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जिन सूत्र भागः 2
मुल्ला की पत्नी ने कहा कि देखो, कोई भी सुंदर स्त्री निकली कि जोड़ न जाए! तुम भूल ही जाते हो कि तुम विवाहित हो। नसरुद्दीन ने कहा, नहीं, उलटी हालत घटी है। संन्यास लेने ने तुम्हें और तोड़ भाग्यवान! वस्तुतः जब किसी सुंदर स्त्री को देखता हूं, तभी मुझे दिया। तुमने आधे-आधे मन से लिया। यह तुम्हारा संकल्प बहुत-बहुत याद आती है कि अरे, विवाहित हूं! निश्चित मुल्ला तुम्हारी आत्मा से नहीं उठा। यह तुमने औरों को लेते देखकर ले ठीक कह रहा है। पत्नी साथ हो और सुंदर स्त्री रास्ते पर मिल लिया होगा। यह तुम भीड़ के साथ चल गये—भीड़-चाल जाए, तो बड़ी याद आती है कि अरे। विवाहित हूं! सालती है चले। तुमने औरों को प्रसन्न होते देखकर लोभ के कारण ले पीड़ा और भी।
लिया होगा कि शायद संन्यास लेने से प्रसन्नता मिलती है। कारागह को अगर तमने साज-संवार लिया, जानकर, भलाने आनंद मिलता है। इसलिए ले लिया होगा। शायद मेरे को, तो कैसे भूलोगे? जानकर कोई भुला सकता है? तुम अगर आशीर्वाद से तुम्हारा जीवन धन्य हो जाएगा, इसलिए ले लिया किसी को भुलाने का उपाय करो, तो भुलाने में ही तो याद आती होगा। तुमने भिखमंगे की तरह ले लिया होगा। तुमने सम्राट की है। जितना भुलाना चाहो, उतनी याद सघन होती है। तो लौट तो तरह नहीं लिया। तुमने अपने स्वयं के सहज-स्फूर्त भाव से नहीं तुम न सकोगे, लेकिन मैं कहता हूं, तुम अगर चाहो तो लौट लिया। शायद किसी भावुक क्षण में ले लिया होगा। यहां आये सकते हो। लौट जाओ। बन पड़े तो लौट जाओ, न बन पड़े, तो होओगे, सुना होगा, समझा होगा, भावुक हो गये होओगे, फिर पूरे मेरे हो जाओ। अब दोनों के बीच तुम डांवाडोल भाव-क्षण घिर गया होगा, उस क्षण में उतर गये, फिर पीछे आधे-आधे रहोगे, तो टूटोगे। इसलिए बहुचित्त होता जा रहा हूं, पछता रहे हो कि यह क्या कर लिया! इसीलिए तो कहते हो, विक्षिप्त होता जा रहा हूं, टूटता जा रहा हूं। होगा। निर्णय लेना संन्यास भी लिया है। अभी लिया नहीं। ले लो, गंगा बहती है, होगा अब। मेरे साथ होना है, तो परे मेरे साथ हो जाओ। तब तक पी लो।
इसका यह अर्थ नहीं कि तुम महावीर के दुश्मन हो गये। मेरे फिर भी पारे की तरह बिखरा जा रहा हूं।' निर्णय नहीं कर पा साथ पूरे होकर एक दिन तुम पाओगे कि महावीर मिले। लेकिन रहे हो कि अब क्या करना है। पुराने जड़-संस्कारों से बंधे रहना, यह होना साधारण अर्थों में जैन होना न होगा। जिसको मैं जिन | या इस नयी स्वतंत्रता के रोपे को आरोपित किया है, इसको पानी होना कहता हूं-जैन होना नहीं। जैन होना तो परंपरा से है, सींचना, सम्हालना। दो के बीच उलझे हो। परिवार से है; जिन होना, आत्मजयी होना, यह घटेगा। मगर तुमने सुनी उस गधे की कहानी, जिसके दोनों तरफ दो घास के इसके लिए साहस करना होगा। तो ही हो सकता है।
पूरे लगे थे और वह बीच में खड़ा था। वह तय न कर पाया कि 'संन्यास भी ले लिया है।' कुछ आनंद, उल्लास, कुछ इस तरफ के घास के पूरे से भोजन करूं, या उस तरफ के। जरा अहोभाव तुम्हारे संन्यास में नहीं है अभी। अभी तुम्हारा संन्यास इधर झुकता तो खयाल आता, उस तरफ का ज्यादा हरा है। जरा बड़ा थोथा है। अभी तुमने लिया है, यह कहना ठीक नहीं है। उधर झुकता तो खयाल आता, इधर का हरा है। वह बीच में ही मैंने दिया है, इतना ही कहना ठीक है। मैं नहीं नहीं कर सका, | खड़े-खड़े मर गये। दोनों तरफ पूरे रखे थे। भोजन पास था, दूर इसलिए दे दिया है। इसे तुम मेरी सज्जनता समझो। तुमने अभी न था, लेकिन निर्णय न हो सका। दुविधा पैदा होती है जब तुम लिया नहीं है। तुमने जागकर होशपूर्वक अभीप्सा नहीं की है। निर्णय नहीं कर पाते। द्वैत पैदा होता है जब तुम निर्णय नहीं कर तुमने प्राणपण से चाहा नहीं है। तुमने अपना संकल्प अर्पित नहीं | पाते। दुई पैदा होती है जब तुम निर्णय नहीं कर पाते। निर्णय होते किया है। तुम समर्पित नहीं हो। तुमने लिया होता तो हल हो से द्वैत गिर जाता है। निर्णय अद्वैत है। जाता, सारा मामला उसी क्षण। उसी लेने में हल हो जाता है। तो तुम तय कर लो। इधर मैं हूं, उधर तुम्हारे जैन-संस्कार हैं। क्योंकि उसी लेने में तुम इकट्ठे हो जाते। उसी लेने में तुम्हारे सारे तुम तय कर लो। अगर तुम्हें वहां रस हो, लौट जाओ। मैं तुम्हें खंड एक संगीत में बंध जाते. तम्हारे सारे स्वरों के बीच एक रोकंगा नहीं। आनंद तुम्हें चाहे न मिले, कम से कम संतोष तो लयबद्धता आ जाती। क्योंकि इतना बड़ा संकल्प हो और तुम्हें मिलेगा। चलो वही सही। कम से कम सुविधा तो रहेगी, चलो
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