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________________ ५ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका २९१ इल्लिदत्तलु सानत्कुमारमाहेंद्रयुगलं मोदल्गोंडु शतारसहस्रारथुगलावसानमादग्दुं कल्पयुगलंगळोळु देवर्कळु यथाक्रमदिदं निजैकादशमूलदिदं नवममूलदिदं सप्तममूदिदं पंचममूलदिदं चतुर्थमूलदिदं भागिसल्पट्ट जगच्छ्रेणिप्रमितरप्परु । मत्तमिल्लिदं मेलानतादिकल्पयुगलदोळं अवेयकाधस्तनमध्यमोपरिमत्रयदोळमनुदिशविमानंगळोळं नाल्कनुत्तरविमानंगळोळं देवक्के प्रत्येक पल्यासंख्येयभागप्रमितरप्पर । संदृष्टि -1-1-1-1-।प।प।प।प।प।प।प ११।९।७।५।४1 darata vatalab तिगुणा सत्तगुणा वा सव्वट्ठा माणुसीपमाणादो। सामण्णदेवरासी जोइसियादो विसेसहिया ॥१६३।। त्रिगुणाः सप्तगुणा वा सह्या मानुषीप्रमाणतः । सामान्यदेवराशियॊतिषिकात् विशेषाधिकः। सर्वार्थसिद्धिजरप्पहमिंद्ररु मनुष्यरस्त्रीयर संख्येयं नोडलु त्रिगुणमप्परु । अथवा आचार्यांतराभिप्रादिदं सप्तगणरुमप्पर ४२=४२=४२=३।३।७ भावनव्यन्तरकल्पजदेवक्केळ कूडिद साधिकव्यंतरराशियं ज्योतिष्कराशियोळु संख्यातैकभागमं =१ . कडिदोर्ड ४६५-८१। सर्वसामान्यदेवराशियक्कुं ॥ संदृष्टि =७ ४।६५७ १० । तत उपरि सनत्कुमारमाहेन्द्रयुगलादारभ्य शतारसहस्रारयुगलावसानपञ्चकल्पयुगलेषु देवाः यथाक्रमं १५ निजैकादशमूलेन नवममूलेन सप्तममूलेन पञ्चममूलेन चतुर्थमूलेन भाजितजगच्छ्रेणिप्रमिता भवन्ति । ११ । ९। ७ । ५ । ४ पुनः तत उपरि आनतादिकल्पयुगलद्वये अधस्तनमध्यमोपरिमग्रंवेयकत्रये अनुदिशविमानेषु चतुरनुत्तरविमानेषु च देवाः प्रत्येक पल्यासंख्येयभागप्रमिता भवन्ति प ॥१६२।। सर्वार्थसिद्धिजाहमिन्द्राः मनुष्यस्त्रीसंख्यातः त्रिगुणा भवन्ति । अथवा आचार्यान्तराभिप्रायेण सप्तगुणा भवन्ति ४२ = ४२ =४२ । ३ । ७ । ज्योतिष्कराशिमध्ये भावनकल्पवासिदेवसाधिकव्यन्तरराशौ २० इससे ऊपर सनत्कुमार माहेन्द्र युगलसे लेकर शतार सहस्रारयुगल पर्यन्त पाँच कल्प युगलोंमें क्रमसे जगतश्रेणीके ग्यारहवें वर्गमूलसे, नवे वर्गमूलसे, सातवें वर्गमूलसे, पाँचवें वर्गमूलसे, और चतुर्थवर्गमूलसे जगतश्रेणीमें भाग देनेपर जो लब्ध आवे, उतना परिमाण होता है। उससे ऊपर आनत आदि दो कल्पयुगलोंमें, अधोवेयक, मध्यमप्रैवेचक और उपरिम प्रैवेयकोंमें, अनुदिश विमानोंमें और चार अनुसरविमानोंमें से प्रत्येकमें देव पल्यके २५ असंख्यातवें भाग हैं ॥१६२॥ सर्वार्थसिद्धिके अहमिन्द्रोंका प्रमाण मनुष्यस्त्रियोंकी संख्यासे तिगुणा है । अथवा अन्य आचार्यके अभिप्रायसे सात गुणा है। ज्योतिष्क देवोंकी राशिमें भवनवासी और कल्पवासी देवोंसे साधिक व्यन्तर देवोंकी राशिको, जो कि ज्योतिषीदेवोंके संख्यातवें भाग हैं, जोड़नेपर सामान्य देशराशिका प्रमाण होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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