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________________ गोम्मटसार जीवकाण्ड अधःप्रवृत्तकरण की हल रचना १०० अधःप्रवृत्तकरण की विशद्धता की अपेक्षा अल्पबहुत्व का कथन १०२ अधःप्रवृत्तकरण की अंकसंदृष्टि रचना १०५ अधःप्रवृत्तकरण की अर्थ संदृष्टि का स्पष्टीकरण १०६ अपूर्वकरण गुणस्थान का स्वरूप ११२ अपूर्वकरण में अंकसंदृष्टि और अर्थसंदृष्टि का क्रम ११३ अपूर्वकरण का विशेष कार्य ११८ अनिवृत्तिकरण का स्वरूप . सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान का स्वरूप १२१ उपशान्तकषाय गुणस्थान का स्वरूप १२६ क्षीणकषाय गुणस्थान का स्वरूप १२७ सयोगकेवली गुणस्थान का स्वरूप १२८ अयोगकेवली गुणस्थान का स्वरूप १२६ चौदह गुणस्थानों में गुणश्रेणि निर्जरा १२६ सिद्धपरमेष्ठी का स्वरूप ११६ १३७ पर्याप्त दो-इन्द्रिय आदि की जघन्य अवगाहना और उसके स्वामी १६७ शरीर की अवगाहना के विकल्प और उसके स्वामी १६७ उक्त अवगाहना स्थानों में गुणकार का विधान १७३ सूक्ष्मनिगोद लब्धाप्त की जघन्य अवगाहना से सूक्ष्मवायुकायिक लब्धपर्याप्त की जघन्य अवगाहना का गुणकार आवली का असंख्यातवाँ भाग है; उसकी उत्पत्ति का क्रम और उन दोनों की मध्य अवगाहना के भेद १८० सब अवगाहनास्थानों की उत्पत्ति का क्रम १६२ समस्त जीवसमासों के शरीर की अवगाहना के स्थापन से होनेवाली मत्स्य रचना को सूचित करने के लिए अवगाहनास्थानों का कथन १६३ कुलों की संख्या २०४ अलौकिक गणित २०७ अलौकिक मान के चार भेद . २०७ द्रव्यमान के दो भेद २०७ संख्यामान के तीन भेद २०७ संख्यात के तीन भेद २०७ असंख्यात के नौ भेद अनन्त के नौ भेद २०७ जघन्य परीतासंख्यात का प्रमाण लाने की विधि २०८ जघन्य परीतानन्त का कथन २११ जघन्य युक्तानन्त का कथन २१४ जघन्य अनन्तानन्त का कथन २१४ उत्कृष्ट अनन्तानन्त का प्रमाण २१५ द्विरूपवर्गधारा आदि का कथन २१५ आवली २१६ प्रतरावली २१६ पल्य २१६ सूच्यंगुल प्रतरागुल २१६ अभव्यराशि का प्रमाण सर्व जीवराशि का प्रमाण २१७ सर्व पुद्गलराशि का प्रमाण २१७ सर्व कालराशि का प्रमाण २१७ श्रेणिरूप आकाश के प्रदेश का प्रमाण २१७ २०७ १४६ २. जीवसमासप्ररूपणा जीवसमास का लक्षण जीवसमास की उत्पत्ति के हेतु १४३ संक्षेप से जीवसमास विस्तार से जीवसमास जीवसमास के चार अधिकार १४६ स्थानाधिकार का कथन १४७ एकेन्द्रिय-विकलेन्द्रिय के जीवसमास १५१ पंचेन्द्रियगत जीवसमास के भेद जीवसमास के भेदों का विशेष कथन आकारयोनि के भेद १५५ जन्म के भेद और गुणयोनि १५५ सम्मूर्छन आदि जन्मों के स्वामी १५६ जन्म के भेदों में योनिभेद १५७ योनियों के विस्तार से भेद १५६ गति के आश्रय से जन्म का कथन १६० नरकादि गतियों में वेद का निर्णय १६१ जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना के स्वामी १६१ इन्द्रियों के आश्रय से उत्कृष्ट अवगाहना और उसके स्वामी १६३ १५१ २१६ २१७ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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