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________________ २४४ गो० जीवकाण्डे प्रमाणवरर्गस्थानंगळु पल्यवर्गशलाकाराशिमानंगळं नडेदु पुट्टिदा वर्गशलाकेंगळुमं पल्यवर्गशलाकंगळुमं कूडलु पल्यद्विगुणवर्गशलाकामानंगळप्पुवु । अथवा "गुणयारद्धच्छेदा" 'एंबिदु मोदलादुर्दारदं सूच्यंगुलार्द्धच्छेदंगळर्द्धच्छेदंगळे वर्गशलाकेगळप्पुरिदं गुणकाराद्धच्छेदंगळु पल्यवर्गशलाकगळ्गुण्यदर्द्धच्छेदंगळं पल्यवर्गशलाकेगळा येरडुमं कूडलु पल्यशलाकाद्विगुणप्रमितं५ गप्पुवु । व २। प्रतरांगुलं द्विरूपवर्गधारियोळ्पुट्टिदुददक्के वर्गशलार्द्धच्छेदंगळु यथायोग्यधारिगळोळु पुट्टिवर्द्धच्छेदंगळे नितक्कुम दोड: वरगादुवरिमवग्गे दुगुणा दुगुणा हवंति अद्धच्छिदि। धारातयसंठाणे तिगुणा तिगुणा परदाणे ॥ -[ त्रि. सा. ७४ ] एंदु प्रतरांगुलं सूच्यंगुलोपरितनानन्तरवर्गराशियप्पुदरिनदरर्द्धच्छेदंगळु सूच्यंगुलार्द्धच्छेद१० गळं नोडल द्विगुणंगळप्पुववक्के संदृष्टि :-छे छे २। अथवा :--गुणयारद्धच्छेदेत्यादियिदं गुण्य गुणकाररूपदिनिई सूच्यंगुलंगळर्द्धच्छेदंगळं कूडुत्तिरलु तत्प्रमाणंगळप्पुर्व बुदथं । छे छे २ । वर्गशलाकगनितक्कुम दोडे वग्गसला रूवहिया सपदे इत्यादियिदं सूच्यंगुलानंतरवर्गमप्पुरिदं सूच्यंगुलवर्गशलार्कगळं नोडलोंदु रूपधिकमक्कुं व २। घनांगुलं द्विरूपघनधारियोळ्पुट्टिदुदपल्यस्योपरि स्वविरलनराश्यर्धच्छेदमात्रवर्गस्थानानि गत्वा उत्पद्विगुणपल्यवर्गशलाकामाव्यः । अथवा सूच्यङ्गुलार्धच्छेदराशौ गुणकारस्यार्धच्छेदेषु गुण्यस्यार्धच्छेदैर्युतेषु यल्लब्धं तावन्मायो भवन्ति व २। प्रतराङ्गलस्य द्विरूपवर्गधारोत्पन्नस्य वर्गशलाकार्धच्छेदाः यथायोग्यधारासु उत्पद्यन्ते । तत्रार्धच्छेदाः 'वग्गादुवरिमवग्गो दुगुणा दुगुणेति' सूच्यङ्गुलार्धच्छेदेभ्यो द्विगुणाः । अथवा गुण्यगुणकारयोः सूच्यङ्गुलयोरर्धच्छेदयुतिमात्रा भवन्ति छे छे २ । तद्वर्गशलाकास्तु रूवहियेति सूच्यङ्गुलानन्तरवर्गराशित्वात् तद्वर्गशलाकाम्यो रूपाधिकमायो भवन्ति व २। घनाङ्गलस्य द्विरूपधनधारोत्पन्नस्य अर्धच्छेदाः अन्यत्रोत्पन्नाः 'तिगुणा तिगृणा परठ्ठाणेति २० गुणा करनेपर जो लब्ध प्राप्त हो, उतने ही सूच्यंगुलके अर्द्धच्छेद हैं। द्विरूपवर्गधारामें पल्यके ऊपर सूच्यंगुलकी विरलनराशि पल्यके अर्द्धच्छेद, उन अर्द्धच्छेदोंके जितने अद्धच्छेद हैं उतने वर्गस्थान जानेपर सूच्यंगुल उत्पन्न होता है। इसलिए पल्यकी वर्गशलाकाके प्रमाणसे सूच्यगुलकी वर्गशलाका दुगनी होती हैं। अथवा सूच्यंगुलके अर्द्धच्छेदोंमें विरलनराशि पल्यके अर्द्धच्छेद, उनके जितने अर्धच्छेद हैं, उनमें देयराशि पल्य, उसके अर्द्धच्छेदोंके अर्धच्छेदोंको २५ जोड़नेपर सूच्यंगुलकी वर्गशलाका होती हैं। इस तरह पल्यकी वर्गशलाकासे दूनी सूच्यंगुलकी वर्गशलाका है। प्रतरांगुल द्विरूपवर्गधारामें आता है, अतः उसके वर्गशलाका और अर्धच्छेद यथायोग्य धाराओं में उत्पन्न होते हैं । 'वर्गसे ऊपरके वर्गस्थानके अर्धच्छेद दूने-दूने होते हैंइस नियमके अनुसार सूच्यंगुलसे दूने प्रतरांगुलके अर्द्धच्छेद होते हैं। अथवा गुण्य और गुणकारके अर्धच्छेदोंको जोड़नेपर उत्पन्न राशिके अर्धेच्छेद होते हैं। इसके अनुसार गुण्य सूच्यंगुलके अर्धच्छेदोंमें गुणकार सूच्यंगुलके अर्धच्छेद जोड़नेपर प्रतरांगुलके अर्धच्छेद होते हैं। तथा 'वर्गशलाका एक अधिक होती है। अतः सूच्यंगलके अनन्तर प्रतरांगलका स्थान है, इसलिए प्रतरांगुलकी वर्गशलाका सूच्यंगुलकी वर्गशलाकासे एक अधिक होती है। घनांगुल द्विरूपघनधारामें उत्पन्न होता है, इसलिए अन्य धारामें उत्पन्न होनेसे 'अन्य धारामें ऊपरके . १. म इत्यादियिदं सूच्यंगु० । २. म एंदु सू०। ३. तत्प्रमाणंगलेंबुदत्थं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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