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________________ २९० गो० जीवकाण्डे मूनूरु योजनंगळ कृिियदंमुमिन्नूररय्वत्तारंगुलंगळं कृति यदमुं भागिसल्पट्ट जगत्प्रतरे यथासंख्यं व्यंतरपरिमाणमुं ज्योतिष्कप्रमाणमुमप्पुवु । संदृष्टि व्यंतररु = ४।६५ = ८१।१० ज्योतिष्करु ४६५ = घण अंगुलपढमपदं तदियपदं सेढिसंगुणं कमसो । भवणे सोहम्मदुगे देवाणं होदि परिमाणं ॥१६॥ घनांगुलप्रथमपदं तृतीयपदं श्रेणिसंगुणं क्रमशः । भवने सौधर्मद्विके देवानां भवति परिमाणं। श्रेणिय गुणियिसिद घनांगुलप्रथमवर्गमूलमुं तृतीयवर्गमूलमुं यथाक्रमदिदं भवंगळोळं सौधम्मंद्वयदोळं देवर्कळ प्रमाणमक्कुं। संदृष्टि भावनरु-१ सौधर्मद्वयदोळु-३। १० तत्तो एगारणवसगपणचउणियमूल भाजिदा सेढी । पल्लासंखेज्जदिमा पत्तेयं आणदादिसुरा ॥१६२।। तत एकादशनवमसप्तमपंचमचतुर्थनिजमूलभाजिता श्रेणी। पल्यासंख्येयभागाः प्रत्येकमानतादिसुराः। त्रिशतयोजनानां कृत्या षट्पञ्चाशदुत्तरद्विशताङ्गुलानां कृत्या च भाजितौ जगत्प्रतरौ यथासंख्यं १५ व्यन्तरप्रमाणं ज्योतिष्कप्रमाणं च भवति। संदृष्टिः व्यन्तराः ४। ६५ = । ८१ । १० ज्योतिष्काः ४। ६५ = ॥१६॥ श्रेणीगुणितघनाङ्गुलप्रथमवर्गमूलं श्रेणिगुणितघनाङ्गुलतृतीयवर्गमूलं च यथाक्रमं भवनेषु सौधर्मद्वये च देवानां प्रमाणं भवति । संदृष्टिः-भावनाः -१ । सौधर्मद्वयजाः -३ ॥१६१॥ तीन सौ योजनके वर्गका भाग जगत्प्रतरको देनेसे जो परिमाण हो, उतना व्यन्तरोंका २० प्रमाण है। और दो सौ छप्पन अंगुलके वर्गका भाग जगतप्रतरमें देनेसे जो परिमाण आवे, उतना ज्योतिष्कदेवोंका प्रमाण होता है। विशेषार्थ-तीन सौ योजन लम्बा, तीन सौ योजन चौड़ा और एक प्रदेश ऊँचा क्षेत्रमें जितने आकाशके प्रदेश हों उनका भाग जगतप्रतरमें देनेसे व्यन्तर देवोंका प्रमाण आता है। सो उक्त क्षेत्रके प्रतरांगुल पैंसठ हजार पाँच सौ छत्तीससे गुणित इक्यासी हजार कोटि.प्रमाण २५ होते हैं । यही जगत्प्रतरका भागहार है। तथा ज्योतिष्क देवोंकी संख्या लानेके लिए दो सौ छप्पन अंगुल प्रमाण क्षेत्रके प्रतरांगुल पैंसठ हजार पाँच सौ छत्तीस होते हैं,वही जगत्प्रतरका भागहार है ।।१६०।। ___ धनांगुलके प्रथम वर्गमूलसे जगतश्रेणीको गुणा करनेपर जो परिमाण हो,उतना भवन वासी देवोंका परिमाण है । तथा घनांगुलके तृतीय वर्गमूलसे जगतश्रेणीको गुणा करनेपर जो ३० परिमाण हो, उतना सौधर्म और ईशान स्वर्गके देवोंका परिमाण है ॥१६१॥ १. भवतः ब। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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