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________________ २४५ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ददरर्द्धच्छेदंगळुमन्यत्र पुट्टिदुवु। अर्द्धच्छेदंगळेनितक्कुम दोडे तिगुणा तिगुणा परट्ठाणे एंदु सूर्यगुलार्द्धच्छेदंगळं नोडलु त्रिगुणमप्पवु । छे छे ३ ॥ अथवा गुणयारद्धच्छेदेत्यादियिदं गुण्यगुणकाररूपदिनिई सूच्यंगुलं मूररलं प्रत्येकं सूच्यंगुलार्द्धच्छेदप्रमितंगळं मूरुमं छे छे १ कूडुत्तिरलु तत्प्रमाणाराशियक्कुम बुदत्थं । छे छे ३ ॥ वर्गशलाकेगळ वग्गसळा रूवहिया सपदे परसममित्यादियिदं द्विरूपवर्गधारियोळ्पुट्टिद सूच्यंगुलवार्गशलाकगळ समं घनाघनधारिगळ राशिगळ्ये ५ तत्सैवलियोळ समानंगळप्पुरदं सूच्यंगुलवर्गशलाकाप्रमितंगळप्पुवु अथवा 'राशिस्स अद्धच्छेदस्स अद्धिदवारा वा वग्गसलागा' एंदु घनांगुलाद्धच्छेदराशिय दलितशलाकाप्रमितंगलप्पुववा प्रमाणममखि गुणयारद्धच्छेदेत्यादि सूत्रदिदं द्विगुणपल्यवर्गशलाकाप्रमितंगलप्पुवु। व. २॥ जगच्छेणियुं द्विरूपधनधारियोपुट्टिदुददरद्ध छेदवर्गशलाकंगळुमन्यत्र पुट्टिदवु। अर्द्धच्छेदगळे नितप्पुर्व दोड विरलिज्जमाणरासि दिण्णस्सद्धच्छिदेहि संगुणिदे। ___अद्धच्छेदा होंति हु सव्वत्थुप्पण्णरासिस्स ॥ [ त्रि. सा. १०७ ] एंदु विरलनराशिपल्यालच्छेदासंख्यातैकभागमं छे। देयमप्प घनांगुलदद्धच्छेददिदं १० गणिसुत्तिरलु जगच्छ्रेणिगद्धगळप्पु । छे छे छे ३ वर्गशलाकेगर्छ । aaa सूच्यङ्गुलार्धच्छेदेभ्यस्त्रिगुणाः । अथवा गुण्यगुणकारसूच्यङ्गुलत्रयस्यार्धच्छेदानां छे छे १ यावन्ती युतिस्ता- १५ छे छे १ वन्मात्रा भवन्ति छे छे ३ । तद्वर्गशलाकास्तु परसमेति धनधारोत्पन्नघनाङ्गुलस्य द्विरूपवर्गधारोत्पन्नसूच्यङ्गुलप्रणिधी समत्पन्नत्वात सच्यङ्गलवर्गशलाकामाच्यो भवन्ति । जगच्छणे. द्विरूपघनधारोत्पन्नत्वादर्धच्छेदवर्गशलाका अन्यत्रोत्पद्यन्ते । ते अर्धच्छेदाः "विरलिज्जमाणरासि दिण्णस्सद्धच्छिदीहिं संगुणिदे लद्धच्छेदा होति ।" इति पल्यार्धच्छेदासंख्येयभागे छे घनाङ्गुलस्यार्धच्छेदैर्गुणिते लब्धमात्रा भवन्ति छे छे छे ३ । तद्वर्ग स्थानके तिगुने-तिगुने अर्धच्छेद होते हैं- इस नियमके अनुसार सूच्यंगुलके अर्धच्छेदोंसे तिगुने' २० धनांगुलके अधच्छेद होते हैं । अथवा सूच्यंगुलको तीन जगह रखकर परस्परमें गुणा करनेसें घनांगुल उत्पन्न होता है। अतः गुण्य और गुणकाररूप तीन सूच्यंगुलके अर्धच्छेदोंको जोड़नेसे घनांगुलके अर्धच्छेद होते हैं। तथा 'वर्गशलाका अन्य धारामें समान होती हैं। इस नियमके अनुसार द्विरूपवर्गधारामें जिस स्थानमें सूच्यंगुल उत्पन्न होता है, द्विरूपघनधारामें उसी स्थानमें घनांगुल उत्पन्न होता है, इसलिए जितनी वर्गशलाका सूच्यंगुलकी है उतनी ही २५ घनांगलकी है। जगतश्रेणी द्विरूपधनधारामें उत्पन्न है,अतः इसके अर्धच्छेद और वर्गशलाका अन्य धारामें उत्पन्न होते हैं। 'विरलनरूप राशिको देयराशिके अर्धच्छेदोंसे गुणा करनेपर लब्धराशिके अर्धच्छेद होते हैं । इस सूत्रनियमके अनुसार विरलनराशि पल्यके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भागको देयराशि धनांगुलके अर्धच्छेदोंसे गुणा करनेपर जो प्रमाण होता है, उतने जगतश्रेणीके अर्धच्छेद होते हैं। दुगुने जघन्य परीतासंख्यातका भाग अद्धापल्यकी ३० वर्गशलाकामें देनेपर जो प्रमाण आवे , उसमें घनांगुलकी वर्गशलाकाओंको जोड़नेपर जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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