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________________ ३७ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका कृतप्रत्यासत्तियुंटप्पुरिदं गतिमार्गणेयोलायुप्राणक्कंतर्भावमक्कुमेक बोर्ड गतिमायुष्यक्कमम्योन्याजहवृत्तिलक्षणप्रत्यासत्तियुंटप्पुरिदं ॥ मायालोहे रदिपुव्वाहारं कोहमाणगम्मि भयं । वेदे मेहुणसण्णा लोहम्मि परिग्गहे सण्णा ।।६।। मायालोभे रतिपूर्वाहारः क्रोधमानके भयं, वेदे मैथुनसंज्ञा लोभे परिग्रहसंज्ञा ॥ । __ मायाकषायम लोभकषायमुमें बी येरडरोळाहारसंज्ञे अंतर्भविसल्पद्रुदेक दोडाहारकाक्षेगे रतिकर्मोदयपूर्वकत्वमुंटप्पुरिदं। रतिकर्ममुमा येरंड्ड रागहेतुकषायांतःप्रविष्टेमदु कारणदिदं । क्रोधकषायमं मानकषायम बो येरडुरोळं भयसंज्ञेयंत विसळपटटुदेके दोडे भयहेतुगळोळु द्वेषहेतुत्वदिदं द्वेषरूपंगळप्प क्रोधमानंगळोळु कार्यकारणप्रत्यासत्तिसंभवमप्पुरिदं। वेदमार्गणेयोलु मैथुनसंज्ञेयंतर्भविसल्पटुदेके दोडे कामोद्रेकवशीकृतमप्प मिथुनकृत्यं साभिलाषसंभोगरूपमदु वेदोदयजनितपुरुषाधभिलाषकार्यदितु कार्यकारणभावप्रत्यासत्तियुटप्पु. दरिदं । लोभकषायदोळ परिग्रहसंज्ञेयंत विसळूपटुदेके दोडे लोभकषायमुंटागुत्तिरले मूस्विभावमप्प परिग्रहाभिलाषक्के संभवमुटप्पुरिदिल्लि कार्यकारणप्रत्यासत्तिय दरिगे॥ १५ अन्तर्भतानि इन्द्रियावरणक्षयोपशमोदतलब्धिरूपेन्द्रियाणां ज्ञानेन सह तादात्म्यकृतप्रत्यासत्तिसद्भावात् । गतिमार्गणायां आयुःप्राणोऽन्तर्भूतः गत्यायुषोरन्योन्याजहवृत्तिलक्षणप्रत्यांसत्तिसद्भावात् ॥५॥ मायाकषाये लोभकषाये च आहारसंज्ञान्तर्भूता आहाराकांक्षाया रतिकर्मोदयपूर्वकत्वसद्भावात्, रतिकर्म मायालोभकषाययोश्च रागहेतुकषायान्तःप्रविष्टत्वात् । क्रोधकषाये मानकषाये च भयसंज्ञान्तर्भूता भयहेतुषु देषहेतुत्वेन द्वेषरूपक्रोधमानयोः कार्यकारण प्रत्यासत्तिसम्भवात् । वेदमार्गणायां मैथुनसंज्ञान्तर्भूता कामोद्रेकवशीकृतमिथुनकृत्यं साभिलाषसंभोगरूपं तत् वेदोदयजनितपुरुषाद्यभिलाषकार्यमिति कार्यकारणभावप्रत्यासत्ति. सद्भावात । लोभकषाये परिग्रहसंज्ञान्तर्भूता लोभकषाये सत्येव मुस्विभावस्य परिग्रहाभिलाषस्य संभवात अत्र २० कार्यकारणप्रत्यासत्तिरेवेति जानीहि ॥६॥ मार्गणामें आयुप्राण अन्तभूत है क्योंकि गति और आयुमें परस्पर अजहवृत्तिरूप प्रत्यासत्ति है क्योंकि गतिके बिना आयु नहीं और आयुके बिना गति नहीं ।।५।। ___मायाकषाय और लोभकषायमें आहार संज्ञा अन्तर्भूत है। आहारकी इच्छा रतिनाम कर्मके उदयपर्वक होती है और रतिकर्म तथा मायाकषाय और लोभकषाय रागहेतुक २५ कषायोंमें गर्भित हैं। क्रोधकषाय और मानकषायमें भयसंज्ञा अन्तर्भूत है, क्योंकि भयके कारणोंमें द्वेष कारण है। अतः भयमें और द्वेषरूप क्रोध,मानमें कार्यकारण प्रत्यासत्ति है। वेदमार्गणामें मैथुन संज्ञा अन्तर्भूत है; क्योंकि कामकी तीव्रताके वशमें होकर स्त्री-पुरुष युगल अभिलाषापूर्वक संभोगरूप जो कृत्य करते हैं,वह वेदकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई पुरुष आदिकी अभिलाषाका कार्य है। इसलिए मैथुन संज्ञा और वेदकममें कार्यकारणभाव ३० प्रत्यासत्ति है। लोभकषायमें परिग्रह संज्ञा अन्तभूत है, क्योंकि लोभकषायके होनेपर ही ममत्वभावरूप परिग्रहकी अभिलाषा होती है। यहाँ कार्यकारण प्रत्यासत्ति ही जानना ॥६॥ १. म गतिगमायुष्यक्कमजहद् । २. मष्टमक्कुमदु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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