SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 448
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९० गो० जीवकाण्डे कार्मणशरीरस्थित्येकगुणहान्यायामं प १ [इल्लेि सर्वस्थानंगळल्लि यथायोग्यवागि छे व छ अपवर्तनं माडल्पडुगुं।] ___इन्नौधारिकादिशरीरंगळ स्थितिमन्योन्याभ्यस्तराशिगळ्पेकल्पडुगुं। तंतम्म शरीरस्थितिय ___ नानागुणहानिशलाकेगळं विरलिसि प्रतिरूपं द्विकभनित्तु गितसंवर्ग माडुत्तिरलु तंतम्मन्योन्य भ्यस्तराशिगळपुटुवुजुमदते दोडिल्लिगुपयोगियप्प त्रैराशिकं माडल्पडुगुं। इनितु विरलनराशिप्रमितद्विकसंवर्गमं माडुत्तिलितप्प राशि पुटुत्तिरलागळे नितु विरलनराशिप्रमितद्विकसंवर्गमं माडले तप्प राशि पुटुगुम दितु त्रैराशिकं माडि लब्धमनीकरणसूत्रदिदं साधिसुगे। दे २ फ। 35 देय २ प्रविछे छे छे ९ ३ विप३ २१ a एतावत्यः । छे व छ । अथौदारिकादिशरीराणां गुणहान्यायामाः साध्यन्ते । तद्यथा-एतावन्नानागुणहानीनां १० यद्येतावान् स्थित्यायामः, तदा एकगुणहानेः कियान् स्थित्यायामः इति त्रैराशिकेन प्र ३ । फ प ३ । इ १ । लब्धः औदारिकशरोरस्थितेरेकगुणहान्यायामः २१। प्रसा ३ ३ । फ सा ३३ । इ१ । लब्धः वैक्रियिक शरीरस्थितेरेकगुणहान्यायामः २१।प्र। फ २१। इ१ । लब्धः आहारकशरीरस्थितेरेकगुणहान्यायामः २१। प्र, छे व छे । । फ सा ६६ । इ १। लब्धः तैजसशरीरस्थितेरेकगुणहान्यायामः प । छे व छ । प्र छे व छे । फ, सा ७० को २ । इ १ । लब्बः कार्मणशरीरस्थितेरेकगणहान्यायामः प । औदारिकादि छे व छ १५ मात्र नाना गुणहानि जानना । अब औदारिक आदि शरीरोंके गुणहानि आयामको साधते हैं ___ यदि अपने-अपने नाना गुणहानि प्रमाणका आयाम अपनी-अपनी स्थिति प्रमाण होता है,तो एक गुणहानिका आयाम कितना हुआ! ऐसा त्रैराशिक करनेपर लब्धराशि प्रमाण गुणहानिका आयाम होता है । सो औदारिकमें प्रमाणराशि अन्तर्मुहूर्तसे भाजित तीन पल्य, २० इच्छाराशि एक, फलराशि तीन पल्य । सो औदारिक शरीरकी स्थितिकी एक गुणहानिका आयाम अन्तर्मुहूर्तमात्र हुआ। वैक्रियिक शरीरमें प्रमाणराशि अन्तर्मुहूर्तसे भाजित तैतीस सागर, फलराशि तैंतीस सागर, इच्छाराशि एक। सो वैक्रियिक शरीरकी स्थितिकी एक गुणहानिका आयाम अन्तर्मुहूर्त आया। आहारक शरीरमें प्रमाणराशि संख्यात, फलराशि अन्तर्मुहूर्त, इच्छाराशि एक । सो छोटा अन्तमुहूर्त प्रमाण गुणहानि आयाम हुआ। तैजसमें प्रमाणराशि पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेदोंसे हीन पल्यके अर्धच्छेदोंसे असंख्यातगुणी। २५ फलराशि छियासठ सागर । इच्छाराशि एक । सो संख्यात पल्यमें पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेदोंसे हीन पल्यके अर्धच्छेदोंसे असंख्यात गुणे प्रमाणका भाग देनेपर जो लब्ध आवे, १ म प्रती नास्ति [ ] पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy