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________________ जरूरी हैं। प्रबुद्धता और उपशांति । अगर तुम सिर्फ शांत हो जाओ और प्रबुद्ध न होओ, तो नींद में खो जाओगे। नींद में हम सभी शांत हो जाते हैं। लेकिन नींद कोई मंजिल नहीं है। अगर तुम प्रबुद्ध हो जाओ, बहुत जागे हुए हो जाओ, और शांत न हो सको, तो तुम पागल हो जाओगे। क्योंकि विश्राम तुम्हें मिल न सकेगा। जो आदमी सात दिन न सो पाये, वह विक्षिप्त होने लगेगा। कहते हैं, तीन सप्ताह जो आदमी न सोये, वह | सुनिश्चित रूप से पागल हो जाएगा। विश्राम भी चाहिए। तो महावीर का सूत्र है : 'प्रबुद्ध और उपशांत'; एक साथ । शांत भी बनो और जागे हुए भी बनो। यह दोनों साथ-साथ बढ़ें, अलग-अलग नहीं। अगर तुम प्रबुद्ध न हुए तो नींद में खो जाओगे। नींद अच्छी है, सुखद है, लेकिन सुख ही थोड़े गंतव्य है। परम आनंद न मिलेगा, मोक्ष न मिलेगा। मोक्ष तो जागे हुए के लिए है। लेकिन अगर तुम सिर्फ जागने ही लगो, और अनिद्रा को तुम समझ लो कि साधना है, और शांत होना खो जाए, तो तनाव से भर जाओगे। तनाव तुम्हें तोड़ देगा। दोनों का साथ-साथ जोड़ चाहिए। अनुपात दोनों का बराबर चाहिए। आधा-आधा। और सम्यक रूप से साधना में जानेवाले व्यक्ति को निरंतर याद रखनी चाहिए कि इन दो में से किसी की भी मात्रा ज्यादा न हो पाये। अमृत भी बे-मात्रा हो, तो जहर हो जाता है। और जहर भी मात्रा में लिया जाए तो औषधि बन जाता है । तो एक तरफ शांति को बढ़ाओ और एक तरफ जागरण को । 'हे गौतम, शांति का मार्ग बढ़ा! हे गौतम, क्षणमात्र भी प्रमाद मत कर !' एक क्षण भी बेहोशी में मत गंवा । जागो फिर एक बार । प्यारे, जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें अरुण पंख तरुण-किरण खड़ी खोल रही द्वार जागो फिर एक बार । आंखें अलियों-सी किस मधु की गलियों में फंसी, बंद कर पांखें पी रहीं मध मौन, अथवा सोयीं कमल कोरकों में? बंद हो रहा गुंजार - Jain Education International 2010_03 ध्यान का दीप जला लो! जागो ! जागो फिर एक बार । प्यारे, जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें जागो ! जागो फिर एक बार । महावीर के सभी वचन अंततः अप्रमाद पर पूरे होते हैं। वे कहते हैं— जागो, फिर एक बार ! ' और इसके बाद का सूत्र तो बहुत सोचने जैसा है । सोचना । 'भविष्य में लोग कहेंगे, आज जिन दिखायी नहीं देते... भविष्य में लोग कहेंगे, महावीर खो गये । 'भविष्य में लोग कहेंगे, आज जिन दिखायी नहीं देते, और जो मार्गदर्शक हैं वे भी एकमत नहीं हैं। किंतु आज तुझे गौतम, न्यायपूर्ण मार्ग उपलब्ध है। गौतम, क्षणमात्र भी प्रमाद मत कर।' महावीर कहते हैं, सदियों तक फिर लोग पूछेंगे, कहां पायें जिन जैसा शास्ता ? महावीर - जैसा सदगुरु ? और अभी, मैं मौजूद हूं, महावीर कहते हैं गौतम से, तेरे सामने हूं गौतम, और अभी तू सो रहा है। फिर सदियों तक लोग रोयेंगे और पछतायेंगे । और तू सामने मौजूद है। मार्ग तेरी आंखों के सामने बिछा है। तू किस लिए बैठा है ? उठ ! 'भविष्य में लोग कहेंगे, आज जिन दिखायी नहीं देते ... ।' हुजि अज्ज दिस्स, बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए । और महावीर कहते हैं कि और जो मार्गदर्शक होंगे, वे आपस में एकमत न होंगे। महावीर अपने ही मार्ग पर पड़ जानेवाली शाखाओं, विशाखाओं की बात कर रहे हैं । कह रहे हैं, अभी बिलकुल एक है। पगडंडियां अलग-अलग टूटी नहीं। अभी मार्ग राजपथ - जैसा है : तू चल! भविष्य में लोग पूछेंगे, जिन कहां हैं? कहां उनके दर्शन हों, जो मार्ग दिखायें? और जो मार्ग दिखानेवाले लोग होंगे रास्ते पर कोई 'तेरापंथी' होगा, कोई 'दिगंबर' होगा, कोई 'श्वेतांबर' होगा। पंथों में और छोटे पंथ होंगे और हजार मत होंगे। और बड़ा संघर्ष होगा। और अभी मार्ग सुस्पष्ट है, गौतम ! तू क्यों बैठा है ? उठ ! जागो फिर एक बार ! प्यारे, जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें। महावीर, बुद्ध, कृष्ण, क्राइस्ट, कितने तारों ने तुम्हें जगाया है! प्यारे, जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें । 'न्यायपूर्ण मार्ग तुझे उपलब्ध है। गौतम, क्षणमात्र भी प्रमाद For Private & Personal Use Only 135 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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