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________________ जिन सूत्र भाग: मंजिल नहीं है। बड़ी पुरजोर आंधी है बड़ी काफिर बलाएं हैं 'आकाश-सा निरावलंब...।' और कोई सहारा न खोजे। मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं इतना निरावलंब हो जैसा आकाश है। कोई आधार नहीं आकाश अफक पर जिंदगी के लश्करे-जुल्मत का डेरा है का, कोई बुनियाद नहीं, कोई खंभे नहीं, जिन पर सधा हो। बस हवादिस के कयामतखेज तूफानों ने घेरा है है। आकाश-जैसा हो जाए। जहां तक देख सकता हं अंधेरा ही अंधेरा है महावीर दिगंबर रहे, नग्न रहे। वह आकाश-जैसी चर्या थी। मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूँ दिगंबर का अर्थ होता है, आकाश को ही जिसने अपना वस्त्र तलातमखेज दरिया आग के मैदान हाइल हैं बना लिया। दिगंबर का मतलब सिर्फ नग्न नहीं होता। नग्नता गरजती आंधियां बिखरे हुए तफान तो बड़ी आसान है। कोई भी कपड़े छोड़ दे तो नग्न हो सकता | तबाही के फरिश्ते जब्र के शैतान हाइल हैं है। लेकिन जो आकाश को अपना वस्त्र बना ले, वह है मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं दिगंबर। वह नग्न तो होगा, लेकिन नग्नता में सिर्फ नग्नता नहीं संकल्प और दिशा का बोध हो तो अंधेरा तुम्हें तोड़ेगा नहीं। है, कुछ और बड़ी घटना घटी है। पूरा आकाश ही उसने अपना अंधेरा ही तुम्हें मौका देगा अपने स्वयं के प्रकाश को खोजने का। घर बना लिया, अपने वस्त्र बना लिया। अब अलग से वस्त्रों तो जवानी तुम्हें मिटायेगी नहीं, जवानी ही तुम्हारा संन्यास की कोई जरूरत नहीं रही। अब उसने अपने को प्रगट कर बनेगी। तो ऊर्जा तुम्हें भटकायेगी नहीं, ऊर्जा पर ही चढ़कर तुम दिया। जैसा है वैसा प्रगट कर दिया। नग्न, तो नग्न। परमऊर्जा के परमपद तक पहुंचोगे। जिस व्यक्ति को दिशा का ऐसा साधु परमपद मोक्ष की यात्रा पर है। बोध है, गंतव्य का थोड़ा खयाल है, जिसने अपनी सुई में धागा सीह गय-वसह-मिय-पसु, मारूद-सुरूवहि-मंदरिदुं-मणी। पिरोया है, फिर अंधेरा कितना ही हो, वह अपनी मंजिल की खिदि-उरगंवरसरिसा, परम-पय-विमग्गया साहू।। तरफ बढ़ता ही जाता है। और कितनी ही बाधाएं हों, और कितने परमपद की यात्रा पर ऐसा व्यक्ति चल पाता है। बड़ी ही पत्थर राह पर पड़े हों, वह उनकी सीढ़ियां बना लेता है। वह कठिनाइयां हैं रास्ते में। और उन कठिनाइयों को जीतने के लिए हर स्थिति को चनौती समझता है। और हर हार को नया शिक्षण तुम्हें बड़े गुण निर्मित करने होंगे। समझता है। हर हार को जीत के लिए उपाय बना लेता है। और जवानी की अंधेरी रात है जुल्मतं का तूफां है बढ़ता ही जाता है। मेरी राहों से नूरे-माहो-अंजुम तक कुरेजा है। मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं। खुदा सोया है ऐ हरमन महशर बदामा है यह जो महावीर ने गुण कहे, यह राह पर तुम्हें साथ देंगे। इन मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं एक-एक गुण को खूब ध्यानपूर्वक सोचना, विचारना, मनन चांद-तारे खो गये हैं: परमात्मा का पता नहीं-कहां सो गया करना, आत्मसात करना। है; शैतान जागा हुआ है, राह पर बड़ा गहरा अंधेरा है- 'प्रबुद्ध और उपशांत होकर संयतभाव से ग्राम और नगर में खुदा सोया है ऐ हरमन महशर बदामा है विचरण कर शांति को बढ़ा। शांति का मार्ग बढ़ा। हे गौतम, मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं क्षणमात्र भी प्रमाद मत कर।' गमो-हिर्मा युरुश है मसाइब की घटाएं हैं गौतम महावीर के प्रमुख शिष्य हैं। जैसे कृष्ण ने अर्जुन को जुनूं की फितनाखेजी हुस्न की खूनी अदाएं हैं संबोधित करके गीता कही है, ऐसे महावीर के सारे वचन गौतम बड़ी पुरजोर आंधी है बड़ी काफिर बलाएं हैं को संबोधित करके हैं। गौतम के बहाने सभी के लिए कहे हैं। मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता है बुद्धे परिनिव्वुडे चरे, गाम गए नगरे व संजए। बड़े आकर्षण हैं जगत के। जवानी का पागलपन है, हुस्न की संतिमग्गं च बूहए, समयं गोयम! मा पमायए।। बड़ी खींच है, सौंदर्य का बुलावा है। 'प्रबुद्ध और उपशांत होकर...।' दो बातें ध्यान में रखनी 134 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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