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________________ ४०८ गो० जीवकाण्डे णवरि य दुसरीराणं गलिदवसेसाउमेत्तहिदिबंधो। गुणहाणीण दिवड्ढं संचयमुदयं च चरिमम्हि ।।२५५।। विशेषोऽस्ति द्विशरीरयोगलितावशेषायुर्मात्रः स्थितिबंधः । गुणहानीनां द्वयर्धः संचयउदयश्चचरमे॥ औदारिकवैक्रियिकशरीरद्वयक्कं शरीरग्रहणप्रथमसमयं मोदल्गोंडु स्वस्थितिचरमसमयपय्यंतं बध्यमानशरीरसमयप्रबद्धंगळपे गलितावशेषस्वायुःस्थितिमात्र स्थितिबंधमक्कुमदेते दोडे शरीरग्रहणप्रथमसमयदोळ कट्टिद समयप्रबद्धक्के संपूर्णस्वायुःस्थितिमात्रमकुं। द्वितीयसमयदोळ कट्टिद समयप्रबद्धक्क एकसमयोनस्वायुःस्थितिमात्रस्थितिबंधमकुं । तृतीयसमयदोळ कट्टिद समयप्रबद्धक्के द्विसमयोनस्वायुस्थितिमात्रस्थितिबंधमकुं । इंतु चतुर्थांद्युत्तरोत्तरसमयगळोळ १. कट्टिद समयप्रबद्धंगळ्गे स्थितिबंधंगळु गलितावशेषायुःप्रमितंगलेंदरियल्पडुवुवु । चरमसमयदोळु कट्टिद समयप्रबद्धक्के स्थितिबंधमेकसमयमात्रमकुं प्रथमसमयं मोदल्गोंडु चरमसमयपथ्यंतं कट्टिद समयप्रबधंगळगे स्वायुरवसानसमयमनतिक्रमिसि स्थितिसत्वासंभवमप्पुरिदं। चरमसमयदोळ्गलितावशेषसर्वसमयप्रबद्घाळकचिन्न्यूनद्वयर्धगुणहानिमात्रसंचयंगळो - म्र्मोदलोळे उदयमक्कुमदरिना चरमसमये दत्तणि मुंदणसमयदोळु जीवक्के तच्छरीरद्वयदोलिरे१५ विल्लवप्पुरदं । देवर्करोळं नारकरोलं वैक्रियिशरीर संचयमक्कुं, मनुष्यरोलं तिय्यंचरोळ मौदारिकशरीरसंचयमक्कुमौदारिकशरीरसंचयमावेडयोळेतप्पसामग्रियप्पावश्यकंगळनुळ्ळनोळुत्कृष्टसंचयमक्कुम वोड: औदारिकवक्रियिकशरीरद्वयस्य शरीरग्रहणप्रथमसमयादारभ्य स्वस्थितिचरमसमयपर्यन्तं बध्यमानशरीरसमयप्रबद्धानां स्थितिबन्धः गलितावशेषस्वाय:स्थितिमात्रो भवति । तद्यथा-शरीरग्रहणप्रथमसमये बद्धस्य २० समयप्रबद्धस्य स्थितिबन्धः संपूर्णस्वायुःस्थितिमात्रः । द्वितीयसमये बद्धस्य समयप्रबद्धस्य स्थितिबन्धः, एकसमयोनस्वायुःस्थितिमात्रः । तृतीयसमये बद्धस्य समयप्रबद्धस्य स्थितिबन्धः द्विसमयोनस्वायुःस्थितिमात्रः। एवं चतुर्थाद्युत्तरोत्तरसमयेषु बद्धानां समयप्रबद्धानां स्थितिबन्धो गलितावशेषस्वायुःस्थितिमात्रो भवन चरमसमये बद्धस्य समयप्रबद्धस्य स्थितिबन्धः एकसमयमात्रो भवति । प्रथमसमयादारभ्य चरमसमयपर्यन्तं बद्धानां समयप्रबद्धानां स्वायुरवसानसमयमतिक्रम्य अवस्थित्यसंभवात् चरमसमये गलितावशेषसर्वसमय२५ प्रबद्धानां किंचिदूनद्वयर्धगुणहानिमात्राणां देवनारकयोक्रियिकशरीरस्य तिर्यग्मनुष्ययोरौदारिकशरीरस्य च औदारिक और वैक्रियिक शरीरका शरीरग्रहणके प्रथम समयसे लेकर अपनी स्थितिके अन्तिम समय पर्यन्त बँधनेवाले समयप्रबद्धोंका स्थितिबन्ध गलनेसे जितनी आयु शेष रहती है उतनी स्थितिको लिये हुए होता है। जैसे, शरीरग्रहणके प्रथम समयमें बद्ध समयप्रबद्धका स्थितिबन्ध अपनी सम्पूर्ण आयुकी स्थिति प्रमाण होता है। दूसरे समयमें बद्ध समयप्रबद्धका ३० स्थितिबन्ध एक समय कम अपनी आयुकी स्थितिमात्र होता है। तीसरे समयमें बद्ध समय प्रबद्धका स्थितिबन्ध दो समय कम अपनी आयुकी स्थिति प्रमाण होता है। इसी तरह चतुर्थ आदि उत्तरोत्तर समयोंमें बद्ध समयप्रबद्धोंका स्थितिबन्ध गलनेसे शेष रही अपनी आयुकी स्थिति प्रमाण होता है। तथा अन्तिम समयमें जो समयप्रबद्ध बँधता है, उसका स्थितिबन्ध एक समय मात्र होता है। प्रथम समयसे लेकर अन्तिम समय पर्यन्त बद्ध समय प्रबद्धोंका ३५ अपनी आयुके अन्तिम समयके बाद ठहरे रहना असम्भव होनेसे अन्तिम समयमें निर्जरासे १. मय दोले जीवक्के । २. म दोलिखप्पु । ३. बकशरीरग्रहण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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