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________________ ३२८ गो० जीवकाण्डे क्षयत्वमतिसूक्ष्ममप्पुरिदं तर्कविषयमल्तदु कारणमागि प्रत्यक्षागमबाधितमप्प तर्कक्कप्रमाणत्वदिदं अनुष्णोग्निद्रव्यत्वाद्यद्यत् द्रव्यं तत्तदनुष्णं यथा जलं। प्रेत्याऽसुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितत्वात् । यो यः पुरुषाश्रितः स सोऽसुखप्रदो यथा अधर्मः इत्यादि तर्कदंते तर्कबाधितमप्पागमक्के तु प्रामाण्यमें दितेनल्वडेकदोंडे प्रत्यक्षप्रमाणतर्कातरसंभावितमप्पागमक्कविसंवादिवदिदं प्रामाण्य सुनिश्चय५ मप्पुरिदं तद्वयविरोधियप्प निन्न तर्ककऽप्रमाणत्वमक्कुमंतादडावुदा तर्कातरम दित बयप्पोड पेळल्पडुगुं। “सो भव्यसंसारिराशिरनंतेनापि कालेन न क्षीयते अक्षयानंतत्वात् । यो योऽक्षयानंतः स सोऽनंतेनापि कालेन न क्षीयते यथा इयत्तया परिच्छिन्नः कालसमयौधः। सर्वद्रव्याणां पर्यायोऽ विभागप्रतिच्छेदसमूहो वा।" ____ एंदितनुमानांगगममप्प तर्कक्के प्रामाण्यं सुनिश्चयमक्कुं। हेतुविर्ग साध्यसमत्वमे दित - बयप्पोडे भव्यराश्यक्षयानंतत्वक्के आप्तागमसिद्धमप्पुदक्के साध्यसमत्वाभावमप्पुरदं । किं क्षयस्यातिसूक्ष्मत्वात्तर्कविषयत्वाभावात् । प्रत्यक्षागमबाधितस्य च तर्कस्याप्रमाणत्वात् । अनुष्णोऽग्निद्रव्यत्वात् यद्यद्रव्यं तत्तदनुष्णं यथा जलम् । प्रेत्यासुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितत्वात् यो यः पुरुषाश्रितः स सोऽसुखप्रदो यथाऽधर्मः इत्यादितर्कवत् । तर्हि तर्कबाधितस्य आगमस्य कथं प्रामाण्यं ? इति चेत्तन्न प्रत्यक्षप्रमाणतर्कान्तर१५ संभावितस्यागमस्याविसंवादित्वेन प्रामाण्यसुनिश्चयात् । तद्द्वयविरोधिनस्तव तर्कस्याप्रमाणत्वाच्च । तहि किमिदं तन्तिरमिति चेदच्यते सर्वो भव्यसंसारिराशिरनन्तेनापि कालेन नक्षीयते अक्षयानन्तत्वात यो योऽक्षयानन्तः स सोऽनन्तेनापि कालेन नक्षीयते यथा इयत्तया परिच्छिन्नः कालसमयौघः, सर्वद्रव्याणां पर्यायोऽविभागप्रतिच्छेदसमूहो वा इत्यनुमानाङ्गस्य तर्कस्य प्रामाण्यसुनिश्चयात् । तर्हि हेतोः साध्यसमत्वमिति चेन्न कालके समयों का समूह सर्व जीवराशिसे अनन्तगुणा है। अतः अपने योग्य अनन्त भाग २० काल बीतनेपर संसारी जीव राशिका क्षय और सिद्धराशिकी वृद्धि सुघटित है। ___ समाधान-उक्त शंका ठीक नहीं है, क्योंकि केवल ज्ञान रूप दृष्टिसे केवलियोंके द्वारा और श्रुतज्ञानरूप दृष्टिसे श्रुतकेवलियोंके द्वारा सदा देखा गया भव्य संसारी जीव राशिका अक्षयपना अति सूक्ष्म होनेसे तर्कका विषय नहीं है। तथा जो तर्क प्रत्यक्ष और आगमसे बाधित है,वह प्रमाण नहीं है। जैसे अग्नि शीतल होती है, क्योंकि द्रव्य है। जो-जो द्रव्य २५ होता है,वह शीतल होता है जैसे जल। धर्म मरनेपर दुःख देता है। पुरुषके आश्रित होनेसे । जो-जो पुरुषके आश्रित होता है,वह-वह दुःखदायी होता है, जैसे अधर्म । ये तक प्रत्यक्ष और आगमसे बाधित हैं। शंका-तब तकसे बाधित आगमको कैसे प्रमाण माना जा सकता है ? समाधान नहीं, क्योंकि प्रत्यक्ष प्रमाण और अन्य तर्कोसे सम्भावित आगमके ३० असंवादि होनेसे उसका प्रामाण्य सुनिश्चित है। तथा आपका तर्क प्रत्यक्ष और आगमका विरोधी होनेसे अप्रमाण है। शंका-तब वह तर्क कौन-सा है । जिससे आगमका प्रामाण्य निश्चित है ? समाधान-समस्त भव्य संसारी जीव राशि अनन्तकाल बीतनेपर भी क्षयको प्राप्त नहीं होती, क्योंकि वह अक्षय अनन्त प्रमाण है। जो-जो अक्षयानन्त होता है, वह-वह ३५ अनन्तकालमें भी क्षयको प्राप्त नहीं होता । जैसे इतने हैं, इस रूपसे परिमित होनेपर भी तीन १. नागमस्य त ब । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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