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________________ गोम्मटसार जीवकाण्ड ३७४ ३३३ ३७६ ३८२ ३४७ नित्यनिगोद का लक्षण ३३० आहारक की निरुक्ति त्रसकाय का वर्णन ३३१ आहारक मिश्रकाययोग ३७५ त्रसों का निवासस्थान ३३१ कार्मण काययोग ३७५ वनस्पति की तरह अन्य जीवों में भी प्रतिष्ठित- योगों की प्रवृत्ति का प्रकार ३७७ अप्रतिष्ठित भेद योगरहित आत्मा का स्वरूप ३७८ स्थावरकायिक और त्रसकायिकों के शरीर का शरीरों में कर्म-नोकर्म विभाग ३७६ आकार ३३४ औदारिक आदि शरीरों में समयप्रबद्ध कायमार्गणा से रहित जीव ३३५ आदि की संख्या पथ्वीकायिक आदि जीवों की संख्या ३३६ शरीरों के समयप्रबद्ध और वर्गणा की अवगाहना प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित वनस्पति जीवों की में भेद संख्या ३३६ विस्रसोपचय का स्वरूप ३८४ साधारण जीवों का परिमाण कर्म, नोकर्म के उत्कृष्ट संचय का स्वरूपादि ३८६ बादरकाय और सूक्ष्मकाय का विभाग उत्कृष्ट संचय की सामग्री ३८६ बादर-तैजस्कायिक और बादर-वायुकायिक शरीरों की उत्कृष्ट स्थिति ३८७ पर्याप्त जीवों की संख्या । ३४५ उत्कृष्ट स्थिति में गुणहानि आयाम का प्रमाण ३८७ साधारण बादरों में पर्याप्त और अपर्याप्त जीवों औदारिक आदि समयप्रबद्धों के बन्ध, उदय, का परिमाण ३४६ सत्त्वद्रव्य का प्रमाण ४०६ सामान्य त्रसराशि, पर्याप्त त्रसराशि और औदारिक और वैक्रियिक शरीरों के स्थितिअपर्याप्त त्रसराशि का परिमाण बन्ध में विशेषता ४०७ अर्द्धच्छेदों के आधार पर प्रकृत राशि औदारिक का उत्कृष्ट संचय ४०६ लाने का विधान 349 वैक्रियिक का उत्कृष्ट संचय ४१० तैजस और कार्मण का उत्कृष्ट संचय ६. योगमार्गणा अधिकार प्रतिसमय, एक-एक समय-प्रबद्ध का उदय कैसे योग का साधारण लक्षण ३५४ होता है? ४१३ योग के भेदों का लक्षण ३५५ त्रिकोण रचना में स्थित सत्त्वद्रव्य को जोड़ने सत्य मनोयोग आदि का लक्षण ३५६ की तीन विधियाँ अनुभय वचन योग का लक्षण ३५८ आयुकर्म के बन्ध, उदय, सत्त्व की विशेषता ४४१ दस प्रकार के सत्यवचन तथा उनके उदाहरण ३५६ योगमार्गणा में जीवों की संख्या ४४७ अनुभय वचन के भेद ३६२ त्रियोगी जीवों की राशि सत्यादि वचन और मनोयोग के कारण ३६४ काययोगी जीवों की राशि ४४६ सयोगकेवली की दिव्यध्वनि ३६५ सत्य मनोयोग आदि से युक्त जीवराशि ४५१ सयोगकेवली में मनोयोग . ३६६ दो योगवालों में वचनयोगवालों का प्रमाण ४५३ औदारिक काययोग ३६८ दो योगवालों में काययोगियों का प्रमाण ४५३ औदारिक मिश्रकाययोग ३६६ कार्मणकाययोगियों का प्रमाण वैक्रियिक काययोग औदारिक-मिश्र-काययोगियों का प्रमाण वैक्रियिक मिश्रकाययोग औदारिककाययोगियों का प्रमाण ४५३ आहारक काययोग ३७२ वैक्रियिककाययोगियों का प्रमाण आहारक शरीर का स्वरूप ३७३ आहारक तथा आहारक मिश्रयोगियों का प्रमाण ४६१ ४११ ४१८ ४४८ ४५३ ४५३ ३७१ ४५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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