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________________ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका ३१३ एंदितु तिर्यग्गत्येकेंद्रियजात्यौदारिकारीरस्थावरकायादिगळ्गेनामकर्मप्रकृत्युवमनाश्रयिसिये एवंविध निरुक्ति संभविसुगुं। पृथ्वीकायिकत्वपर्यायाभिमुखं विग्रहगतियोळ वर्तमानमप्पं पृथ्वीजीवं, गृहीतपृथ्वीशरीरमनुळळं पृथ्वीकायिकमा जीर्वानंद बिडल्पट्ट देहं पृथ्वीकायमक्कु । मिते अब्जीवः अप्कायिकोऽप्कायास्तेजोजीवस्तेजस्कायिकस्तेजस्कायः । वायुजीवो वायुकायिको वायुकाय इति । एंदितु त्रिधा व्यवस्थेयरियल्पङगुं। वादरसुहुमुदएण य बादरसुहुमा हवंति तदेहा । घादसरीरं धूलं अघाददेहं हवे सुहुमं ॥१८३।। बादरसूक्ष्मोदयेन च बादरसूक्ष्मौ भवतस्तद्देहौ । घातशरीरं स्थूलमघातशरीरं भवेत्सूक्ष्मं ॥ बादरनामकर्मोददिदं तद्देहजंगळप्प पृथ्वीकायिकादिजीवंगळु बादरंगळप्पुवु । सूक्ष्मनामकर्मोददिद पृथ्वीकायिकादिजीवंगळु सूक्ष्मंगळेदु पेळल्पडुवुवु । एकदोडे जीवविपाकिगळप्प १० बादरसूक्ष्मनामकर्मोदयंगदिदं बादरसूक्ष्मजीवव्यपदेशमुंटप्पुरिंदमा देहंगळं बादरंगळु सूक्ष्मंगळु अप्पुरिंदमंद्रियविषयसंयोगजनितसुखदुःखमेंतते परिदं तनगे तन्निदं परगने मेणु प्रतिघातसंभव ऽस्त्येषामिति वायुकायिकाः । अथवा वायः कायः-शरीरं येषां ते वायकायिकाः । तिर्यग्गत्ये केन्द्रियजात्यौदारिकशरीरस्थावरकायादीनां नामकर्मप्रकृतीनाम् उदयमाश्रित्यैव एवंविधनिरुक्तिसंभवात । पृथ्वीकायिकत्वपर्यायाभिमुखो विग्रहगतो वर्तमानः पृथ्वीजीवः । गृहीतपृथ्वीशरीरः पृथ्वीकायिकः । तत्त्यक्तदेहः पृथ्वीकायः । १५ तथैव अब्जीवः अप्कायिकः अप्कायः । तेजोजीवः तेजस्कायिकः तेजस्कायः । वायुजीवः वायुकायिकः वायुकायः, इति त्रिविधत्वं ज्ञातव्यम् ॥१८२।।। बादरनामकर्मोदयेन तदेहाः पृथ्वीकायिकादिजीवाः बादरा भवन्ति । सूक्ष्मनामकर्मोदयेन च पृथ्वीकायिकादिजीवाः सूक्ष्मा भवन्ति । जीवविपाकिबादरसूक्ष्मनामकर्मोदयाम्यां बादरसूक्ष्मजीवव्यपदेशसद्धावात्तदेहा अपि बादरसूक्ष्मा भवन्ति । तेन इन्द्रियविषयसंयोगजनितसुखदुःखवत् परेण स्वस्य स्वेन परस्य वा प्रतिघात- २. वायुकायिक हैं । अथवा वायु जिनका काय है वे वायुकायिक हैं। तियंचगति, एकेन्द्रियजाति, औदारिक शरीर, स्थावरकाय आदि नामकर्मकी प्रक्रतियोंके उदयको लेकर ही इस प्रकारकी निरुक्ति होती है। जो जीव पूर्व पर्यायको छोड़कर पृथ्वीकायिकरूप पर्यायको धारण करनेके अभिमुख होता हुआ जबतक विग्रहगतिमें वर्तमान है, तबतक उसे पृथ्वीजीव कहते हैं । जिसने पृथ्वीको शरीररूपसे ग्रहण कर लिया है, वह पृथ्वीकायिक है । जिस पृथ्वी- २५ में-से जीव निकल गया है वह पृथ्वीकाय है। इसी तरह अपजीव, अप्कायिक, अप्काय, तेजोजीव, तेजस्कायिक, तेजस्काय, वायुजीव, वायुकायिक, वायुकाय इस प्रकार प्रत्येकके तीन-तीन भेद जानना ।।१८२॥ ___बादरनामकर्मके उदयसे पृथ्वीकायिक आदि जीव बादर होते हैं और सूक्ष्मनामकर्मके उदयसे पृथ्वीकायिक आदि जीव सूक्ष्म होते हैं, क्योंकि बादर और सूक्ष्मनामकर्म जीवविपाकी हैं। अतः उनके उदयसे जीव बादर और सूक्ष्म कहे जाते हैं। और उनके सम्बन्धसे उनके शरीर भी बादर और सूक्ष्म होते हैं। इस कारणसे इन्द्रिय और विषयके संयोगसे उत्पन्न सुख-दुःखकी तरह परसे अपना और अपनेसे परका घात सम्भव होनेसे घात शरीर स्थूल होता है और अघात शरीर सूक्ष्म होता है। उन शरीरोंके धारी भी घात ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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