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कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका
३६३ यंबुदु । इदं वज्जिसुवेने बिदु मोदलाद परिहरणभाषे प्रत्याख्यानि एंबुदु । यिदु बलार्कयो मेण पताकयो एंबिदु मोदलाद संदेहभाष संशयवनि एंबुदु । ____ अंतक्कु बिदु मोदलाद इच्छानुवृत्तिभाषे इच्छानुलोमवचनि एंबुदु । ओंदु च शब्दं समुच्चयार्थमोंदु चरम च शब्दमनुक्तसमुच्चयात्थं ।
णवमी अणक्खरगदा असच्चमोसा हवंति भासाओ।
सोदाराणं जम्हा वत्तावत्तंससंजणया ॥२२६॥ नवमी अनक्षरगता असत्यमृषा भवंति भाषाः। श्रोतृणां यस्माद्वयक्ताव्यक्तांशसंजनिकाः॥
अनक्षरगता अनक्षरात्मिकेयप्प द्वौद्रियाद्यसंज्ञिपंचेंद्रियपयंतमप्प जोवंगळ स्वस्वसंकेतप्रशिकेयप्प भाष नवमी ओंभत्तनेयनुभयभाषे । पूर्वगाथोक्तानुभय भाषाष्टकापेक्षेयिमितामंत्रण्यादिगळं असत्यमृषाः। सत्यासत्यलक्षणरहितंगळनुभयभाषेगळप्पुविल्लि कारणं पेळल्पडुगुं। १० यस्मात्कारणात् आवुदोंदु कारणदिंद श्रोतृजनंगळग सामान्यदिदं व्यक्तमं विशेषदिदमव्यक्तमुमें बी व्यक्ताव्यक्ताावयवंगळगे संज्ञापिकेगळप्प प्रकाशिकगळे भाषेगळप्पवत कारणदिदं सामान्यरूपदिदं व्यक्तार्थत्वदिदं असत्यंगळे दितुं नुडियलु शक्यंगळल्तु । विशेषस्वरूपदिदमव्यक्तार्थत्वविवं सत्यंगळे दितुं नुडियलु शक्यमल्तुवितेत्तलानु परवनुभयभाषेगळु संभविसुगुमप्पोडे अवुमिल्लिये ई भाषा प्रज्ञापनी। इदं वर्जयामीत्यादिपरिहरणभाषा प्रत्याख्यानी। किमिदं बलाका वा पताका वा इत्यादि- १५ संदेहभाषा संशयवचनी। तथैव मयापि भवितव्यमित्यादि इच्छानुवृत्तिभाषा इच्छानुलोमवचनी। एकश्चशब्दः समुच्चयार्थः चरमश्चशब्दोऽनुक्तसमुच्चयार्थः ॥२२५॥
____ अनक्षरगता अनक्षरात्मिका द्वीन्द्रियाद्यसंज्ञिपञ्चेन्द्रियपर्यन्तजीवानां स्वस्वसंकेतप्रदर्शिका भाषा नवमी पूर्वगाथोक्तानुभयभाषाष्टकापेक्षया । एवमामन्त्रण्याद्याः असत्यमृषा सत्यासत्यलक्षणरहिता अनुभयभाषा भवन्ति । अत्र कारणमुच्यते यस्मात्कारणात् श्रोतृजनानां सामान्येन व्यक्तानां विशेषेणाव्यक्तानां अर्थावयवानां संज्ञापिकाः २० प्रकाशिकाः भाषा भवन्ति यस्मात्कारणात सामान्यरूपेण व्यक्तार्थत्वादसत्या इति वक्तुं न शक्यते विशेषस्वरूपेणाव्यक्तार्थत्वात्सत्या इत्यपि वक्तुं न शक्यते इत्यनुभयत्वम् । एवं यद्यपि परा अनुभयभाषाः संभवन्ति प्रकारकी विज्ञापनरूप भाषा प्रज्ञापनी है । 'मैं इसका त्याग करता हूँ', इस प्रकारकी त्यागनेरूप भाषा प्रत्याख्यानी है। 'क्या यह बगुलोंकी पंक्ति है या पताका है ? इत्यादि सन्देहात्मक भाषा संशयवचनी है। "मुझे भी ऐसा ही होना चाहिए', इत्यादि इच्छाको प्रकट करनेवाली २५ भाषा इच्छानुलोमवचनी है। पहला 'च' शब्द समुच्चयके लिए है और अन्तिम 'च' शब्द अनुक्त भेदोंके समुच्चयके लिए है ।।२२५॥
____ अनक्षरगता अर्थात् अनक्षरात्मिका दोइन्द्रियसे लेकर असंज्ञीपंचेन्द्रियपर्यन्त जीवोंकी अपने-अपने संकेतोंको बतलानेवाली नवमीभाषा है। पहली गाथामें कही आठ अनुभयभाषाओंकी अपेक्षा यह नवमी अनुभय भाषा है। इस प्रकार आमन्त्रिणी आदि असत्यमृषा अर्थात् ३० सत्य और असत्यके लक्षणसे रहित अनुभय भाषा होती हैं। यहाँ कारण बतलाते हैं जिस कारणसे श्रोताजनोंको सामान्यसे व्यक्त और विशेष रूपसे अव्यक्त अर्थ के अवयवोंकी संज्ञापक अर्थात् प्रकाशक ये भाषाएँ होती हैं तिस कारणसे सामान्य रूपसे व्यक्त अर्थको कहनेसे इन्हें असत्य नहीं कहा जा सकता और विशेष रूपसे व्यक्त अर्थको न कहनेसे इन्हें सत्य भी नहीं कहा जा सकता; इसलिए ये अनुभय हैं। इसी प्रकार अन्य भी अनुभय भाषाएँ हैं; तथापि ३५
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