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________________ से भयभीत कर दिया है। उस भय के कारण तुम अकेले पड़े रह गये हो। तुम भटकते हो, लेकिन परमात्मा से कोई साथ नहीं बन पाता। तुम्हारे पास हाथ नहीं, जो परमात्मा का हाथ पकड़ लें। प्रेम वही हाथ तुम्हें देगा। 1 हर अंधेरे को उजाले में बुलाना है मुझे फूल की गंध से तलवार को सर करना है जीवन कठिन है, तलवार जैसा है। फूल की गंध से तलवार को सर करना है। और जीतना है प्रेम से। यही तो चुनौती है। यही तो अभियान है मनुष्य का। यही तो मनुष्य की उत्क्रांति है। विकास ! या जो भी हो। यही तो मनुष्य के रूपांतरण की कीमिया है । फूल की गंध से तलवार को सर करना है T 1 जीतना है प्रेम से इस संसार को जीतना है प्रेम से इस देह को। जीतना है प्रेम से इन इंद्रियों को जीतना है प्रेम से इस मन को। जीतना है प्रेम से पर को, स्व को । फूल की गंध से तलवार को सर करना है और गा-गा के पहाड़ों को जगाना है मुझे और गीत गाकर ही जगाना है । झकझोर कर नहीं। कोई बिजली के धक्के देकर नहीं; गीत गा-गा के जैसे मां सुबह किसी को उठाती है। एक गीत गाती है। या रात अपने बेटे को सुलाती है, एक लोरी गाती है। जो मैं तुमसे बोले चला जाता हूं, वह कुछ और नहीं है। तुम्हारे भीतर के पहाड़ को जगाना है। गीत गा-गा के पहाड़ों को जगाना है मुझे • और सारे जागरण का सूत्र है - प्रेम | मत । प्रेम मिटाता है। निश्चय ही मिटाता है। लेकिन प्रेम जन्माता भी है। प्रेम सूली है, सच। प्रेम सिंहासन भी है। और जो सूली चढ़ता है, वही सिंहासन पर पहुंचता है। रात इधर ढलती है तो दिन उधर निकलता है कोई यहां रुकता है तो कोई वहां चलता है दीप और पतंगे में फर्क सिर्फ इतना है एक जल के बुझता है एक बुझ के जलता है प्रेम जलाता है। लेकिन जगाता भी है। प्रेम मिटाता है। लेकिन जन्माता भी है। प्रेम मृत्यु है और महाजीवन की शुरुआत भी। व्यर्थ की निंदा छोड़ो। चलो प्रेम की डगर पर। और प्रश्न पूछा है किसी स्त्री ने। इसलिए तो और भी जरूरी है यह समझ Jain Education International 2010_03 प्रेम है द्वार ना कि प्रेम से बचना मत। पुरुष तो प्रेम से बचकर भी कभी पहुंच सकता है। ध्यानी तो प्रेम को छोड़कर भी पहुंच सकता है। कठिन होगी डगर, बड़ी कठिन होगी — सरल हो सकती थी, गीत, रस भरी हो सकती थी – रूखी-सूखी होगी डगर, धूल धवांस भरी होगी, कंकड़, पत्थर, कंटकाकीर्ण होगा मार्ग, लेकिन पहुंच सकता है । लहूलुहान पहुंचेगा, लेकिन पहुंच सकता । लेकिन स्त्री तो बिना प्रेम के पहुंच ही नहीं सकती । वह खो ही जाएगी इस डगर में । दुनिया में दो ही धर्म वस्तुतः होने चाहिए। दो ही धर्म वस्तुतः हैं। एक स्त्री का धर्म, एक पुरुष का धर्म । और दुनिया के सारे धर्म दो हिस्सों में बांटे जा सकते हैं। पुरुष का धर्म कहता है, छोड़ो प्रेम । स्त्री का धर्म कहता है, बनाओ प्रेम को पूजा । लेकिन प्रेम होगा, तो ही तो पूजा बनेगी ! ! जिसने पूछा है, उसे मैं कहूंगा, घबड़ाओ मत। जीवन अनुभव के लिए है। इसे बंद कोठरी मत बनाओ। गुफा में मत छिपो । खुलो, आने दो हवाएं, आने दो नयी सूरज की किरणें । जीओ। खतरनाक है जीना। लेकिन खतरा जीवन का लक्षण है। सुरक्षा में मौत है, सुरक्षा में कब्र है । उतरो । तूफान आयेंगे प्रेम के, झेलना । उन्हीं तूफानों में तुम्हारे भीतर कुछ सोया हुआ जगेगा, कोई चट्टान टूटेगी, निर्झर बहेगा। और घबड़ाना मतरात इधर ढलती है तो दिन उधर निकलता है। कोई यहां रुकता है तो कोई वहां चलता है एक द्वार बंद हुआ नहीं कि दूसरा खुल ही जाता है। दीप और पतंगे में फर्क सिर्फ इतना है एक जल के बुझता है एक बुझ के जलता है पतंगे बन सको तो पतंगे बनो। दीया बन सको तो दीया बनो। लेकिन दीया भी जलता है और पतंगा भी जलता है। दीया जलकर बुझता है, पतंगा बुझकर जलता है। कोई भी बनो । दीये बनो या पतंगे बनो। पतंगों की प्रशंसा में तो बहुत गीत लिखे गये हैं कि पतंगा जलता है, दीवाना है। दीये की प्रशंसा की किसी ने फिकिर नहीं की कि दीया भी पतंगे के लिए ही जल रहा है, कि आओ, कि प्रतीक्षा कर रहा है। जहां पतंगे और दीये का मिलना होता है, जहां दोनों अलग-अलग मिट जाते हैं और एकरूप हो जाते हैं, वहीं प्रेम का जन्म है। परमात्मा से जब जुड़ोगे जुड़ोगे, अभी किसी छोटे परमात्मा से For Private & Personal Use Only 157 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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