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________________ इंतु भगवदर्हत्परमेश्वर चारुचरणारविंदद्वंद्ववंदनानंदितपुण्यपुंजायमान श्रीमद्रायराजगुरुमंडलाचार्य्यं महावादवादीश्वर रायवादिपितामह सकलविद्वज्जनचक्रवत श्रीमदभयसूरिसिद्धांत५ चक्रवत्त श्रीपादपंकजरजो रंजितललाटपट्टे श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्पगोम्मटसारकर्णाट वृत्तिजीवतत्त्वप्रदीपिकेोळु जीवकांडविंशतिप्ररूपणेगळोळु पंचमसंज्ञाप्रकरणाधिकारं निरूपितमाय्तु । २७२ गो० जीवकाण्डे भावः' एंडु प्रमाद रहितरप्पऽप्रमत्ताद्युपरितनगुणस्थानवत्तगको संभविसदु । शेषसंज्ञे तत्कारणकर्मोवयास्तित्वविवमुपचारदिवसुंटुलिदंते तत्कार्य प्रमादरहित रोळिल्ल । १५ १० है । इस प्रकार प्रमादरहित संयमियों में पहली संज्ञा नहीं है । शेष संज्ञाएँ उनके कारण कर्मोंके उदयका अस्तित्व होनेसे उपचारसे ही हैं, उनका कार्य वहाँ नहीं पाया जाता अर्थात् उक्त आहार आदि चारों संज्ञाएँ मिथ्यादृष्टिसे लेकर प्रमत्तगुणस्थानपर्यन्त होती हैं ॥ १३९ ॥ २० शेषसंज्ञाः तत्कारणकर्मोदयास्तित्वेन उपचारेणैव सन्ति । न च तत्कार्यं प्रमादरहितेष्वस्ति ॥ १३९ ॥ इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्रविरचितायां गोम्मटसारापरनामधेय पञ्चसंग्रहवृत्तौ जीवतत्त्वप्रदीपिकाख्यायां जीवकाण्डे विशतिप्ररूपणासु संज्ञाप्ररूपणानाम पञ्चमोऽधिकारः ॥ ५ ॥ इस प्रकार आचार्य नेमिचन्द्र बिरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अमयनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमलरचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें जीवकाण्डकी बीस प्ररूपणाओं में से संज्ञा प्ररूपणा नामक पाँचवाँ महा-अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥ ५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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