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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ३९१ दिण्णच्छेदेणवहिद इट्ठच्छेदेहि पयदविरळण भजिदे । लद्धमिद इट्टरासीणण्णोहदीए होदि पयदो रासी॥ एंदी सूत्राभिप्रायदिदं लोकार्द्धच्छेदंगाळदं औदारिकशरीरस्थितिनानागुणहानिशलाकाराशियं भागिसि प ३ ... तल्लब्धमितमिष्टराशियप्प लोकमं वग्गितसंवर्ग माडुत्तिरलु २ । छे छे छे. पुट्टिद राशिधौदारिकशरीरस्थितिगन्योन्याभ्यस्तराशिप्रमाणमसंख्यातलोकमक्कु = । मंते ५ वैक्रियिकशरीरस्थितिनानागुणहानिशलाकाराशियं लोकार्द्धच्छेदंगळिदं भागिसि सा ३३ . २१ छे छे छे ९ शरीरस्थितीनामन्योन्याभ्यस्तराशयस्तु त तन्नानागुणहानिशलाकाः विरलयित्वा प्रतिरूपं द्विकं दत्त्वा वगितसंवर्गे कृते समुत्पद्यन्ते तद्यथा-एतावद्विरलनराशिप्रमितद्विकसंवर्गे कृते यद्येतावान् राशिरुत्पद्यते तदा एतावद्विरलनराशिप्रमितद्विकसंवर्गे कृते को राशिरुत्पद्यते ? इति त्रैराशिकं कृत्वा दे २ देय २ प्र वि छे छे छे ९ ।' फ = । इ वि प३। १० । लब्धं करणसूत्रेणानीयते दिण्णच्छेदेणवहिदइछुच्छेदेहि पयदविरलगं भजिदे। लद्धमिदइट्ठरासोगण्णोण्णहदोए होदि पयदधणं ।। उतना गुणहानि आयाम जानना। कार्मण शरीरमें प्रमाणराशि पल्यकी वर्गशलाकाके अर्धच्छेदोंसे हीन पल्यके अर्धच्छेद मात्र, फलराशि सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर, इच्छाराशि एक । सो संख्यात पल्यमें पल्यको वर्गशलाकाके अर्धच्छेदोंसे हीन पल्य के अर्धच्छेदोंका भाग देनेपर जो लब्ध आवे, उतना गुणहानि आयाम जानना। इस प्रकार सर्वत्र एक गुणहानिका १५ आयाम जानना। - विशेषार्थ-इतने-इतने समयोंके समूहका नाम एक गुणहानि है। समस्त स्थिति में जितनी गुणहानियाँ हों,उसके प्रमाणका नाम नाना गुणहानि है। अपने-अपने योग्य अन्तमुहूर्त के जितने समय हो,उतना गुणहानि आयाम है । आयाम नाम लम्बाईका है। जैसे छह नाना गुणहानिका अड़तालीस समय प्रमाण स्थिति आयाम होता है तो एक गुणहानिका २० आयाम आठ-आठ समय हुआ। नाना गुणहानि प्रमाण दो-दो रखकर परस्पर में गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न होती है, उसे अन्योन्याभ्यस्त राशि कहते हैं। जैसे नाना गुणहानिका प्रमाण छह । सो छहका विरलन करके एक-एक जगह दोके अंक रखकर परस्पर में गुणा करनेसे ६४ अन्योन्याभ्यस्तराशि होती है। इसी प्रकार औदारिक आदि शरीरोंकी स्थितिकी अन्योन्याभ्यस्त राशि लानेके २५ लिए उनकी नाना गुणहानि शलाकाओंका विरलन करके प्रत्येकपर दो देकर उन्हें परस्परमें गुणा करना चाहिए। सो लोकके अर्धच्छेद प्रमाण दोके अंक रखकर उन्हें परस्परमें गुणा करनेपर लोकराशि उत्पन्न होती है,तो नाना गुणहानि प्रमाण दोके अंक रखकर परस्परमें गणा करनेपर कितने लोक होंगे। इस प्रकार त्रैराशिक करना। इसका लब्ध लानेके लिए करण सूत्र कायमार्गणा गाथा २१४ में कहा है। उसके अनुसार देयराशि दोका ३० अधच्छेद एक, उसका भाग इष्टराशिके अर्द्धच्छेद लोकके अर्धच्छेदोंमें देनेसे उतने ही रहे। " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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