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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका २६१ लब्ध्यपर्याप्तकजीवं मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळे संभविसुगुमुलिदंतुपरिमगुणस्थानंगळोळेल्लियुमिल्ल। पर्याप्तकालदोळे सम्यक्त्वग्रहणसंभवमप्पुरिदं लब्ध्यपर्याप्तकस्थितिगपर्याप्तकालदोळ क्षयमप्पुरिदं लब्ध्यपर्याप्तकालदोळु सम्यक्त्वग्रहणाभावमप्पुरिदं सासादनादिगुणस्थानंगळु संभविसमप्पुरिदं मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळे लब्ध्यपर्याप्तकसंभवमें दितु सिद्धं । मत्तमा मिथ्या दृष्टिगुणस्थानदोळं सासादनगुणस्थानदोळमसंयतगुणस्थानदोळं प्रमत्तगुण- ५ स्थानदोळं निर्वत्यपर्याप्तजीवसंभवमकूमन्यगुणस्थानंगळोळिल्ल । · मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळमसंयतगणस्थानदोळं मतमागि जीवंगळु चतुर्गतिगळोळ्पुट्टिदवक्कं । सासादनगुणस्थानदाळु मृतमागि नरकगतिज्जितचतुर्गतिगळोल्पुट्टिदवक्कमुत्पन्नप्रथमसमयं मोदल्गोंडौदारिकवैक्रियिकशरीरपाप्तिकालं समयोनमन्नेवर-मन्नवरं तत्तच्छरीरनिवृत्तिगभावमप्पुरिदं तद्गुणस्थानंगळोळु निर्वृत्यपर्याप्तजीवंगळ संभविसुगुं। प्रमत्तसंयतगुणस्थानदोळु मत्ताहारकारीरपर्याप्तिकालं समयोनमन्नेवरमन्नेवरं तच्छरीरनिर्वृत्यभावमप्युरिदं प्रमत्तगुणस्थानदोळं जीववंतनप्पवस्थयोळं निर्वृत्यपर्याप्तकजीवं संभवि लब्ध्यपर्याप्त कजीवो मिथ्यादृष्टि गुणस्थाने एव संभवति नान्यगुणस्थाने सासादनत्वादिविशेषगुणानां तस्याभावात् । पुनः तत्रापि-मिथ्यादृष्टिगुणस्थानेऽपि द्वितीये-सासादनगुणस्थाने, चतुर्थे-असंयतगुणस्थाने, षष्ठेप्रमत्तगुणस्थाने चेति चतुर्ष गुणस्थानेषु अपि निर्वृत्यपर्याप्तकजीवः संभवति, नान्यगुणस्थानेषु । मिथ्यादृष्टय- १५ संयतगुणस्थानमृताश्चतुर्गतिषु, सासादनगुणस्थानमृता नरकवजितगतिषु चोत्पद्यन्ते, ततस्तद्गुणस्थानत्रये तदुत्पत्तिप्रथमसमयादारभ्य समयोनौदारिकवैक्रियिकशरीरपर्याप्तिकालपर्यन्तं तथा प्रमत्तसंयतस्य समयोनाहारक २० और कार्मणकाययोगका सद्भाव ही उनके उपचारसे अपर्याप्तपनेका कारण है, मुख्य रूपसे वे अपर्याप्त नहीं हैं। आगे लब्ध्यपर्याप्तक आदिके गुणस्थानोंके होने न होनेका कथन करते हैं लब्ध्यपर्याप्तक जीव मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें ही होता है, अन्य गुणस्थानमें नहीं होता, क्योंकि उसके सासादनत्व आदि विशेष गुणोंका अभाव है। पुनः तत्रापि अर्थात् मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें भी, तथा दूसरे सासादनगुणस्थानमें, चतुर्थ असंयतगुणस्थानमें, छठे प्रमत्तगुणस्थानमें, इन चार गुणस्थानोंमें निवृत्यपर्याप्तक जीव होता है। इनके सिवाय अन्य गुणस्थानों में नहीं होता। क्योंकि मिथ्यादृष्टि और असंयतगुणस्थानमें मरे जीव चारों गतियोंमें और २५ सासादन गुणस्थानमें मरे जीव नरकगतिके सिवाय शेष तीन गतियों में उत्पन्न होते हैं। इसलिए इन तीन गणस्थानों में जन्मके प्रथम समयसे लेकर एक समय कम औदारिक और वैक्रियिक शरीरकी शरीरपर्याप्तिके काल पर्यन्त, तथा प्रमत्तसंयतके एक समय कम आहारकशरीर पर्याप्तिके काल पर्यन्त निवृत्यपर्याप्तकपना सम्भव है। पुनः तत्रापि अर्थात् उक्त चारों गुणस्थानोंमें भी और शेष मिश्र, देश संयत, तथा अप्रमत्तसे लेकर सयोगकेवली पर्यन्त गुणस्थानों- ३० में पर्याप्तक जीव होता है,क्योंकि उसका कारण पर्याप्तिनामकर्म का उदय इन सब गुणस्थानोंमें होता है। विशेषार्थ-लब्ध्यपर्याप्तकोंमें सम्यमिथ्यात्वका उदय, दर्शनमोहका उपशम, देशसंयम और सकल संयम नहीं होता। तथा निर्वृत्यपर्याप्त कालमें सम्यमिथ्यात्वका उदय देशसंयम आदि नहीं होते । प्रश्न हो सकता है कि तब निर्वृत्यपर्याप्तक अवस्थामें प्रमत्तसंयम ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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