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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ४९३ ।।८।८ मत्तमल्लिये तदेकभागाऽसंख्यातलोकभक्तबहुभागमात्रंगळु तेजोलेश्यारहित९।९।९।९।४ शुभलेश्याद्वयस्थानंगळसंख्यातलोकमानंगळप्पुवु = ।।८।८ मत्तमल्लिये तदेकभाग ९।९।९।९। ५ मात्रंगळु । केवलशुक्ललेश्यास्थानंगळसंख्यातलोकमानंगळु पूर्वमं नोडलसंख्यातगुणहीनंगळप्पुवु = ३८१ मत दोड बहुभागमप्पऽसंख्यातलोकगुणकाररहितदिदमसंख्यातगुणहीनत्वं ९।९।९।९।५ सिद्धमपुरिदं । मत्तमवं नोडलसंख्यातगुणहीनंगळु जलरेखासमानशक्तियुक्तंगळ्केवलशुक्ल- ५ लेश्यास्थानंगळसंख्यातलोकमात्रंगळप्पुवु = a ।१ मे घोडे धूलोरेखासमानशक्तिसद्ध ९।९।९ स्थानंगळोळु केवलशुक्ललेश्यास्थानंगळोळ पोक्क भागहारंगळ्णे गुणकारभूता संख्यातलोकबहुभागमं नोडलसंख्यातगुणहीनत्वदिदं । मत्तमंतायुबंधाऽबंधगतविंशतिपदंगळोलु प्रथमशिलाभेदसमानोत्कृष्टशक्तिगतकृष्णलेश्यास्थानंगळोळायुरबंधकस्थानंगळ कृष्णलेश्योत्कृष्टस्थानं मोदल्गोंडसंख्यातलोकभक्तबहभागमात्रा- १० a..८ । ८ पुनस्तत्रैव तदेकभागासंख्यातलोकभक्तबहुभागमात्राणि तेजोलेश्यारहितशुभलेश्याद्वयस्थानानि असंख्यातलोकमात्राणि ।। ८ । ८ पुनस्तत्रैव तदेकभागमात्राणि केवलशुक्ललेश्यास्थानानि २।९।९।९। ५ असंख्यातलोकमात्राण्यपि पूर्वस्मादसंख्यातगुणहीनानि = ।। ८ । १ । कुतः ? बहुभागरूपासंख्यात ९।९।९ । ९ । ५ लोकगुणकाररहितत्वात् । पुनस्तेभ्योऽसंख्यातगुणहीनान्यपि जलरेखासमानशक्तियुक्तानि केवलशुक्ललेश्यास्थानानि असंख्यातलोकमात्राणि = । ।१ । कुतः धूलिरेखासमानशक्तिसर्वस्थानेषु केवलशुक्ललेश्यास्थानेषु १५ ९।९।९ । प्रविष्टभागहाराणां गुणकारभूतासंख्यातलोकबहुभागादसंख्यातगुणहीनत्वात् । पुनस्तथायुर्बन्धाबन्धगतविंशतिपदेषु प्रथमशिलाभेदसमानोत्कृष्टशक्तिगतकृष्णलेश्यास्थानेषु आयुरबन्धस्थानानि कृष्णलेश्योत्कृष्ट स्थानमादि कृत्वा लेश्याओं के स्थान असंख्यात लोक मात्र हैं। पुनः उसीके शेष रहे एक भागमें उसके योग्य असंख्यात लोकसे भाग देकर बहुभाग मात्र तेजोलेश्या रहित दो शुभ लेश्याओंके स्थान असंख्यात लोक मात्र हैं। पुनः शेष रहे एक भाग मात्र केवल शुक्ल लेश्याके स्थान हैं । जो २० असंख्यात लोक मात्र होनेपर भी पहलेसे असंख्यातगुणे हीन हैं। क्योंकि बहुभागरूप असंख्यात लोक गुणाकार से रहित हैं । पुनः उनसे असंख्यातगुणे हीन भी जलरेखाके समान शक्तिसे युक्त केवल शुक्ललेश्याके स्थान असंख्यात लोक मात्र हैं। क्योंकि धूलिरेखाके समान शक्तिवाले सब स्थानों में से केवल शुक्ललेश्या सम्बन्धी स्थानोंमें प्रविष्ट भागहारोंके गुणाकारभूत असंख्यात लोक बहुभागसे असंख्यातगुणाकार हीन हैं अर्थात् वहाँ गुणाकारभूत असंख्यात २५ लोकका बहुभाग हैं और यहाँ एक भाग है,इससे असंख्यातगुणा हीन कहा है। अब आयु बन्धाबन्धगत बीस स्थानोंमें उदय स्थानोंका प्रमाण कहते हैं प्रथम शिलाभेद समान उत्कृष्ट शक्तिगत कृष्ण लेश्याके स्थानों में कृष्णलेश्याके उत्कृष्ट स्थानसे लेकर असंख्यात लोक प्रमाण आयुके अबन्ध स्थान हैं। उनसे वहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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