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________________ ४९१ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका शक्तियुक्तकेवलकृष्णलेश्यास्थानंगळसंख्यातगुणहीनंगळुमसंख्यातलोकमात्रंगळप्पु = ।।८।८ ९।९।९।१ वते दोर्ड भूभेदसमानशक्तियुक्तसर्वस्थानंगळोळ संख्यातलोकभक्तबहुभागमात्रंगळप्पुरिदं । तदेक भागबहुभागमात्रंगळल्लिये कृष्णनोललेण्याद्वयस्थानंगळसंख्यातलोकमात्रंगळप्पुवु = ३८८ ववं नोडलल्लिये कृष्णनीलकपोतलेश्यात्रयस्थानंगळु तदेकभागबहुभाग ९।९।९।२॥ मात्रंगळसंख्यातलोकमानंगळप्पुवु = 1८1८ मत्तं तदेकभाग बहुभागमात्रंगळु कृष्णनील- ५ ९।९।९।३ कपोततेजोलेश्याचतुष्टयस्थानंगळसंख्यातलोकमात्रंगळप्पुवु = 1८1८ मत्तं तदेकभागाऽ ९।९।९।४। संख्यातलोकबहुभारांगळल्लिये कृष्णनीलकपोततेजःपद्मलेश्यापंचकस्थानंगळसंख्यातलोकमानंगळप्पुवु हानियुक्तस्थानानि भवन्ति । = a । ८ एभ्यः भूभेदसमानशक्तियुक्तकेवलकृष्णलेश्यास्थानानि असंख्यातगुण हीनानि असंख्यातलोकमात्राणि- । ८ । ८ कृतः ? भूभेदसमानशक्तियुक्तकेवलसर्वस्थानेषु असंख्यात लोकभक्तबहुभागमात्रत्वात् । तदेकभागमात्रेष्वेव कृष्णनीललेश्याद्वयस्थानानि असंख्यातगणहीनानि असंख्यात- १० लोकमात्राणि- = । ८ । ८-तेभ्यस्तत्रैव कृष्णनीलकपोतलेश्यात्रयस्थानानि तदेकभागबहुभागमात्राणि ९।९ । ९ । २ असंख्यातगुणहीनानि असंख्यातलोकमात्राणि- = ।। ८ । ८-पुनस्तदेकभागबहुभागमात्राणि कृष्णनील ९।९ । ९ । ३ कपोततेजोलेश्याचतुष्टयस्थानानि असंख्यातगणहीनानि असंख्यातलोकमात्राणि- Da। ८ । ८-पुनस्तदेक ९।९ । ९ । ४ भागासंख्यातलोकबहुभागमात्राणि कृष्णनीलकपोततेजःपद्मलेश्यापञ्चकस्थानानि असंख्यातगुणहीनानि असंख्यात युक्त उदय स्थान है। ये सभी असंख्यात लोक प्रमाण असंख्यात लोक प्रमाण होते हैं। यह १५ चार शक्ति स्थान सम्बन्धी उदय स्थानोंका प्रमाण जानना। अब चौदह लेश्या स्थान सम्बन्धी उदयस्थानोंका प्रमाण कहते हैं-प्रथम कृष्णलेश्या स्थानमें जितने शिलाभेद समान उत्कृष्ट शक्तिको लिये उदयस्थान हैं, वे सब उत्कृष्ट शक्तिको प्राप्त कृष्णलेश्याके सर्वोत्कृष्ट स्थानसे लेकर यथायोग्य कृष्णलेश्याके मध्यम स्थान पर्यन्त षट्स्थानपतित संक्लेशहानियुक्त होते हैं। ये असंख्यात लोक मात्र स्थान उत्कृष्ट शक्तिके स्थान जानना। इनसे २० असंख्यातगुणे हीन पृथ्वी भेद समान शक्तिसे युक्त केवल कृष्णलेश्याके स्थान असंख्यातलोक प्रमाण हैं। क्योंकि पृथ्वी भेद समान शक्ति युक्त सब स्थानों में असंख्यातलोकका भाग देकर उसके बहुभाग मात्र वे स्थान हैं। उस शेष बचे एक भागमें असंख्यात लोकका भाग देनेपर जो बहुभाग हो,उतने उनसे असंख्यातगुणे हीन कृष्ण और नील लेश्याके स्थान वहाँ ही हैं जो असंख्यात लोक प्रमाण हैं। उनसे असंख्यातगुणे हीन वहाँ ही कृष्ण, नील-कापोत । तीन लेश्याके स्थान असंख्यात लोकप्रमाण हैं,वे उस शेष बचे एक भागके योग्य असंख्यात । लोकका भाग देकर उसके बहुभाग हैं। पुनः उस शेष बचे एक भागके बहुभागमात्र कृष्ण, नील, कापोत, पीत इन चार लेश्याओंके स्थान उनसे असंख्यातगुणे हीन शक्तिवाले तथा असंख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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