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________________ ३१७ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका इल्लि प्रत्येकशरीरंगळु प्रतिष्ठिताप्रतिष्ठितभेददिदं द्विविधंगळु । इति शब्दमिल्लि प्रकारवाचियक्कु। बादरनिगोदैराश्रिताः प्रतिष्ठितास्तैरनाश्रिता अप्रतिष्ठिता एदितु प्रतिष्ठिताप्रतिष्ठितभेदंगळरियल्पडुगुं। मूलग्गपोरबीजा कंदा तह खंधबीजबीजरुहा । समुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया य ॥१८६।। मूलाग्रपर्वबीजाः कंदा स्कंधबीजास्तथा बीजरुहास्संमूच्छिमाश्च भणिताः प्रत्येका अनंतकायाश्च ॥ ____ मूलं बीजं येषां ते मूलबीजाः आर्द्रकहरिद्रादिगळु । अगं बीजं येषां ते अग्रबीजाः आर्य्याकोदिब्यादिगळु कगोरले मुडिवाळादिगळु । पळवीजं येषां ते पर्वबीजाः इक्षुवेत्रादिगळु । कंदो बीजं येषां ते कंदबीजाः पिंडालसूरणादिगळु। स्कंधो बीजं येषां ते स्कंधबोजाः सल्लको कंटको पलाशा- १० दिगळु । बीजाद्रोहंतीति बीजरुहाः शालिगोधूमादिगळु । संमूळे सं समंतात्प्रसृतपुद्गलस्कंधे भवास्ते संमूच्छिमाः। मूच्छिमाः मूलादिनियतबीजनिरपेक्षास्ते च इन्ती मूलादिबोजनिरपेक्षसंमूच्छिमंगळु पेळल्पट्टवु। प्रत्येकं शरीरं येषां ते प्रत्येकशरीराः । समानमेव सामान्यं, सामान्यं शरीरं येषां ते सामान्यशरीराःसाधारणशरीरा इत्यर्थः । तत्र प्रत्येकशरीराः प्रतिष्टिताप्रतिष्ठितभेदाद् द्विविधाः । इतिशब्दोऽत्र प्रकारवाची। १५ वादरनिगोदैराश्रिताः प्रतिष्ठिताः, तैरनाश्रिताः अप्रतिष्ठिता इति तयोर्भेदावगमनात् ॥१८५।। मूलं बीजं येषां ते मूलबीजाः आर्द्रकहरिद्रादयः । अग्रं बीजं येषां ते अग्रबीजाः-आर्यकोदोच्यादयः । पर्व बीजं येषां ते पर्वबीजाः इक्षवेत्रादयः । कन्दो बीजं येषां ते कन्दबीजाः-पिण्डालुसूरणादयः। स्कन्धो बीज येषां ते स्कन्धबीजाः-सल्लकीकण्टकीपलाशादयः । बीजात् रोहन्तीति बीजरूहाः-शालिगोधमादयः । संमर्छ समन्तात् प्रसृतपुद्गलस्कन्धे भवाः सम्मूछिमाः-मूलादिनियतबीजनिरपेक्षाः ते च ये प्रत्येकशरीरा जीवाः २० परमागमे भणितास्ते अनन्तकायाश्च अनन्तानां निगोदजीवानां कायाः-शरीराणि एष्विति अनन्तकायाः के हैं। यहाँ इति शब्द प्रकारवाची है । जो प्रत्येकशरीर वनस्पति बादर निगोद जीवोंके द्वारा आश्रयरूपसे स्वीकार किया गया है,वह प्रतिष्ठित है। और जो उनसे आश्रित नहीं है, वह अप्रतिष्ठित है । इस प्रकार उन दोनोंमें भेद जानना ॥१८५।। जिन वनस्पतियोंका बीज उनका मूल होता है। जैसे अदरक, हल्दी वगैरह वे मूलबीज २५ हैं । जिनका बीज उनका अग्रभाग होता है, जैसे आर्यक उदीचि (?) आदि, वे अग्रबीज हैं। जिनका बीज पर्व होता है जैसे ईख, वेत वगैरह वे पर्वबीज हैं। जिनका बीज कन्द होता है, जैसे सूरण वगैरह वे कन्दबीज हैं। जिनका बीज स्कन्ध होता है जैसे पलास, सल्लकी वगैरह वे स्कन्धबीज हैं । जो बीजसे पैदा होते हैं जैसे धान, गेहूँ वगैरह, वे बीजरुह हैं। सम्मुर्छ अर्थात् चारों ओरसे आये पुद्गलस्कन्धोंसे होनेवाली वनस्पति सम्मूछिम है। उनके लिए ३० मूल आदि नियत बीजकी अपेक्षा नहीं होती। इस प्रकार परमागममें जो ये प्रत्येक शरीर वनस्पतिकायिक जीव कहे हैं, वे अनन्तकाय होते हैं । जिनमें अनन्तकाय अर्थात् अनन्तानन्तनिगोद जीवोंके शरीर रहते हैं, उन्हें अनन्तकाय अर्थात् प्रतिष्ठितप्रत्येक कहते हैं तथा 'च' १. क्षाः ते च ये प्रत्येक शरीरा जीवाः परमागम भणितास्ते अनन्तकायाश्च अ-]० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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