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________________ विषय-सूची . ५३ २८२ २८६ पापापमान २५५ २६३ २६८ द्विरूपधनधारा २२१ गति मार्गणा का स्वरूप २७८ द्विरूपघनाघन धारा २२३ नारकगति का स्वरूप २७८ उपमान के आठ भेद २३० तिर्यंचगति का स्वरूप २७६ अंगुल के तीन भेद . २३२ मनुष्यगति का स्वरूप २८० व्यवहारपल्य के रोम २३६ तिर्यंचगति और मनुष्यगति में जीवों के भेद २८१ सागरोपम का स्वरूप २४१ देवगति का स्वरूप २८१ उपमाप्रमाण के अर्धच्छेदों और वर्गशलाकाओं सिद्धगति का स्वरूप २८२ का कथन २४१ नरकगति में जीवों की संख्या तिर्यंचगति में जीवों की संख्या २८४ ३. पर्याप्तिप्ररूपणा अधिकार मनुष्यगति में जीव संख्या पर्याप्ति प्ररूपणाधिकार २५१ देवगति में जीव संख्या २६० पर्याप्ति के भेद और स्वामी २५१ ७. इन्द्रियमार्गणा अधिकार पर्याप्त और निर्वत्यपर्याप्त का कालविभाग लब्ध्यपर्याप्तक का स्वरूप २५६ इन्द्रिय शब्द का निरुक्तिपूर्वक अर्थ लब्धपर्याप्तक के क्षुद्रभव २५७ इन्द्रिय के भेद और उनका स्वरूप २६४ क्षुद्रभवों की संख्या का स्वामिभेद से विभाजन २५८ इन्द्रियों से युक्त जीव २६७ समुदघातगत केवली के अपर्याप्तपना २६० एकेन्द्रिय आदि के सम्भाव्य इन्द्रियाँ २६७ लब्ध्यपर्याप्तक आदि के गुणस्थान २६१ स्पर्शन आदि इन्द्रियों के विषयभूत क्षेत्र का जहाँ अपर्याप्तकाल में सासादन और असंयत परिमाण गुणस्थान नहीं होते २६२ इन्द्रियों का आकार ३०० इन्द्रियों के प्रदेशों का अवगाह ४. प्राणप्ररूपणा अधिकार स्पर्शन इन्द्रिय के प्रदेशों की अवगाहना ३०२ प्राणों की प्ररूपणा २६४ अतीन्द्रिय ज्ञानवाले जीव ३०३ पर्याप्ति और प्राण में भेद २६४ एकेन्द्रिय आदि जीवों की सामान्य संख्या ३०३ प्राणों के भेद एकेन्द्रियों की संख्या ३०४ प्राणों के स्वामी २६७ त्रसजीवों की संख्या एकेन्द्रिय आदि में प्राणों की संख्या २६७ त्रसजीवों की संख्या में विभाग का क्रम ५. संज्ञाप्ररूपणा अधिकार ८. कायमार्गणा अधिकार संज्ञा-प्ररूपणा २६६ कायमार्गणा ३११ संज्ञाओं की उत्पत्ति में कारण २६६ स्थावरकाय के पाँच भेद ३१२ संज्ञाओं के स्वामी २७१ बादर और सूक्ष्म का लक्षण वनस्पतिकाय के भेद ६. गतिमार्गणा अधिकार प्रत्येक और अनन्तकाय की पहचान ३१७ मार्गणा महाधिकार को कहने की प्रतिज्ञा २७३ साधारण वनस्पति का स्वरूप मार्गणा शब्द का निरुक्तिसिद्ध लक्षण २७४ बादर निगोद शरीरों का आधार ३२५ चौदह मार्गणाओं के नाम २७५ एक निगोद शरीर में जीवों का प्रमाण ३२६ आठ सान्तर मार्गणा २७६ सिद्धराशि के सम्बन्ध में शंका-समाधान ३२७ ३०१ ३०५ ३०६ ३१३ ३१६ ३२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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