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________________ ३०४ गो० जीवकाण्डे अनंतरं विशेषसंख्येयं पेळ्वातं मोदलोळेकेंद्रियसंख्येयं पेळ्दपं । तसहीणो संसारी एयक्खा ताण संखगा भागा । पुण्णाणं परिमाणं संखेज्जदिम अपुण्णाणं ।।१७६।। त्रसहीनसंसारिण एकाक्षास्तेषां संख्येयभागाः पूर्णानां परिमाणं संख्येयं भागमपूर्णानां ॥ सराशिविहीनमप्प संसारिराशियदेकेंद्रियराशिक्कु १३ मी एकेंद्रियराशिय संख्यातबहुभागंगळ पर्याप्तकगळ परिमाणमक्कुं । तदेकभागमपर्याप्तकरा शिप्रमाणमक्कु - प अ मिल्लिय संख्यातक पंचांक संदृष्टियक्कुं॥ १३ - ४ १३-१ अनंतरमेकेंद्रियावांतरभेदसंख्याविशेषमं पेळ्दपं । बादरसुहुमा तेसिं पुण्णापुण्णेत्ति छन्बिहाणंपि । तक्कायमग्गणाए भणिस्समाणक्कमो णेया ॥१७७॥ बादरसूक्ष्मास्तेषां पूर्णापूर्णा इति षड्विधानामपि। तत्कायमार्गणायां भणिष्यमाणक्रमो ज्ञेयः॥ सामान्यैकेंद्रियराशियदु बादरसूक्ष्मभेददिदं द्विप्रकारमक्कुमा बादसूक्ष्मंगळं प्रत्येकं पर्याप्तापर्याप्तभेददिदं चतुःप्रकारमप्पुदरिमितारं प्रकारंगळग तत्कायमार्गणयोल मुंद पेळ्व संख्याक्रममरि१५ यल्पडुगुं। इल्लियं संख्याक्रममरियल्पडुगुमड़ते दोड एकेंद्रियसामान्यराशियनसंख्यातलोकदिद कथिताः ते प्रत्येक द्विकवारासंख्यातप्रमिता भवन्ति । निगोदाः-साधारणवनस्पतिकायिकाः, अनन्तानन्ता भवन्ति ॥१७५।। अथ विशेषसंख्यां कथयस्तावदेकेन्द्रियसंख्यामाह त्रसराशिहीनसंसारिराशिरेवैकेन्द्रियराशिर्भवति १३-1 अस्य च संख्यातबहभागाः पर्याप्तकराशिपरिमाणं भवति १३- ४। तदेकभागः अपर्याप्तकराशिप्रमाणं भवति १३-। १ । अत्र संख्यातस्य संदृष्टिः पञ्चाङ्कः २० ५॥१७६।। अथैकेन्द्रियावान्तरभेदसंख्याविशेषमाह सामान्यैकेन्द्रियराशेर्बादरसूक्ष्माविति द्वौ भेदो तयोः पुनः प्रत्येकं पर्याप्तापर्याप्ताविति चत्वारः । एवं षड्भेदानां तत्कायमार्गणायां भणिष्यमाणः क्रमो ज्ञेयः । तद्यथा-एकेन्द्रियसामान्यराशेरसंख्यातलोकभक्तकभागो २५ अवान्तर भेदोंके साथ प्रत्येक असंख्यातासंख्यात प्रमाण हैं । और निगोद अर्थात् साधारण वनस्पतिकायिक अनन्तानन्त हैं ।।१७५।। आगे विशेष संख्याको कहते हुए पहले एकेन्द्रियोंको संख्या कहते हैं संसारी जीवराशिमें-से त्रसजीवोंकी राशि कम कर देनेपर एकेन्द्रिय जीवोंकी राशि होती है। इस एकेन्द्रिय राशिमें संख्यातसे भाग देनेपर संख्यात बहुभाग प्रमाण पर्याप्तक एकेन्द्रिय जीवोंका परिमाण होता है और संख्यात एक भाग प्रमाण अपर्याप्तक एकेन्द्रिय जीवोंका परिमाण होता है ॥१७६।। सामान्य एकेन्द्रिय राशिके बादर और सूक्ष्म इस प्रकार दो भेद हैं। और उनमें से प्रत्येकके पर्याप्तक और अपर्याप्तक भेद हैं। इस तरह एकेन्द्रियके चार भेद हैं । छहों प्रकारके जीवोंका कायमार्गणामें क्रमसे कथन किया जायेगा जो इस प्रकार है ___ एकेन्द्रिय सामान्यकी राशिमें असंख्यात लोकका भाग देनेपर एक भाग बादर एकेन्द्रिय जीवोंकी राशिका प्रमाण है और बहुभाग सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंकी राशिका प्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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