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________________ गो० जीवकाण्डे Sal८।८। मत्तं तदेकभागा संख्यातलोकभक्तैकभागमात्रगळु कृष्णनीलकपोततेजः पद्म९।९।९।५ शुक्ललेश्याषट्कस्थानंगळ संख्या तलोकमात्रंगळप्पुवु ४९२ ०८।१ वेदोडे बहुभागमप्प ९।९।९।५ संख्यातलोकगुणकाररहितत्वाददम संख्यात गुणहीनत्वं सिद्धमप्पुदरिदं । मत्तमवं नोडलसंख्यातगुणहीनंगळं धूलीरेखासमानशक्तियुक्त सर्व्वस्थानंगळोळु तद्योग्या५ संख्यात लोक भक्तबहुभागमात्रगळु लेश्याषट्कस्थानंगळ संख्यातलोकमात्रंगळप्पुवु = २ । ८। ८ । ९।९।९।९।१ मत्तमल्लिये तदेकभागबहुभागमात्रंगळ कृष्णलेश्यारहितशेष लेश्यापंचकस्थानंगळ संख्यातलोकमात्रंगळप्पुवु =al ८।८ मत्तमल्लिये तदेकभागा संख्यात लोक बहुभागमात्रगळु कृष्णनील ९।९।९।९।२ लेश्याद्वयरहितशेष लेश्याचतुष्टयस्थानं गळसंख्यात लोकमात्रंगळप्पुवु = a1416 मल्लिये तदेकभागा संख्यात लोकभक्तबहुभागमात्रंगल ९।९।९।९।३ शुभलेश्यात्रयस्थानं गळ संख्यात लोकमात्रंगलवु १० लोकमात्राणि – ८ । ८ पुनस्तदेकभागासंख्यात लोकभागमात्राणि कृष्णनीलकपोततेजःपद्मशुक्ल९ । ९ । ९ । ५ लेश्याषट्कस्थानान्यसंख्यात लोकहीनानि = a । ८ । १ कुतः बहुभागरूपासंख्यातलोकगुणकाररहितत्वात् । ९।९।९।५ पुनस्तेभ्योऽसंख्यातगुणहीनान्यपि धूलिरेखासमानशक्तियुक्तसर्वस्थानानि तद्योग्यासंख्यात लोकभक्तबहुभागमात्राणि षट्लेश्यास्थानानि असंख्यात लोकमात्राणि । = ० । ८ । ८ पुनस्तत्रैव तदेकभागबहुभागमात्राणि कृष्ण ९ । ९ । ९ । ९ । १ लेश्यारहितशेषपञ्च लेश्यास्थानानि असंख्यात लोकमात्राणि । ८ । ८ पुनस्तत्रैव तदेकभागासंख्यात९। ९। ९। ९ । २ १५ लोकभक्तबहुभागमात्राणि कृष्णनीलरहितशेषचतुर्लेश्यास्थानानि असंख्यात लोकमात्राणि पुनस्तदेकभागासंख्यात लोकभक्तबहुभागमात्राणि शुभलेश्यात्रयस्थानानि लोकमात्र हैं । पुनः उस शेष बचे एक भागमें असंख्यात लोकसे भाग देकर बहुभागमात्र कृष्ण, कापोत, पीत, पद्मइन पाँच लेश्याओंके स्थान असंख्यातगुणे हीन तथा असंख्यात लोक मात्र हैं । पुनः उस एक भाग प्रमाण जो असंख्यात लोक मात्र है, कृष्ण, नील, कापोत, पीत, २० पद्म, शुक्ल इन छह लेश्याके स्थान असंख्यात लोकहीन हैं। इसका कारण यह है कि यहाँ बहुभाग रूप असंख्यात लोक गुणाकार नहीं है। इनसे असंख्यातगुणे हीन धूलिरेखाके समान शक्तियुक्त सब स्थानों में उनके योग्य असंख्यात लोकसे भाग देकर बहुभाग मात्र छह लेश्याके स्थान असंख्यात लोक मात्र हैं । पुनः उसीके अवशेष रहे एक भागमें असंख्यात लोकका भाग देकर बहुभाग प्रमाण कृष्णलेश्या रहित शेष पाँच लेश्याओंके स्थान असंख्यात लोक मात्र २५ हैं । पुनः उसीके अवशेष रहे एक भागमें उसके योग्य असंख्यात लोकसे भाग देनेपर बहुभाग मात्र कृष्ण, नील लेश्यासे रहित चार लेश्याओंके स्थान असंख्यात लोक मात्र हैं । पुनः उसीके शेष रहे एक भागमें उसके योग्य असंख्यात लोकसे भाग देकर बहुभाग मात्र तीन शुभ Jain Education International For Private & Personal Use Only ३।८।८ ९।९।९।९।३ असंख्यात लोकमात्राणि www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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