया है, वह मुर्दा लकीर है। उसमें कोई प्राण नहीं। तुम थोड़ा सोचो, तुम मेरे पास आये हो, तो तुम्हारे जीवन में एक उल्लास होगा। तुमने मुझे चुना है, खोजा है, तुम मर्जी से आये हो अपनी, कोई तुम्हें लाया नहीं - वस्तुतः रोकनेवाले बहुत हैं, लानेवाला तुम्हें यहां कौन है ! हजार मिले होंगे रास्ते में जिन्होंने कहा होगा – अरे, कहां जाते हो, रुको! फिर भी तुम उनको पार करके आये हो। बहुत चलते हैं, थोड़े से पहुंच पाते हैं। बीच में अनेक लोग हैं रोकनेवाले, जो उन्हें रोक लेते हैं। तो तुम्हारे आने में तुम्हारा बल है, तुम्हारा संकल्प है। लेकिन तुम्हारे For Private & Personal Use Only 231 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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