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________________ जिन सूत्र भागः2 व्यर्थ गया। दूसरी बार बचपन मिल जाए, कि जीवन सार्थक करने से आता है। हुआ। उस दूसरे बचपन को ही तो संतत्व कहते हैं। पहला | यह ज्ञान चरित्र का ही निचोड़ है, सार है। जैसे हजारों फूलों बचपन मूल्यवान है, लेकिन खोयेगा। क्योंकि पहला बचपन को निचोड़कर इत्र बनता है, ऐसे हजारों अनुभवों को निचोड़कर अबोध है। उसे खोना ही पड़ेगा। उसे बचाने का कोई उपाय नहीं | ज्ञान बनता है। एक बार क्रोध किया, दो बार क्रोध किया, हजार है। वह खोने को ही है। बच्चा सरल है, साधु है, लेकिन उसकी बार क्रोध किया, लाख बार क्रोध किया, इन सारे क्रोधों से तुमने साधुता इतनी सरल है कि संघर्ष में टिक न सकेगी। उसकी जब अनुभव को निचोड़ा, और पाया कि सब व्यर्थ था, कुछ भी साधुता इतनी स्वाभाविक है कि जीवन के उपद्रव में दब जाएगी। करने-जैसा न था, नाहक ही परेशान हुए। उसकी साधता जानेवाली है। कोई उपाय नहीं बचाने का। खयाल रखना, इसमें जल्दी नहीं की जा सकती। सब चीजें एक और बचपन आता है, जब तुम अपने हाथ से बचपन लाते समय पर पकती हैं। और फूल अपने-आप खिलते हैं, उन्हें हो। हटा देते हो सब कूड़ा-कर्कट जानकारी का। फिर अनजान जबर्दस्ती नहीं खोलना होता, प्रतीक्षा जरूरी है। हो जाते हो, जैसे छोटा बच्चा। तुम्हारी आंखें विचारों से भरी नहीं अगर तुमने सुन लिया कि क्रोध बुरा है और पहले से ही मान हैं। निर्मल हो जाती हैं। तुम्हारी खोपड़ी में कोई बोझ नहीं। तुम लिया कि क्रोध बुरा है, और फिर तुम सोचने लगे कि अब फिर से आंख खोलकर जगत को देखते हो, जैसा तुमने पहली अनुभव से निचोड़ लें, तुम न निचोड़ पाओगे। क्योंकि तुम्हारी बार आंख खोलकर गर्भ के बाद देखा था। जन्मे थे और आंख धारणा तो पहले से ही तैयार है। खोली थी। उतनी ही निष्कपटता से फिर से तुम जगत को देखते कोई धारणा नहीं चाहिए। क्रोध को निर्धारणा से देखो। जैसे हो। इसी को तो हम संतत्व कहते हैं। कहो केवल ज्ञान।' तुम्हें किसी ने कभी कुछ नहीं कहा क्रोध के संबंध में अच्छा यह दसरा बचपन बड़ा बहुमूल्य है। यह कभी खोयेगा नहीं। है, बुरा है; पाप है, पुण्य है। कामवासना को निर्धारणा से क्योंकि इसे तुमने अर्जित किया है। पहला बचपन मिला था, देखो। जैसे कोई तुम्हें सिखानेवाला नहीं आया। तुम पृथ्वी पर दूसरा तुमने कमाया है। जो कमाया है, वह कभी खोयेगा नहीं। पहली दफा आये हो, और तुम्हें किसी ने कोई शिक्षा नहीं दी; तुम जो मिला था, वह वापिस लिया जा सकता है। पहला बचपन कामवासना को ऐसी खुली नजर से देखो, तो जल्दी ही निचोड़ मुफ्त था। दूसरा बचपन अर्जित है। पहला बचपन अबोध था। | आ जाएगा हाथ में। वही-वही हम दोहराये चले जाते हैं। दूसरा बचपन बड़ा बोधपूर्ण है, बुद्धत्वपूर्ण है। पहला बचपन लेकिन, अड़चन क्या है? अड़चन यह है, कि अनुभव के पहले कठिनाइयों को नहीं जानता था। कठिनाइयों में गया, भटक हमारी धारणा निर्मित हो जाती है। गया। दूसरा बचपन सारी कठिनाइयों को पार करके आया है, अभी बच्चे को पता भी नहीं है कि झूठ बोलना क्या है, और जानकर आया है। देख लिये जीवन के सब अनुभव। फांक ली हम उसे सिखाने लगते हैं-सच बोलना, झूठ मत बोलना। धूल सभी रास्तों की। और सभी घाटों का पानी पी लिया। सब हमारी बात सुनकर ही उसे पहली दफा पता चलता है कि झूठ भी पाप-पुण्य पहचान लिये। बुरे-भले अनुभव, मीठे-कडुवे | कुछ है। अनुभव, सबसे गुजरकर आया है। जीवन की परीक्षा पर मैंने सुना है, गांव में एक नया मौलवी आया। वह उत्सुक था कसकर उतरा है। कसौटी से गुजरा है। यह जो दूसरा बचपन है, जानने को कि उसके प्रवचन गांव के लोगों को कैसे लग रहे हैं। इसे फिर कोई छीन नहीं सकता। यह फिर तुम्हारी निधि है। यही उसने मुल्ला नसरुद्दीन से पूछा-वह रोज-रोज सुनने आता है, है हृदय-धन। सामने ही बैठता है--पूछा उससे कि कैसा लग रहा है मेरा 'चरित्र-संपन्न का अल्पतम ज्ञान भी बहुत है।' बोलना तुम्हें, जो मैं समझा रहा हूँ? नसरुद्दीन ने कहा कि यह अल्पतम ज्ञान आता ही चरित्र से है। जीवन को जीने से धन्यभाग कि आप आये। आप जब तक न आये थे, हमें पता ही आता है। जीवन के साथ जूझने से आता है। जीवन की चुनौती न था कि पाप क्या है। स्वीकार करने से आता है। जीवन जो अड्गे देता है, उनको पार धर्मगुरु से पता चलता है कि पाप क्या है। यह पाप सिर्फ शब्द Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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