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________________ ज्ञान ही क्रांति ही रहे, तो यह बच्चा फिर कभी बढ़ न पायेगा। माना कि अब कदम न उठाया, मोक्ष की, अंतिम मंजिल की बात ही छोड़ दे। तक इसी जोड़ के कारण जीआ, लेकिन अब यही जोड़ मौत का सपना न देखे। व्यर्थ की है बात। यही कठिनाई हुई है, मेरे पास कारण बनेगा। आकर तुम्हारे मन में मोक्ष का सपना पैदा हुआ। और तुम पहला तो पहला काम डाक्टर करता है, काट देता है बच्चे के संबंध | कदम उठाने को राजी नहीं हो। को मां से। सेतु तोड़ देता है। इसके बाद स्वतंत्रता की यात्रा शुरू | 'जैन-कुटुंब में जन्म हुआ। तीन वर्षों से आपको पढ़ता हूं।' होती है। फिर बच्चा मां पर निर्भर रहता है। मां उसका भोजन है, उसी से अड़चन हो गयी। अब तुम लौट भी नहीं सकते। अब दूध है। धीरे-धीरे दूध भी छोड़ देता है; और भी संबंध टूटा। तुम फिर उसी जगह वापस नहीं पहुंच सकते, जहां तीन साल पहले मां के ही पीछे घूमता रहता है, उसका आंचल पकड़कर ही पहले थे। अब कोई उपाय नहीं, लौटने का कोई मार्ग नहीं, विधि घूमता रहता है, फिर धीरे-धीरे पास-पड़ोस में खेलने जाने लगता नहीं। और तुम मेरे साथ भी पूरे नहीं हो पा रहे हो। जिसने पूछा है—और संबंध टूटा। फिर धीरे-धीरे संबंध बड़ा फैलाव लेने है, मुझे पता है, जब वह यहां आते हैं तो माला पहन लेते हैं, लगता है, शिथिल होने लगता है। जैसे-जैसे मां से संबंध टता गेरुआ पहन लेते हैं। घर जाकर गेरुवा-माला दोनों छिपाकर रख है, वैसे-वैसे बच्चा प्रौढ़ होता है। फिर एक दिन किसी स्त्री के देते हैं। वह घर लोगों को यही बता रहे हैं कि जैन हैं, और यहां में पड़ जाता है। उस दिन मां की तरफ बिलकल पीठ हो आकर बताते हैं कि संन्यासी हैं। दविधा तो होगी। घर जाकर जाती है। इसलिए मां कभी भी बहू को माफ नहीं कर पाती। वह घोषणा नहीं कर पाते हैं कि मैं सन्यासी हूं, कि मैंने एक मार्ग सास और बहू के बीच एक बुनियादी विरोध बना रहता है। वह चुना-स्वेच्छा से। कितना ही छिपाओ, कितना ही दबाओ, वह हटता नहीं। क्योंकि संन्यास भी ले लिया है।' इस वचन से ही साफ होता है कि मां को जाने-अनजाने यह पता रहता है कि इसी स्त्री ने उसके बेटे | संन्यास कोई आनंद की तरह घटित नहीं हुआ, जैसे मजबूरी में ले को सदा के लिए तोड़ दिया। | लिया-संन्यास भी ले लिया है! जैसे कोई मजबूरी है। जैसे कि ठीक ऐसा ही अंतस-जगत में भी घटता है। तुम जैन-कुल में लेना नहीं था और ले लिया। या, यह क्या कर लिया। संन्यास पैदा हुए, जैन-धर्म तुम्हारी मां है। जब तुम जरा समझदार हो से छूटो, या अपने संस्कारों से छूटो। पीछे लौट सकते हो, तो जाओ, तो अपने को मुक्त करना शुरू करना। इसका यह अर्थ मुझे भूल जाओ। उससे कोई मुक्ति न होगी, लेकिन कम से कम नहीं है कि तुम जैन-धर्म के विपरीत हो जाना। ऐसा समझो, तो बंधन में ही सुख रहेगा। कारागृह को ही तुम महल समझोगे, मेरी बात गलत समझ गये। मैं तो तुमसे यह कह रहा हूं, कि जो बस इतना ही। लेकिन कारागृह को महल समझनेवाला निश्चित मैं तुमसे कह रहा हूँ, यही वस्तुतः जैन होने का उपाय है। तुम | सोता है। जिस दिन तुम्हें कारागृह का पता चलता है कि यह जैन-संस्कारों से मुक्त होना, यह जैन-संस्कार का विरोध नहीं | महल नहीं है, कारागृह है, उस दिन अड़चन शुरू होती है। वह है। यह जैन होने की वास्तविक व्यवस्था है। हटना, | अड़चन शुरू हो गयी है। धीरे-धीरे-धीरे-धीरे। दुश्मनी का कारण नहीं है। सिर्फ तुम मैं जानता हूं, लौटना संभव नहीं है। एक दफा कैदी को पता अपनी स्वतंत्रता खोजना। इससे जैन-धर्म गलत है, ऐसा नहीं चल जाए कि यह कारागृह है, इसको मैंने अब तक महल समझा है। तुम सिर्फ अपनी स्वतंत्रता की खोज कर रहे हो। और जो भी था वह गलत था—अब कोई उपाय नहीं है इस बात को भुला चीज बाधा बनती है, उसे तुम हटा रहे हो। देने का। अब वह लाख उपाय करे, लाख पोते दीवालें कारागृह अगर तुम अपने बचपन में डाले गये संस्कारों से मुक्त हो | की, फूल-पत्ती लगाये, सजाये, कुछ फर्क नहीं पड़ता, याद जाओ, तुम अचानक पाओगे, तुम एकजुट हो गये। तुम्हारे रहेगी कि यह कारागृह है। वस्तुतः जितना छिपायेगा, उतनी ही खंड-खंड इकट्ठे हो गये। तुम्हारे भीतर एक संगीत का जन्म | याद सघन होगी कि यह कारागह है।। हुआ, क्योंकि स्वतंत्रता का जन्म हुआ। तुम अब बंधे हुए नहीं मुल्ला नसरुद्दीन अपनी पत्नी के साथ एक रास्ते से गुजर रहा हो, परतंत्र नहीं हो। यह मुक्ति का पहला कदम है। जिसने यह है। एक सुंदर युवती निकली, चौंककर नसरुद्दीन ने उसे देखा। 229 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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