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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका २६३ दृष्टिगळं सासादनरुमागमाविरोधमेतप्पुदंते पुटुवडं। सासादनसम्यग्दृष्टिगळु नरकम पुगरप्पुरिदं समस्तनरकभूमिजरप्प नारकापूर्णरोळ सासादनरिल्ल ॥ इंतु भगवदर्हत्परमेश्वरचारुचरणारविंदद्वंद्ववंदनानंदितपुण्यपुंजायमान श्रीमद्रायराजगुरु. मंडलाचार्य्यवर्यमहावादवादीश्वररायवादिपितामह - सकलविद्वज्जनचक्रवत्ति - श्रीमदभयसूरिसिद्धांतचक्रवत्ति श्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट्टे - श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसार । कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिकयोलु जीवकांड विंशतिप्ररूपणंगळोळु तृतीयपर्याप्तिप्ररूपणाधिकारं प्रतिपादितमायतु। सप्तपृथ्वीनारकनिवृत्यपर्याप्तके सासादनसम्यग्दृष्टिास्ति तस्य नरके गमनाभावात् । तत्रोत्सन्नस्य तु तस्मिन् काले सासादनत्वसंभवाभावाच्च ।।१२८।। इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्रविरचितायां गोम्मटसारापरनामपञ्चसंग्रहवृत्तौ जीवतत्त्वप्रदीपिकाख्यायां जीवकाण्डे विंशतिप्ररूपणासु पर्याप्तिप्ररूपणानाम तृतीयोऽधिकारः ।।।। १५ सासादनगुणस्थान नहीं होता। क्योंकि सासादन सम्यग्दृष्टि मरकर नरकमें नहीं जाता। और वहाँ उत्पन्न हुए जीवके उस समय सासादनपना होना सम्भव नहीं है ॥१२८।। इस प्रकार आचार्य नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु भूमण्डलाचार्य महावादी श्री अमयनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटकवृत्ति जीवतत्त्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमलरचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें जीवकाण्डकी बीस प्ररूपणाओंमें-से पर्याप्ति प्ररूपणा नामक तृतीय महा-अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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