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________________ ३६२ गो० जीवकाण्डे मनुपमे एंबुदु । तदाश्रितमप्प वचनमुमनुपमासत्यमें बुदेतीगळु पल्योपमं पल्यं धान्याधारकुशूलमदरोउनुपमे सहशत्वं रोमखंडाधारयिंदमावुदो दक्के' उटु तत्संख्यानपल्योपमम दितु असंख्याताऽसंख्यातरोमखंडाश्रयमप्प तत्प्रमाणसमयमप्प संख्यानविशेषक्कं यथाकथंचित्पल्यसादृश्यमनाश्रयिसि प्रवृत्तमप्प पल्योपमवचनक्कुपमा सत्यत्वसिद्धियक्कं । अंत सागरोपमाधुपमासत्यविशेषसमुच्च५ यात्थं च शब्दं । इंतु यथाक्रमं भक्तादिगळु जनपदसत्यादिदृष्टांतंगळुदाहरणंगळ पेळल्पटुवु । अनंतरमनुभयवचनभेदंगळं पेळ्वातं गाथाद्वयदिदं पेळ्दपं । आमंतांणि आणमणी याचणियापुच्छणी य पण्णवणी । पच्चक्खाणी संसयवयणी इच्छाणुलोमा य ।।२२५।। आमंत्रणी आज्ञापनी याचनी आपृच्छनी च प्रज्ञापनी। प्रत्याख्यानी संशयवचनी इच्छानु१० लोमवचनी च॥ आगच्छ भो देवदत्त इत्याद्याह्वानभाषे आमंत्रणी एंबुदु । इदं माडु एंबुदु मोदलाद कार्यनियोजन भाषे आज्ञापनी एंबुदु । 'इदनेनगे कोडु एंबुडु मोदलाद प्रार्थनाभाष याचनी एंबुदु । येनिःबु मोदलादुदु प्रश्नभाषे आपृच्छनी एंबुदु । येगेय्वन बुदु मोदलाद विज्ञापनाभाषे प्रज्ञापनी सत्यत्वादेव कारणात् । चशब्दः एवंविधानुक्तभावसत्यसमुच्चयार्थः । प्रसिद्धार्थसादृश्यमुपमासत्यं यथा पल्योपमं १५ पल्येन धान्याधारकुशलेन सह उपमासदृशत्वं रोमखण्डाधारतया यस्यास्ति तत्संख्यानं पल्योपममिति असंख्याता संख्यातरोमखण्डाश्रयस्य तत्प्रमाणसमयाश्रयस्य वा संख्यानविशेषस्य यथाकथञ्चित्पल्यसादृश्यमाश्रित्य प्रवृत्तस्य पल्योपमवचनस्य उपमासत्यत्वसिद्धेः । तथा सागरोपमाधुपमासत्यविशेषसमुच्चयार्थश्चशब्दः । एवं यथाक्रम भक्तादयो जनपदसत्यादिदृष्टान्ता उदाहरणान्युक्तानि ॥२२४॥ अथानुभयवचनभेदान गाथाद्वयेनाह थागच्छ भो देवदत्त, इत्याद्याह्वानभाषा आमन्त्रणी। इदं कुरु इत्यादिकार्यनियोजनभाषा आज्ञापनी। २. इदं मह्य देहीति प्रार्थना भाषा याचनी। किमेतदित्यादिप्रश्नभाषा आपच्छनी। किं करवाणीत्यादिविज्ञापन समस्त अतीन्द्रिय पदार्थों के ज्ञाताके द्वारा उपदिष्ट आगम सत्य ही होता है, इसलिए उसके आधारसे जो संकल्प भावपूर्वक वचन है , वह सत्य है। 'च' शब्द इस प्रकारके जो भावसत्य यहाँ नहीं कहे गये हैं,उन सबके समुच्चयके लिए है। प्रसिद्ध अथके साथ सादृश्य बतलानेवाला वचन उपमा सत्य है; यथा पल्योपम । पल्य अर्थात् अनाज भरनेका खत्ता, २५ उसके साथ उपमा अर्थात् सदृशता जिसकी है, क्योंकि पल्यमें रोमखण्ड भरे जाते हैं, उसकी संख्याको पल्योपम कहते हैं। इस प्रकार असंख्यातासंख्यात रोमखण्डोंका आधारभूत अथवा उतने प्रमाण समयोंका आधारभूत जो संख्यानविशेष है,उसकी जिस-किसी प्रकारसे पल्यसे समानताका आश्रय लेकर प्रवृत्त हुआ पल्योपमका वचन उपमा सत्य है। यह सिद्ध होता है। तथा 'च' शब्द सागरोपम आदि उपमासत्यके भेदोंके समुच्चयके लिए है । इस ३० प्रकार क्रमसे जनपद सत्य आदिके भक्त आदि दृष्टान्त कहे ।।२२४|| आगे दो गाथाओंसे अनुभय वचनके भेद कहते हैं 'हे देवदत्त आओ' । इस प्रकारकी बुलानेरूप भाषा आमन्त्रणी है। 'यह करो', इत्यादि कार्यमें नियुक्त करनेकी भाषा आज्ञापनी है । 'यह मुझे दो', इस प्रकारकी प्रार्थनारूप भाषा याचनी है। 'यह क्या है' इस प्रकारकी प्रश्नरूप भाषा आपृच्छनी है। 'क्या करूँ' इस ३५ १. मक्के तत्संख्यानमुटदु पल्यो । २. म यिद ननगे कुडु एंबिदु । ३. म एनिदेबीत्यादि प्रश्न । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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