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________________ २८४ गो० जीवकाण्डे जगच्छ्रेणियं तोरि एनितना गुणाकारदोल कळेयल्बक्कुमेंदु त्रैराशिकद बंद लब्धं साधिकैकद्वादश भागमं १ कळे वेदेनिते बुवत्थं । १२ अनंतरं तिर्यग्जीवसंख्येयं पेळ्वातैनेरडुगाथासूत्रंगळिदं पेदपरु | संसारी पंचक्खा तप्पुण्णा तिगदिहीणया कमसो । सामण्णा पंचिंदी पंचिदियपुण्ण तेरिच्छा || १५५ ।। संसारिणः पंचाक्षास्तत्पूर्णास्त्रिजगतिहीनकाः क्रमशः । सामान्याः पंचेंद्रियाः पंचेद्रियपूर्णास्तैरश्चाः । नारकमनुष्यदेवराशित्रयविहीनसर्व्वसंसारिराशियदु तिर्य्यग्गतियो सामान्यतिय्यं चराशिप्रमाणमक्कुं १३ = तद्गतित्रयराशिहीनमप्प सामान्यपंचेंद्रिय राशियतु तिर्य्यग्गतियो पंचेंद्रिय१० राशियक्कु = १८३६ तद्‌गतित्रयपर्य्याप्त राशिही नसामान्यपंचेंद्रियपर्याप्त राशियदु तिर्य्यग्गतियोळ ४/४/६५६१ Ee मूलभक्तसाधिकश्रेण्यपनयने गुणकारे कियदपनोयते ? इति लब्धे साधिकैकद्वादशभागं १ अपनयेदित्यर्थः ॥ १५४ ॥ अथ तिर्यग्जीवसंख्यां गाथाद्वयेन आह १२ नारकमनुष्यदेवराशित्रयविहीनसर्व संसारिराशिरेव तिर्यग्गती सामान्यतिर्यगु राशिप्रमाणं भवति । १३ । तद्गतित्रयराशिविहीनः सामान्यपञ्चेन्द्रियराशिरेव तिर्यग्गतो पञ्चेन्द्रियराशिः स्यात् । = ५८३६ ४ । ४ । ६५६१ a= १५ श्रेणीके बारहवें वर्गमूलसे भाजित जगतश्रेणी है । सो फलराशिसे इच्छाराशिको गुणा करके प्रमाण शिका भाग देनेपर जगतश्रेणीके वर्गमूलका साधिक एकका बारहवाँ भाग लब्ध आया । इसे घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलमें से घटाकर जो शेष रहे, उससे जगतश्रेणीको गुणा करनेपर प्रथम धर्मा पृथिवीके नारकियोंका प्रमाण आता है ॥ १५४ ॥ विशेषार्थ - तीसरी आदि सब पृथिवियोंके नारकी दूसरी पृथिवीके नारकियोंके २० असंख्यातवें भाग मात्र ही हैं, क्योंकि उनका भागहार अधिक होनेसे लब्ध कम आता है । इसलिए दूसरी पृथ्वीसे लेकर सातवीं पृथ्वी तकके नारकियोंकी संख्या द्वितीय पृथिवीके नारकियों से कुछ अधिक कही है। इसे सर्व नरक राशिमें से घटानेपर प्रथम नरकके नारकियोंकी संख्या आती है। इस घटानेको अंकसंदृष्टिसे इस प्रकार जानना । गुण्यराशि २५६ और गुणाकार चार है । यदि २५६ कम करनेके लिए गुणाकार चारमें से एक घटाया जाता है, तो २५ कम करने के लिए कितना घटाना चाहिए । यहाँ फलराशिसे इच्छा राशिको गुणा करके प्रमाण शिसे भाग देने पर आता है। इसे गुणाकार ४ में से घटानेपर आता है। इसे गुण्य राशि २५६ से गुणा करनेपर ९६० लब्ध आता है। इसी तरह अर्थसंदृष्टिसे जानना ॥ १५४ ॥ आगे दो गाथाओंसे तियंचगति में जीवोंकी संख्या कहते हैं संसारी जीवों की राशि में से नारकी, मनुष्य और देवोंकी राशि घटानेपर तियंचगतिमें ३० सामान्य तियंचोंकी राशिका प्रमाण होता है। आगे इन्द्रियमार्गणा में सामान्य पंचेन्द्रिय जीवों की राशिका प्रमाण कहेंगे । उसमें से नारकी, मनुष्य और देव, इन तीन गतिके जीवों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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