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________________ ३५१ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका दिण्णच्छेदेणवहिदइट्टच्छेदेहि पयदविरलणे भजिदे । लद्धम्मिदइट्टरासीणण्णोण्णहदीए होदि पयदधणं ॥२१५॥ देयराश्यद्धच्छेदंगाळदं फलभूतेष्टराश्यर्द्धच्छेदंगळं भागिसि तल्लब्धदिदं साध्यभूतप्रकृतराशिय विरलनराशियं भागिसि तल्लब्धप्रमितेष्टराशियनन्योन्याभ्यासदिदं साध्यभूतप्रकृतधनमक्कुमें दिल्लि प्रमाणराशिय देयार्द्धच्छेदमोंदु १ इरिदं फलभूतेष्टराशि पण्णट्ठि इद ६५ = अर्द्धच्छेदंगळु ५ विरलनंगळु १६ पदिनारु ई राशियं भागिसि १६ बंद लब्धमुं मनितयक्कु १६ । मो राशिर्शायद साध्यभूत प्रकृत धनदर्द्धच्छेदंगळप्प विरलनराशियं ६४ । अरुवत्तनाल्कुं भागिसि ६४ बंद १ तल्लब्धं नाल्कुं ४ ई राशियं विरलिसि इष्टराशियं पण्णद्वियं प्रतिरूपमित्तन्योन्याभ्यास माडिदो ६५ =६५ = ६५ = ६५= डुत्पन्नराशि साध्यभूतप्रकृतधनमेक्कंट्ठनक्कू १८ । = । मितेयर्थ संदृष्टिीयदमिनितु रूपमात्रद्विकान्योन्याभ्यासदिदमिष्टराशियप्प लोकं पुटुत्तिरलेतावद्रूप- १० मात्रप्रकृतधनदर्द्धच्छेदंगळनन्योन्याभ्यासं माडले तप्प प्रकृतधनमक्कुम दितु त्रैराशिकं माडि प्र वि दे २ छे छे छे ९ । फ= इष्टराशि = इ = प्रकृत द वि दे २। सा प लब्धं प्रकृतधनानयन देयराश्यर्धच्छेदेन १ फलभूतेष्ट ६५ = राश्यर्धच्छेदान् १६ भक्त्वा १६ तल्लब्धन साध्यभूतप्रकृतराशेः १८ = विरलनराशि ६४ भक्त्वा ६४ तल्लब्ध ४ प्रमितेष्टराशि ६५ =। ६५ = ६५। ६५ = अन्योन्या भ्यासेन साध्यभूतप्रकृतधनमेकट्ठराशिर्भवति १८ = एवमर्थसंदृष्टयापि-एतावतां द्विकानामभ्यासे यदि लोको १५. जायते तदा एतावतां द्विकानामभ्यासे को राशिर्जायते इति त्रैराशिकं रचयित्वा वि छे छे छे ९। फ a इष्टराशिः । = इ प्रकृतस्य वि सा-प प्रकृतधनमानीयते-देयस्य रूपद्वयस्य अर्धच्छेदेनैकेन फलभूतेष्टराशेर्लोक द्रयराशि दोके अर्धच्छेद एक १ से फलभूत इष्ट राशि पण्णट्ठी ६५५३६ के अर्धच्छेद सोलहमें १६ भाग देनेपर सोलह ही लब्ध आया। उस लब्ध सोलह १६ से साध्यभूत प्रकृत राशि एकट्ठीके अर्धच्छेद ६४ में भाग देनेपर लब्ध चार ४ आया। चार जगह इष्ट राशि २० पण्णठ्ठीको रखकर परस्परमें गुणा करनेसे साध्यभूत प्रकृत धनराशि एकट्ठी आती है । इसी प्रकार अर्थसंदृष्टिसे भी जानना। सो पहले लोकके अर्धच्छेदोंका जितना प्रमाण कहा है, उतने दुए रखकर परस्परमें गुणा करनेसे लोकराशि होती है, तो यहाँ अग्निकायिक जीवराशिके अर्धच्छेद प्रमाण दो-दो रखकर परस्परमें गुणा करनेसे कितने लोक होंगे? इस प्रकार त्रैराशिक करनेपर यहाँ प्रमाणराशिमें देयराशि दो, विरलनराशि लोकके अर्धेच्छेद, और २५ फलराशिलोक । तथा इच्छाराशिमें देयराशि दो, विरलनराशि अग्निकायिकराशिके अर्धच्छेद प्रमाण है। सो लब्धराशि लानेके लिए देयराशि दोके अर्धच्छेद एकका भाग फलराशि लोकके अर्धच्छेदोंमें देनेपर लोकके अर्धच्छेद मात्र लब्ध आया। इस लब्धसे अग्निकायिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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