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________________ गो० जोवकाण्डे पानसमागममदाा५५ अनतरं सयोगकेवलियोळु मनोयोगसंभवप्रकारमं गाथाद्वयदिदं पेळ्दपं । मणसाहेयाणं वयणं दिट्ट तप्पुव्वमिदि सजोगम्हि । उत्तो मणोवयारेणिंदियणाणेण हीणम्हि ॥२२८॥ मनःसहितानां वचनं दृष्टं तत्पूर्वमिति सयोगे । उक्तो मन उपचारेणेंद्रियज्ञानेन होने ॥ इंद्रियज्ञानविहीने मतिज्ञानविहीनमप्प सयोगनोळ मुख्यवृत्तियिदं मनोयोगाभावमक्कुमादोडमा मनोयोगमुपचारदिंदमुटदु परमागमदोळु पेळल्प टुदा उपचारमुं निमित्तप्रयोजनंगळनुळ्ळु दन्नवरं निमित्तं पेटल कमागिये वचनं वर्णपदवाक्यात्मकमप्प वाग्व्यापार काणल्पद्रुदु । इति इति हेतोः इदु कारणमागमनसोऽस्मदाद्यनतिशयपुरुषरो काणल्पट्ट धम्म सातिशयपुरुषनप्प भगवंतनोळु केवलियोळदेंतु कल्पिसल्पडुगुमेनल्वड दोडे अदु कारणमागिये केवलियोळु मुख्यमनोयोगक्कभावदिदमे तत्कल्पनारूपोपचारं पेळल्पटुददक्के प्रयोजमीग पेळल्पडुत्तिदे। अंगोवंगुदयादो दव्वमणह्र जिणिंदचंदम्हि । मणवग्गणखंधाणं आगमणादो दु मणजोगो ॥२२९॥ अंगोपांगोदयतो द्रव्यमनोत्थं जिनेंद्रचंद्रे । मनोवर्गणास्कंधानां आगमनतस्तु मनोयोगः॥ १५ घटनात् ॥२२७॥ अथ सयोगकेवलिनि मनोयोगसंभवप्रकारं गाथाद्वयेनाह इन्द्रियज्ञानेन-मतिज्ञानेन, विहीने सयोगिनि मुख्यवृत्त्या मनोयोगाभावेऽपि उपचारेण मनोयोगोऽस्तीति परमागमे कथितः । उपचारो हि निमित्त प्रयोजनवानेव । तत्र निमित्तं यथा अस्मदादेः छद्मस्थस्य मनोयुक्तस्य तत्पूर्वकं मनःपूर्वकमेव वचनं वर्णपदवाक्यात्मकवाग्व्यापारो दृष्ट इति कारणात् । अस्मदाद्यनतिशयपुरुषे दृष्टो धर्मः सातिशयपुरुषे भगवति केवलिनि कथं कल्पते ? इति न च वाच्यं, तत्कारणस्य मुख्यमनोयोगस्य केवलिन्यभावादेव तत्कल्पनारूपोपचारः कथितः । तस्य प्रयोजनमधुना कथयति ॥२२८॥ जनोंके इष्ट पदार्थों में संशय आदिको दूर करके सम्यग्ज्ञानको उत्पन्न करनेसे सत्य वचन योगपना सिद्ध है । इस तरह वह उभय योगरूप होती है ॥२२७॥ आगे सयोगकेवलीमें दो गाथाओंसे मनोयोगको बतलाते हैं इन्द्रियज्ञान अर्थात् मतिज्ञानसे रहित सयोगकेवलीमें मुख्य रूपसे मनोयोगका २५ अभाव होनेपर भी उपचारसे मनोयोग है। ऐसा परमागममें कहा है। उपचारके होने में निमित्त और प्रयोजन दो कारण होते है। निमित्त इस प्रकार है-जैसे हमारे जैसे मनसे युक्त छद्मस्थ जीवोंके तत्पूर्वक अर्थात् मनपूर्वक ही वचन अर्थात् वर्णपदवाक्यात्मक वचन व्यापार देखा जाता है,अतः केवलीके भी मनोयोगपूर्वक वचन कहा है। शंका-हमारे जैसे अतिशयरहित पुरुषोंमें देखा गया धर्म सातिशय पुरुष भगवान् ३० केवलीमें कैसे कल्पना करते हैं ? समाधान-ऐसा मत कहिए, उसका कारण मुख्य मनोयोगका केवलीमें अभाव होनेसे ही मनोयोगकी कल्पनाका उपचार कहा है । अब उपचारका प्रयोजन कहते हैं ।।२२८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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