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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
३२९ बहुना सर्वतत्वंगळ प्रवक्तृपुरुषनप्पाप्तनु सिद्धनागुत्तिरलु तद्वाक्यमप्पागमद सूक्ष्मांतरितदूरात्थंगळोळ प्रामाण्य सुप्रसिद्धियप्पुरिदं तदागमपदात्थंगळोळ् निःशंकमम्म चित्तं साकिन्नु वावदूकतेयि । आप्तसिद्धियं “विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखः" इत्यादि वेदवाक्यदिदं "प्रणम्य शंभुम्" इत्यादि नैय्यायिकवादिदं "बद्धो भवेयम" इत्यादि बौद्धवादिदं "मोक्षमार्गस्य नेतारमित्याद्याहतवादिदं परिदं तत्तद्दर्शनदेवतयं स्तवरूपवाक्यंगळिदं सामान्यदिनोडंबडल्पटुर। विशेषदिदं मत्ते सर्वज्ञः वीतरागनप्प स्याद्वादियप्पात्पंगये युक्तियिद साधनमुटप्पकारणदिदं विस्तरदिदं स्याद्वादतर्कशास्त्रगळोळु तत्सिद्धि ज्ञातव्यमक्कुम दितु सुनिश्चिताऽसंभवदाधकप्रमाणत्वदिदं आप्तंगं तदागमक्कं सिद्धत्वदत्तणिदं तत्प्रणीतमप्प मोक्षतत्वमुं बंधतत्वमुमवश्यमभ्युपगमनीयमें दितु सिद्धमास्तु। सिद्धरं नोडलनंतगुणत्वमेकशरीरनिगोदजीवंगळ्गे।
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भव्यराश्यक्षयानन्तत्वस्याप्तागमसिद्धस्य साध्यसमत्वाभावात । किं बहुना सर्वतत्त्वानां प्रवक्तरि पुरुष आप्ते १० सिद्धे सति तद्वाक्यस्यागमस्य सूक्ष्मान्तरितदूरार्थेषु प्रामाण्यसुप्रसिद्धः । तदागमपदार्थेषु निश्शङ्कं मम चित्तं किन्नु वावदूकतया । आप्तसिद्धिस्तु विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतो मुखः इत्यादिवेदवाक्येन । प्रणम्य शम्भुमित्यादिनैयायिकवाक्येन । बुद्धो भवेयमित्यादिबौद्धवाक्येन । मोक्षमार्गस्य नेतारमित्याहतवाक्येन अपरैस्तत्तद्दर्शनदेवतास्तवनरूपवाक्यैश्च सामान्यतोऽङ्गीकृता । विशेषेण सर्वज्ञवीतरागस्याद्वाद्याप्तस्यैव युक्तयापि साधनात् । विस्तरतः स्याद्वादतर्कशास्त्रेषु तत्सिद्धिर्ज्ञातव्या इत्येवं सुनिश्चितासंभवद्वाधकप्रमाणत्वात् आप्तस्य तदागमस्य १५ च सिद्धत्वात् तत्प्रणीतं मोक्षतत्त्वं बन्धतत्त्वं वावश्यमभ्युपगमनीयमिति सिद्धं सिद्धेभ्योऽनन्तगुणत्वमेकशरीरनिगोदजीवानाम् ॥१९६॥
कालके समय कभी समाप्त नहीं होते; या सब द्रव्योंकी पर्याय अथवा अविभाग प्रतिच्छेदोंका समूह कभी समाप्त नहीं होता। इस प्रकार अनुमानका अंग जो तर्क है, उसका प्रामाण्य सुनिश्चित है। ___ शंका-तब आपका हेतु भी साध्यके समानं हुआ,क्योंकि साध्य भी अक्षयानन्त है और हेतु भी वही है।
समाधान-नहीं, क्योंकि भव्यराशिका अक्षयानन्तपना आप्त प्रणीत आगमसे सिद्ध है, अतः साध्यसम नहीं है। अधिक कहनेसे क्या, सब तत्त्वोंके प्रवक्ता पुरुषके आप्त सिद्ध होनेपर उसके वचनरूप आगमका प्रमाण सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती पदार्थों में सुप्रसिद्ध है। २५ इसलिए उनके द्वारा उपदिष्ट आगममें कहे हुए पदार्थों के सम्बन्धमें मेरा चित्त शंका रहित है। वृथा बकवाद करनेसे क्या लाभ है? आप्तकी सिद्धि तो 'विश्वतश्चक्षरुत विश्वतो मुखः' इत्यादि वेदवाक्यसे, 'प्रणम्य शम्मुं' इत्यादि नैयायिकोंके वाक्यसे, 'बुद्धो भवेयम्' इत्यादि बौद्ध वाक्यसे और 'मोक्षमार्गस्य नेतारम्' इत्यादि जैनवाक्यसे तथा दूसरे वादियोंके अपनेअपने मतके देवताके स्तवनरूप वाक्योंसे सामान्यसे स्वीकृत ही है। विशेष रूपसे सर्वज्ञ ३० वीतराग स्याद्वादी आतको ही युक्तिसे भी सिद्ध किया है । विस्तारसे उसकी सिद्धि स्याद्वादके तर्कशास्त्रोंसे जाननी चाहिए। इस प्रकार बाधक प्रमाणके सुनिश्चित रूपसे असम्भव होनेसे आप्त और उसके द्वारा उपदिष्ट आगम सिद्ध है। अतः उसमें कहे हुए मोक्ष तत्त्व और बन्ध तत्त्वको अवश्य स्वीकार करना चाहिए। इस प्रकार एक शरीरमें निगोद जीव सिद्धोंसे अनन्तगुणे होते हैं,यह सिद्ध है ॥१९६।। १. म नदिंदमुं वि।
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