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________________ ३०५ ९७ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका भागिसिदेकभागमात्रं बादरैकेंद्रियराशिप्रमाणमक्कुं १३-१ तद्वहुभागं १३–८ सूक्ष्मैकेंद्रियराशिप्रमाणमक्कं इल्लियसंख्यातलोकक्क नवांक संदृष्टियक्कं ।९।। मत्तं बादरैकेंद्रियराशिनसंख्यातलोकदिदं खंडिसिदेकभागं बादरैकेंद्रियपर्याप्त राशियकं । १३ तद्बहुभागं बादरैकेंद्रियापर्याप्तराशिप्रमाणमक्कु १३-६ इल्लियुमसंख्यातलोकक्के सप्तांक ९।७ संदृष्टियक्कं ॥७॥ सूक्ष्मैकेंद्रियराशियं संख्यातदिदं खंडिसिद बहुभागं सूक्ष्मैकेंद्रियपर्याप्तराशिय प्रमाणमक्कं १३-८।४ तदेकभागमपर्याप्त राशिप्रमाणमक्कु १३-८।१ इल्लियुं संख्यातक्के संदृष्टि पंचांकमक्कुं ५। अनंतरं त्रसजीवसंख्येयं गाथात्रयदि पेन्दपं । बितिचपमाणमसंखेणवहिदपदरंगुलेण हिदपदरं । हीणकम पडिभागो आवलियासंखभागो दु ।।१७८॥ ___ द्वित्रिचतुःपंचेंद्रियमानमसंख्येनापहृतप्रतरांगुलेन हृतप्रतरो होनक्रमः प्रतिभाग आवल्यसंख्यभागस्तु। द्वित्रिचतुःपंचेद्रियजीवंगळ सामान्ययुतराशिप्रमाणमसंख्यातदिनपहृतप्रतरांगुलदिनपहृतजगत्प्रतरप्रमितमक्कु ४ मिल्लिद्वींद्रियराशिप्रमाणमेल्लवरिंदमधिकमक्कुमदं नोडे त्रींद्रियंगळ १५ बादरैकेन्द्रियराशिप्रमाणं १३- १ तद्वहुभागः १३-८ सूक्ष्मैकेन्द्रियराशिप्रमाणं । अत्रासंख्यातलोकस्य संदृष्टिर्न वाङ्क: ९ । पुनः वादरैकेन्द्रियराशेरसंख्यातलोकभक्तकभागस्तत्पर्याप्तराशिः । १३- १ १ बहुभागस्तद पर्याप्त राशिः १३-। १ ६ अत्रासंख्यातलोकस्य संदृष्टिः सप्ताङ्कः । सूक्ष्मैकेन्द्रियराशेः संख्यातभक्तबहुभाग स्तत्पर्याप्तराशिः १३-1 ८।४ तदेकभागस्तंदपर्याप्त राशिः १३- ८।१ अत्र संख्यातस्य संदृष्टिः २० पश्चाङ्कः ॥१७७।। अथ त्रसजीवसंख्यां गाथात्रयेणाह द्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियजीवानां सामान्यराशिप्रमाणं असंख्यातभक्तप्रतराङ्गलेन भक्तं जगत्प्रतरप्रमितं पुनः बादर एकेन्द्रियोंकी राशिमें असंख्यात लोकका भाग देनेपर एक भाग बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंकी राशिका प्रमाण है और बहुभाग अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय राशिका प्रमाण है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंकी राशिमें संख्यातका भाग देनेपर बहुभाग सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंका प्रमाण है और एक-एक भाग सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंका प्रमाण है ॥१७७॥ आगे त्रसजीवोंको संख्या तीन गाथाओंसे कहते हैं दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवोंकी सामान्य राशिका प्रमाण असंख्यातसे भाजित प्रतरांगुलका भाग जगतप्रतरमें दो, जो प्रमाण आवे उतना है। इनमें २५ ३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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