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________________ ४०७ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका विवक्षितसमयप्रबद्धस्थितिचरमस्थितिनिषेकदोळु किंचिदूनद्वयर्द्धगुणहानिगुणितसमयप्रबद्धमात्रसत्वद्रव्यमक्कुं परमार्थवृत्तिथिदं इनितु सत्त्वद्रव्यं प्रतिसमयं संभविसुगुम बुदत्थं । ____ औदारिकवैक्रियिकशरीरसमयप्रबधंगळ्गेविशेषमुंटदेते दोडे तच्छरीरद्वयगहणप्रथमसमयं मोदल्गोंडु स्वायुश्चरमसमयपर्यंतं शरीरनामकर्मोदयविशिष्टजीवं प्रतिसमयमे कैकतच्छरीरसमयप्रबद्धमं बध्नाति तत्तच्छरीरस्वरूपतेयरिदसुगुमुदयमंतल्तु । मत्ततेदोडे शरीरग्रहणप्रथमसमयदोळ बद्धमाद समयप्रबद्धदोळु प्रथमनिषेकमो दुदयिसुगुं । तदेकदेशस्तद्ग्रहणेन गृह्यते एंदितौपचारिकन्यायमनायिसि प्रतिसमयमेकः समयप्रबद्ध उदेति एंदितु पळल्पटुदु। द्वितीयसमयदोळु प्रथमसमयसमयप्रबद्धद द्वितीयनिषेकमुं द्वितीयसमयसमयप्रबद्धद प्रथमनिषेकमुमुदयिसुमितु तृतीयादिसमयंगळोळु मुंपेन्दतेकैकनिषेकवृद्धियिदमुदयिसुगुं चरमसमयदोलुदयमुं संत्वसंचयमुं द्वयर्द्धहानिगणितसमयप्रबद्धमात्रमक्कुमाहारकशरीरक्कममी क्रममेयक्कुमि विशेषं आहारकशरीर- १० ग्रहणप्रथमसमयं मोदलगोंडु स्वस्थितियंतर्मुहूर्त्तकालावसानसमयदोळु किंचिदूनद्वयर्धगुणहानिगुणितसमयप्रबद्धमात्रद्रव्यक्कुदयमुं सत्वसंचयमं युगपत्तक्कु बी विशेषमरियल्पडुगुं। अनंतरमौदारिकवैक्रियिकशरीरंगळगे विशेषमं पेळ्दपं । तत्तच्छरीररूपेण परिणमयतीत्यर्थः । तर्हि उदयः कियान् ? इति चेदुच्यते-शरीरग्रहणप्रथमसमये बद्धसमयप्रबद्धस्य प्रथमनिषेकः उदेति तदेकदेशस्य उपचारेण प्रतिसमयमेकः समयप्रबद्ध उदेतीति कथनात् । १५ द्वितीयसमये प्रथमसमयबद्धसमयप्रबद्धस्य द्वितीयनिषेकः, द्वितीयसमयबद्धसमयप्रबद्धस्य प्रथमनिषेकः एवं दो उदयतः । एवं ततीयादिसमयेष प्राग्वदेकैकनिषेकवद्धयोदयक्रमेण चरमसमये उदयः सत्त्वसंचयश्च यग पवयर्धगुणहानिगणितसमयप्रबद्धमात्रो भवति । आचार्येणापि तथा वक्ष्यते । आहारकशरीरस्याप्येवमेव । अयं तु विशेषः, तच्छरीरग्रहणप्रथमसमयादारभ्य स्वस्थित्यन्तर्महुर्तकालावसानसमये किंचिदूनद्वयर्धगणहानिगणितसमयप्रबद्धमात्रद्रव्यस्योदयः सत्वसंचयश्च युगपद्भवतीति विशेषो ज्ञातव्यः ॥२५४॥ अथौदारिक- २० क्रियिकशरीरयोः स्थितिबन्धोदयसत्वविशेषमाह शंका-तब उदय कितना होता है ? समाधान-शरीरग्रहणके प्रथम समयमें बद्ध समयप्रबद्धका प्रथम निषेक उदयमें आता है । समयप्रबद्धके एकदेशको उपचारसे समयप्रबद्ध मानकर यह कहा है कि प्रतिसमय एक समयप्रबद्धका उदय होता है। दूसरे समयमें प्रथम समयमें बँधे समयप्रबद्धका दूसरा २५ निषेक और दूसरे समय में बँधे समयप्रबद्धका प्रथम निषेक इस तरह दो निषेकोंका उदय होता है। इसी तरह तीसरे आदि समयोंमें पहलेकी तरह एक-एक निषेककी वृद्धिके उदयके क्रमसे अन्तिम समयमें उदय और सत्त्वका संचय एक साथ डेढ़ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध मान होता है। आचार्य भी आगे ऐसा कहेंगे। आहारक शरीरका भी ऐसा ही है। किन्त यह विशेष है कि आहारक शरीरके ग्रहणके प्रथम समयसे लेकर अपनी स्थिति अन्तमुहूर्त १. कालके अन्तिम समयमें कुछ कम डेढ़ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध मात्र द्रव्यका उदय और सत्त्वसंचय एक साथ होता है ।।२५४।। आगे औदारिक और वैक्रियिक शरीरोंके स्थितिबन्ध उदय और सत्त्वमें विशेष कहते हैं १. ब भवति । आहारकशरीरस्य तु तं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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