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________________ छ व छे कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ३८९ फ १ । इ । २ १ १। लब्धमाहारकशरीरस्थितिगे नानागुणहानिशलाकेगळिप्पुवु २१ १ २१ ५७।५१ फ१।इ। सा ६६ लब्धं । तैजसशरीर स्थितिगे नानागुणहानिशलाकेगळप्पुवु छ व छ । छे-व छे । - प्र सा ७० को २ .फ १ । इ। सा ७० को २। लब्धं कार्मणशरीरस्थितिगे नानागुणहानिशलाकेळप्पुवु । छे-व छ । इंतु पेळल्पट्ट नानागुणहानिशलाकेगळौदारिकादिशरीरंगळ स्थितिगळ्गे भागहारप्पंतु त्रैराशिकंगलं माळपुदंतु माडुत्तिरलेकगुणहानि आयामंगळप्पुवद दोडे ५ इनितु नानागुणहानिशलाकेगळ्गत्तलानुमितु स्थित्यायाममागुत्तिरलु आगळोदु गुणहानिर्गनितायाममक्कुम दितु त्रैराशिकंगळं माडिबंद लब्धंगळौदारिकादिशरीरस्थितिगळगेकगुणहान्यायामंगळप्युवु ए ३ फ।१३। इ।१। लब्धमौदारिकशरीरस्थित्येकगुणहान्यायामं २१। प्रसा ३३ २१ २१ फ।सा ३३।इ।१।लब्धं वैक्रियिकशरीरस्थित्येकगुणहान्यायामं २१ प्र फ २१ ।।१। लब्धमाहारकशरीरस्थितिगेकगणहान्यायाम २१। प्र।छे-व छे । फ सा६६। इ।१ लब्धं १० तैजसशरीरस्थित्येकगुणहान्यायाम। प१ प्रछे व छ। फ, सा ७० को २। इ १। लब्धं लब्धाः नानागुणहानिशलाकाः औदारिकशरीरस्थितेरेतावत्यः ३ । एवं वैक्रियिकादिशरीराणामपि ताः २१ साधयेत् । तत्र प्र२१। फ१। इ सा ३३ लब्धा वैक्रियिकशरीरस्थिते नागुणहानिशलाका एतावत्यः सा ३३ । प्र२१। फ १। इ २११। लब्धाः आहारकशरीरस्थित नागुणहानिशलाका एतावत्यः २१ २११। प्र सा ६६ । फ १ । इ सा ६६ लब्धास्तैजसशरीरस्थिते नागुणहानिशलाका एतावत्यः- १५ २१ छे। व । छे। छे व छे । प्र सा ७० को २ । फ १ । इ सा ७० को २, इ लब्धाः छे व छे कार्मणशरोरस्थिते नागुणहानिशलाका उतना लब्ध आता है ; उतना ही औदारिक शरीरकी स्थितिकी नाना गुणहानि शलाकाका प्रमाण है। ऐसे ही वैक्रियिक शरीरमें प्रमाणराशि अन्तमहतं. फलराशि एक, इच्छाराशि तैंतीस सागर । सो तैतीस सागरको अन्तर्मुहूर्तका भाग देनेपर जो प्रमाण आवे, उतना नाना गुणहानि शलाकाका प्रमाण जानना।.आहारक शरीर में प्रमाणराशि छोटा अन्तर्मुहूर्त, फल- २० राशि एक, इच्छाराशि बड़ा अन्तर्मुहूर्त है।सो बड़े अन्तर्मुहूर्त में छोटे अन्तर्मुहूर्तका भाग देनेपर जो प्रमाण आवे, उतनी नाना गुणहानि जानना। तैजस शरीरमें प्रमाणराशि अन्तर्मुहूर्त, फलराशि एक, इच्छाराशि छियासठ सागर है। सो प्रमाणराशिका इच्छाराशिमें भाग देनेपर पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेदोंसे हीन पल्यके अर्धच्छेदोंको असंख्यातसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतनी नाना गुणहानि तैजसकी जानना। कार्मणशरीर में प्रमाणराशि अन्तर्मुहूर्त, २५ फलराशि एक, इच्छाराशि मोहकी स्थितिकी अपेक्षा सत्तर कोडाकोड़ी सागर है। सो प्रमाणराशिका इच्छाराशिमें भाग देनेपर पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेदोंसे हीन पल्यके अर्धच्छेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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