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जिन सूत्र भाग: 2
सकता है कहीं भी न जाएं, ध्यान करें और कोई किसी को बाधा न | जाता है। दे। जिसको जहां ठीक लगे। किसी को करान से रस मिल जाता | परमात्मा कहीं कोई बैठा थोडे ही है? तम अपना जीवन-दान है, रसधार बहती है, बहे। रसधार ही असली बात है। कोई | देकर उसे सृजन करते हो। परमात्मा मनुष्य का सृजन है। वह गीता में डूब जाता है, डूबे। डूबना ही असली बात है। कोई | तुम्हारी सृष्टि है। ऐसा थोड़े ही है कि तुम गये और मिल गया। महावीर के साथ चल पड़ता है; कोई मीरा के साथ नाचता है, | कि कहीं किसी पहाड़ की कंदरा में छिपा बैठा है, कि आसमान में नाचे, चले। एक ही बात ध्यान में रहे, रूपांतरण हो रहा? तुम चांद-तारों पर बैठा है, कि तुम्हें खोजना है जरा। खोजना नहीं है. रससिक्त हो रहे? तुम्हारे प्राण मधु से भर रहे? तुम्हारे प्राण निर्मित करना है। परमात्मा तो नृत्य-जैसा है। इसलिए मुझे मधुमय हो रहे? तुम डूब रहे? तुम नाच रहे? तुम शांत, प्रीतिकर लगता है हिंदुओं का यह खयाल कि उन्होंने शिव को आनंदित हो रहे? बस। और ऐसा भी जब हो, तब भी दूसरे पर नटराज कहा। थोपना मत।
| परमात्मा नर्तक जैसा है। अगर तुम्हें नृत्य खोजना हो, तो तुम एक बात स्मरण रखना, स्वतंत्रता थोपी नहीं जा सकती। तो जंगल में खोजोगे? नृत्य खोजना हो तो नाचना सीखो। नृत्य मोक्ष तो कैसे थोपा जा सकता है! अगर कोई व्यक्ति अपनी ही कहीं रखा हुआ थोड़े ही मिलेगा। किसी तिजोरी में बंद थोड़े ही मर्जी से नर्क भी जाए, तो भी प्रसन्न होगा। और अगर जबर्दस्ती | है। नृत्य तो तुम नाचोगे तो होगा। और जब तक तुम नाचते स्वर्ग में भी धका दिया जाए, तो भी अप्रसन्न होगा। जबर्दस्ती में रहोगे, तब तक रहेगा। नाच बंद हुआ कि नृत्य बंद हुआ। नृत्य अप्रसन्नता है। नर्क भी अपनी ही मर्जी से चुना हो, तो स्वतंत्रता गया। तुम ऐसा नहीं कह सकते कि आज नाच लिये, यह देखो है। स्वर्ग भी जबर्दस्ती मिल जाए कि पुलिसवाले हथकड़ी हमारी मुट्ठी में नाच रखा है। नाचोगे, बस उतनी ही देर रहता है। डालकर तुम्हें स्वर्ग ले जाएं, तब तो तुम्हें स्वर्ग भी नर्क हो जितनी देर नाचे, नृत्य। जितनी देर नहीं नाचे, नाच खो गया। जाएगा। स्वर्ग वहीं है जहां स्वतंत्रता है। जहां परतंत्रता है, वहीं परमात्मा नृत्य जैसा है। नटराज! तुम जब ध्यान में हो, तब नर्क है। किसी के लिए नर्क खड़ा मत करना। पत्नी तुम पर | होता है। जब तुम ध्यान के बाहर हो गये, खो गया। जब तुम निर्भर है, आर्थिक रूप से निर्भर है। पत्नी तो ऐसे है जैसे वृक्ष पर प्रार्थना में होते हो, तब होता है। जब तुम प्रार्थना के बाहर हो छायी हुई लता हो, वृक्ष पर निर्भर है। वृक्ष हट जाए तो लता | गये, खो गया। इसीलिए तो मैं कहता हूं, प्रार्थना हो या ध्यान, जमीन पर गिर जाए। उसे तुम्हारे सहारे की जरूरत है। इस सहारे तुम्हारी सहज चर्या बने। चौबीस घंटे तुम्हारा वातावरण बने। तो को शोषण मत बनाना। इस सहारे के आधार पर उसको चूसने ही परमात्मा को तुम पा सकोगे, नहीं तो न पा सकोगे। मत लगना, उसकी आत्मा को नष्ट मत करने लगना। ___ प्रतिपल उसे जन्म देना पड़ता है, तो ही परमात्मा तुम्हारे हाथ में 'पत्नी उत्तर देती है कि मीरा भी तो मूर्तिपूजा करती थी।' होता है। परमात्मा सृजनात्मकता है। तुम सृजन करो, तो मिलता
ठीक ही उत्तर देती है। और बेचारी कहे भी क्या? तुम ज्यादा | है। औरों ने कहा है, परमात्मा स्रष्टा है, मैं तुमसे कहता है कि तर्क-कुशल होओगे, तुम ज्यादा सिद्धांत की बकवास कर सकते तुम स्रष्टा हो। और तुम परमात्मा को जन्म दोगे, तो होगा। होओगे, वह इतना ही निवेदन कर सकती है कि मुझे कुछ और तो परमात्मा प्रथम नहीं है; तुम्हारे जीवन की श्रेष्ठतम ऊंचाई और पता नहीं, लेकिन क्या तुम कहते हो कि मीरा को परमात्मा नहीं गहराई में है; परमात्मा अंतिम है। परमात्मा कारण नहीं है जगत मिला? और अगर मीरा को मूर्तिपूजा से मिल गया, तो मुझे क्यों | का, जगत की नियति है। जहां पहुंचना चाहिए सभी को। जैसा न मिलेगा? वह एक छोटा-सा निवेदन कर रही है कि बख्शो | होना चाहिए सभी को। वह फूल है, आखिरी खिला हुआ फूल। मुझे, छोड़ो मुझे! निश्चित ही मीरा को भी परमात्मा मिला। उससे ऊपर फिर कुछ भी नहीं। मूर्तिपूजा से ही मिला। मूर्तिपूजा और न पूजा का थोड़े ही सवाल तो अगर कोई प्रार्थना से खुल रहा है, खिल रहा है, सुगंधित हो है, जहां तुम अपने हृदय को उंडेल देते हो, वहीं से मिल जाता रहा है, खुश होओ। ठीक कहती है पत्नी, कि मीरा भी तो
है। तुम पत्थर पर उंडेल दो हृदय को, वही पत्थर परमात्मा हो | मूर्तिपूजा करती थी। मीरा के पति को भी ऐसी ही अड़चन थी, 148 Jain Education International 2010_03
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