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________________ १८ गो०जीवकाण्डे जनितमिन्द्रप्रतीन्द्रदिगिन्द्रत्रास्त्रिशामरसामानिकप्रभृतिसुखं । राजाधिराजमहाराजोद्धंमण्डलीकमण्डलीकानां॥ 'महमण्डलियाणं अद्धचक्कि चक्कहरतित्थयरसोक्खं । __ अट्ठारसमेत्ताणं सामो सेणीण भत्तिजुत्ताणं ॥३५॥ महामण्डलीकानामर्द्धचक्रि-चक्रधर-तीर्थकराणां सौख्यं । अष्टदशप्रमितानां भक्तियुक्तानां श्रेणिनां स्वामी ॥ 'वरैरयणमउडधारी सेवयमाणाण वंछिदं अत्थं । दिता हवेइ राजा जिदसत्तू समरसंघट्टे ॥३६॥ वररत्नमकुटधारी सेवमानानां वांछितार्थ दाता। समरसंघट्टे जितशत्रुः राजा भवेत् ।। अष्टादश श्रेणीः प्रतिपादयति'करितुरगैरहाहिबई सेणाहिवमंति-सेटिदण्डवई। सुद्दक्खत्तियबम्हण-वइसा तह महयरापवरा ॥३७॥ गणरायमंतितलवरपुरोहिया दप्पिया महामत्ता। बहुविहपइण्णया इय अठारस होति सेणीओ॥३८॥ करितुरगरथाधिपतयः सेनाधिपमन्त्रिवेष्ठिदण्डपतयः । शूद्रक्षत्रियब्राह्मणवैश्यास्तथा महत्तराः प्रवराः । गणमन्त्रि राजमन्त्री-तलवर-पुरोहिता दपिका महामात्याः। बहुविधप्रकीर्णका इत्यष्टादशश्रेणयो भवन्ति ।। 'पंचसयराजसामी अहिराजो होदि कित्ति-भरिददिसो। रायाण जो सहस्सं पालइ सो होदि महराजो ॥३९॥ दुसहस्समउडबद्धाणहिवइ तत्थ अद्धमंडलिओ। चउराजसहस्साणां अहिणाधो होदि मंडलिओ॥४०॥ २० परोक्षोऽप्यभ्युदयरूपो निःश्रेयसरूपश्च । तत्राभ्युदयरूपः-सातादिप्रशस्तप्रकृतीनां तीव्रानुभागोदयजनितं को इच्छित पदार्थ देनेवाला और युद्ध भूमिमें शत्रुको जीतनेवाला राजा होता है ॥३२-३६॥ अठारह श्रेणि कहते हैं हाथी, घोड़े और रथोंके अधिपति, सेनापति, मन्त्री, श्रेष्ठि, दण्डपति, शूद्र, क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, महत्तर, गणमन्त्री, राजमन्त्री, कोतवाल, पुरोहित, महामात्य और बहुत प्रकार के प्रकीर्णक ये अठारह श्रेणियाँ होती हैं ॥३७-३८॥ पाँचसौ राजाओंका स्वामी अधिराजा होता है। उसकी कीर्ति दसों दिशाओंमें व्याप्त ३० होती है । जो एक हजार राजाओंका पालन करता है,वह महाराजा होता है ॥३९॥ दो हजार मुकुटबद्ध राजाओंका अधिपति अर्द्धमण्डलीक होता है। चार हजार राजाओंका स्वामी मण्डलीक होता है ॥४०॥ १. मर्द्धमंडलिका। २. ति. प. ११४१। ३. ति. प. ११४२। ४. क संघट्टी। ५. ति. प. ११४३ । ६. क बह्माण । ७. -[ति. प. ११४५-४८]। ८. म णाहो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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