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________________ २९२ गो० जीवकाण्डे इंतु भगवदहत्परमेश्वरचारुचरणारविंदद्वंद्ववंदनानंदितपुण्यपुंजायमानश्रीमद्रायराजगुरु मंडलाचार्यवयं महावादवादीश्वररायवादिपितामहसकलविद्वज्जनचक्रर्वात्तश्रीमदभयसूरुिसिद्धान्तचक्रवत्ति श्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट्टं श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसार कर्नाटवृत्तिजीवतत्त्वप्रदीपिकयोळु जीवकांडविंशतिप्ररूपणंगळोळु षष्ठगतिमार्गणाधिकारं प्ररूपितमायतु । ५ संख्येयभागमात्रे ४ । ६५ = । ८१ । १० युक्ते सति सर्वसामान्यदेवराशिर्भवति । ४ । ६५ = १ ॥१६३॥ विशेषार्थ-ज्योतिष्क देवोंकी राशिसे विशेष अधिक सामान्य देवराशि है। उस विशेष अधिकका प्रमाण इस प्रकार है-ज्योतिष्क देवराशिके संख्यातवें भाग व्यन्तरदेवोंकी राशि, असंख्यात श्रेणीमात्र भवनवासी देवोंकी राशि, और असंख्यात श्रेणी मात्र वैमानिक देवोंकी राशि, इन्हें ज्योतिष्क देवोंकी राशिमें जोड़नेसे सामान्य देवराशिका प्रमाण १० होता है ।।१६३।। इस प्रकार आचार्य नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहको भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अमयनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमलरचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक माषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें जीवकाण्डकी बीस प्ररूपणाओंमें-से गति प्ररूपणा नामक छठा महा अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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