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________________ जैसी तुमको है। पुरुष को प्रार्थना जमती नहीं। पुरुष को थोड़ी करते हो? तुम मुझे बुढ़ापे में भी प्रेम करोगे? तुम मुझे सदा ही गड़बड़ मालूम होती है, वह तर्क उसकी पकड़ में नहीं आता। आ| प्रेम करते रहोगे? मुल्ला अपना अखबार पढ़ रहा है। भन्ना रहा नहीं सकता। उसको दो और दो चार होते हैं, यह तो समझ में है भीतर कि वह पढ़ने नहीं दे रही। वह कहता है कि हां देवी, आता है, गणित उसके लिए सीधी भाषा है, काव्य उसको समझ | सदा-सदा प्रेम करूंगा। तमसे ज्यादा संदर कोई स्त्री नहीं है। में नहीं आता। इसलिए स्त्री और पुरुष एक दूसरे को समझ नहीं तुम परम सुंदरी हो। और तुम सदा सुंदर रहोगी। मैं सोच ही नहीं पाते। तुम अभी तक अपनी पत्नी को समझ पाये? इतने वर्ष सकता कि कभी तुम बूढ़ी हो सकती हो। और फिर बोला कि साथ रह लिये। कह सकते हो हिम्मत से कि समझ गये? अब बकवास बंद करो, मुझे अपना अखबार पढ़ने दो। मुश्किल है। न पत्नी तुम्हें समझ पाती है। | मगर वह जो भीतर का भाव है, वह तो चेहरा कहे दे रहा है। जब पति और पत्नी बात करते हैं, तो तुम समझो कि बात होती | तुम क्या कहते हो, यह स्त्री नहीं सुनती; तुम क्या हो, इसे सुनती एक कुछ कहता है, दूसरा कुछ सुनता है। एक-दूसरे | है। इसलिए तुम सब उपाय करते हो, फिर भी तुम पाते हो कि के तर्क समानांतर चलते हैं, कहीं मिलते नहीं। क्योंकि दोनों के कुछ बात पहंची नहीं। देखने के ढंग बड़े भिन्न हैं। पत्नी तार्किक है ही नहीं। वह | ___ जब तक तुम ठीक-ठीक सच्चे न होओ, जब तक तुम जो कहो एक-एक सीढ़ी कदम-कदम रखकर तर्क को नहीं फैलाती, और तुम जो हो उसमें कोई भेद ही न हो, तब तक तुम स्त्री के सीधी छलांग लेती है। एक बात से दूसरी बात पर उछल जाती साथ कोई संवाद नहीं कर सकते। असंभव है। है। पति चौकन्ना खड़ा रह जाता है कि अभी यह तो कोई बात ही स्त्री द्वंद्व को कम जानती है। ज्यादा भोली-भाली है। न थी! लेकिन पत्नी के चलने के ढंग बड़े अदृश्य हैं। अचेतन सीधी-साफ है। पुरुष ज्यादा कुशल हो गया है। और उसकी हैं। तुम क्या कहते हो, यह वह कम सुनती है; तुम क्या कहना कुशलता चल जाती है बाजार में, क्योंकि वहां दूसरे भी पुरुष हैं। चाहते हो, यह वह पहले सुन लेती है। तुम शब्दों से क्या कह रहे तो वहां तर्क एक ही है। इसलिए बड़े से बड़ा योद्धा भी पत्नी के हो, इसकी वह बहुत फिकर नहीं करती, तुम्हारी आंखें क्या कह सामने कंपने लगता है। बड़े से बड़ा संघर्षशील व्यक्ति भी, जो रही हैं, तुम्हारे हाथ क्या कह रहे, तुम्हारे पैर क्या कह रहे, उसे बाहर विजय-पताका फहरा आता है, घर आते ही डरने लगता है वह पहले सुन लेती है। वह तुम्हारे शब्दों के धोखे में नहीं आती। कि चले घर ! क्या हो जाता है? एक स्त्री को तुम नहीं हरा पाते! मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन पर मुकदमा था। देखकर वह | स्त्री कुछ और ढंग से बनी है। उसकी कीमिया अलग है। एकदम घबड़ा गया! जूरी बारह स्त्रियां बैठी हैं। उसने कहा, मैं | तुम्हारी पत्नी ठीक ही कहती है कि मीरा भी तो पहुंच गयी। अपना अपराध इसी वक्त स्वीकार करता हूं। मजिस्ट्रेट ने कहा, | अगर एक पहुंच गया उस मार्ग से, तो हम भी पहुंच जाएंगे। तुम अभी तो अदालत शुरू भी नहीं हुई। उसने कहा, अब कोई | उस पर कृपा करो! तुम उसे कहो कि तू चल, अपनी राह से जरूरत ही नहीं। एक स्त्री को धोखा नहीं दे पाता, बारह! यह चल। अगर तुम ध्यान पर वस्तुतः चल रहे हो, तो तुम उसे संभव नहीं है। जो सजा हो आप मुझे दे दें, इस झंझट में मैं पड़ने | प्रार्थना पर चलने दोगे। तुम्हारा ध्यान कम से कम इतना बल तो को ही राजी नहीं। | तुम्हें देगा। तुम्हारा ध्यान कम से कम इतनी समझ तो तुम्हें देगा, स्त्री के देखने, पकड़ने के ढंग परोक्ष हैं। इसलिए तुम इतनी प्रज्ञा तो तुम्हें देगा। भी होते हो कि मैंने इतनी अच्छी बात कही. पछा है. मेरे पास इसका जवाब नहीं है। मेरे पास भी नहीं है। फिर भी पत्नी को प्रसन्नता न हुई? तुमने कही तो अच्छी बात, | इसका जवाब ही नहीं है, करोगे क्या? इसमें तुम्हारा कोई कसूर लेकिन बात के पीछे-पीछे तुम कुछ और भी कह रहे थे। बात के | नहीं है। मीरा पहुंची है, अब जवाब हो भी कहां से? तो तुम किनारे-किनारे कोई और बात भी दबी-दबी चल रही थी। | ऐसी जगह जवाब खोजने में लगे हो, जहां जवाब नहीं है। तुम्हारी आंखें, तुम्हारा चेहरा उसे प्रगट कर रहे थे। - महावीर भी पहुंचे हैं, मीरा भी पहुंची है। कृष्ण भी पहुंचे, मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उससे कह रही है कि तुम मुझे प्रेम क्राइस्ट भी पहुंचे। मुहम्मद भी पहुंचे, बुद्ध भी पहुंचे। 149 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International 2010_03
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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