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________________ पंचेंद्रियपर्याप्त राशिपक्कु । =५८६४ ४४६५६१ ५ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका छस्सदजोयणकदिहिदजगपदरं जोणिणीण परिमाणं । पुणूणा पंचक्खा तिरिय अपज्जत परिसंखा ॥ १५६॥ तद्गतित्रयपर्याप्त राशिहीनः स्यात् । = ५८६४ ।। १५५ ।। ४ । ४ । ६५६१ ५ षट्शतयोजन कृतिहृत जगत्प्रतरो योनिमतीनां परिमाणं । पूर्णोनाः पंचाक्षास्तिर्य्यगपर्याप्त परिसंख्या | श्रशतयोजनंगेळ कृतियदं भागिसल्पट्ट जगत्प्रतरप्रमाणं तिर्य्यग्गतियोळु योनिमतिगळप्प द्रव्यस्त्रीयर प्रमाणमक्कुं ४ । ६५ = ८१|४|१० तिर्य्यक पंचेंद्रियपर्य्याप्त राशिहीनतिर्य्यक्पंचेंद्रियराशियदु तिर्य्यगपर्य्याप्तपंचेंद्रिय राशिप्रमाणमक्कुं =५८३६५८६४ । ५= ४ । ४ । ६५६१ a E सामान्यपर्याप्तपञ्चेन्द्रियराशिरेव Jain Education International तिर्यग्गतौ २८५ षट्शतयोजनानां कृत्या भक्तजगत्प्रतरप्रमाणं तिर्यग्गतौ योनिमतीनां द्रव्यस्त्रीणां प्रमाणं ० भवति । ४ । ६५ = | ८१ । ४ । १० तिर्यक्पंचेन्द्रियपर्याप्त राशिही नतिर्यक्पंचेन्द्रियराशिरेव तिर्यगपर्याप्तपंचे पर्याप्तपञ्चेन्द्रियराशिः राशि घटानेपर जो शेष रहे, उतनी तियंच पंचेन्द्रिय जीवोंको संख्या है । तथा सामान्य पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंकी राशिमें से उक्त तीन गतिके पर्याप्तकों की राशि घटानेपर तिर्यंचगति में पर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवोंकी राशि होती है ।। १५५ ॥ १५ छह सौ योजन वर्गका भाग जगत्प्रतर में देनेसे जो प्रमाण होता है, उतना तिर्यंचगति में योनिमती अर्थात् द्रव्यस्त्रियोंका प्रमाण होता है । तथा पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके प्रमाणमें पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंचोंका प्रमाण घटानेपर जो शेष रहे, वह अपर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंका प्रमाण है । १. इतो अग्रे-‘क' प्रतौ- = ९ ई संदृष्टिय हारंगळे तादुदै दोर्ड षट्छत योजनंगळ कृतियं ६०० योजनदंडंगळिंद ६०० विशेषार्थ -- छह सौ योजनके वर्गके अंगुल पैंसठ हजार पाँच सौ छत्तीससे तीन लाख चौबीस हजार करोड़ को गुणा करनेपर जो प्रमाण हो, उतने हैं । इसके प्रदेश संख्यात प्रतगुलमात्र होते हैं । यही जगत्प्रतरका भागहार है ।। १५६ || २० वग्र्गात्मकंगळिदं ८००० गुणिसि मत्तवं एकदंडांगुलंगळिद वर्गरूपं गळिद ९६ गुणिसुवल्लि दशशून्यं ८००० ९६ गळि बेरिरिसिबे आररि ९६६ अपवत्तिसलिनिक्कु For Private & Personal Use Only १६ । ६ एंटने रडरिनपर्वात्तसि ४ । २ १६ । ६ ४।२ ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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