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________________ R ECE जीवन ही है ग लिए वंचित कर जाएगी। हूं, तब प्रार्थना सुगम होती है। इसलिए दुख की प्रार्थना करता हूं, वास्तविक धर्म की शिक्षा तो एक ही हो सकती है कि तुम्हें क्योंकि दुख की छाया में ही मैं प्रार्थना कर पाता हूं। अभी मैं जीवन से निचोड़ने की कला सिखायी जाए। तुम्हें कहा जाए कि इतना योग्य नहीं कि सुख में प्रार्थना कर सकूँ। सुख में भूल जाता जीवन के अनुभवों से सीखना। अगर क्रोध करते हो, तो खूब हूं। दुख में याद बनी रहती है। तो थोड़ा दुख देते रहता। ऐसा न जागकर क्रोध करना। ताकि क्रोध में क्या होता है, यह तुम्हें पता हो कि सुख ज्यादा दे दो, और मैं तुम्हें ही भूल जाऊं। क्योंकि चल जाए। फिर तुम्हारी मर्जी! फिर जो श्रेयस्कर हो, करना। तुम्हें ही भूल गया, तो सुख का क्या करूंगा? तुम याद रहे, अगर तुम्हें लगे, क्रोध ही उचित है, वही तुम्हारा आनंद है, तो थोड़ा दुख भी रहा तो ठीक है। तुम्हारी याद के साथ दुख झेलना वही करना। लेकिन ऐसा तो कभी हुआ नहीं कि क्रोध में किसी ने बेहतर। तुम्हारी याद के बिना सुख में उतरना खतरनाक। आनंद पाया हो। कामवासना में तुम्हारा आनंद है, तो ठीक है, स्वर्ग भी नर्क हो जाता है, अगर परमात्मा का स्मरण न रहे। उसी तरफ जाना। लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं कि किसी ने नर्क भी स्वर्ग हो सकता है, अगर उसकी याद बनी रहे। वस्तुतः आनंद पाया हो। आनंद तो मनुष्य के भीतर है—न क्रोध में है, न तो उसी की याद में स्वर्ग है। स्मरण में, बोध में, ध्यान में। काम में है, न लोभ में है। चरित्र रुक गया है, अवरुद्ध हो गया है। झूठे ज्ञान के कचरे ने, रत्न तो लाख मिले, एक हृदय-धन न मिला कंकड़-पत्थरों ने झरने को अवरुद्ध कर दिया है। तो पहली बात दर्द हर वक्त मिला, चैन किसी क्षण न मिला जो धार्मिक व्यक्ति को करने की है, वह यह है-तथाकथित खोजते-खोजते ढल धूप गयी जीवन की ज्ञान को हटा दो। इस कूड़े-कर्कट को अलग करो। इसको दूसरी बार मगर लौटकर बचपन न मिला अलग करते ही तुम बड़े निर्भार हो जाओगे। बोझ उतर जाएगा। और धर्म का अर्थ है, दूसरी बार बचपन का मिल जाना। द्विज | न हिंदू रहोगे, न मुसलमान, न जैन, न ईसाई। क्योंकि यह सब हो जाना। धर्म ऐसे रत्न की तलाश है जो तुम्हारे भीतर छिपा पड़ा | तो उधार ज्ञान के कारण तुम बने हो। तब तुम सिर्फ शुद्ध है, जो तुम्हारी अंदर की पर्तों में दबा पड़ा है। | खालिस आदमी रह जाओगे। शुद्ध, सहज आदमी। और यह धर्म किसी से मिल नहीं सकता। यह धर्म किसी के हाथ से तुम्हारी आंखें निर्मल बच्चे की भांति हो जाएंगी। क्योंकि ज्ञान ने हस्तांतरित नहीं हो सकता। यह धर्म तो तुम्हें अपने भीतर ही तुम्हें बूढ़ा किया है। अगर ज्ञान तुम हटा दो, तो दूसरा बचपन उतरकर ही खोजना होगा। | आने लगा। जीवन के हर अनुभव को सीढ़ी बनाना। और जीवन के किसी रत्न तो लाख मिले, एक हृदय-धन न मिला अनुभव से घबड़ाना मत। यहां कुछ भी बुरा नहीं है। अगर सीख मिलेगा भी कैसे! हृदय-धन तो भीतर है। बाहर जो भी मिल लो, तो सभी शुभ है। और न सीखो, तो सभी अशुभ है। यहां जाएगा, वह और कुछ भी हो, हृदय-धन तो नहीं हो सकता। कांटे भी शिक्षा के लिए हैं। यहां अपमान में भी राज है। यहां और जो हृदय-धन नहीं है, वह धन कैसा! वह आज नहीं कल दुख और दर्द में भी प्रार्थना के बीज ही छिपे हैं। छिनेगा। सूफी फकीर हसन परमात्मा से प्रार्थना किया करता था कि हे दर्द हर वक्त मिला, चैन किसी क्षण न मिला परमात्मा! और कुछ भी करना, लेकिन थोड़ा दर्द बनाये रखना, चैन तो भीतर मिलता है। चैन तो उसे मिलता है, जो अपनी ही थोड़ा दुख देते रहना। एक दिन किसी ने सुन लिया। यह कैसी छाया में आ गया। जो अपने भीतर इतना उतर गया कि संसार प्रार्थना कर रहा है! पूछा कि हसन, प्रार्थनाएं हमने बहुत सुनी, की तरंगें वहां तक पहुंच नहीं पातीं। चैन तो बस उसे मिलता है। लोग करते हैं प्रार्थना सुख की, सुख के लिए, यह कैसी प्रार्थना! | दर्द हर वक्त मिला, चैन किसी क्षण न मिला तुम्हारा दिमाग ठीक है? या मैंने गलत सुना? मुझे लगा कि तुम खोजते-खोजते ढल धूप गयी जीवन की कह रहे हो, हे परमात्मा! रोज मुझे थोड़ा दुख जरूर देते रहना। दूसरी बार मगर लौट के बचपन न मिला हसन ने कहा, गलत नहीं सुना। लेकिन दुख में जब मैं होता | और जब तक दूसरी बार बचपन न मिले, समझना कि जीवन 89 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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