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________________ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका २४३ सागरोपमराशि सर्वधारयोळपुट्टिदुदाराशियर्द्धच्छेदंगल मा धारयोळे पुट्टिदुववर प्रनाणं गुणयारद्धच्छेदा गुणिज्जमाणस्स अर्द्धच्छेदजुदा। लद्धस्सद्धच्छेदा अहियस्स छेदणा णत्थि ॥-[ त्रि. सा. १०५ ] एंदु पल्यक्के गुणकारभूत पत्तु कोटि कोटियर्द्धच्छेदंगळिंदधिकमाद पल्यार्द्धच्छेदप्रमितंगळप्पुवा सागरोपमं वर्गात्मकमल्लप्पुरिदं वर्गच्छेदंगल्पुट्टिसर्बु । सूच्यंगुलं द्विरूपवर्गधारियोळ ५ पुट्टिदुददरर्द्धच्छेदवर्गशलाकंगळु। उप्पज्जदि जो रासी विरलणदिज्जक्कमेण तस्सेत्थ । वगैस्सळद्धच्छेदा धारातिदएण जायते ॥-[ त्रि. सा. ७३ ] एंदु विरलनदेयक्रमदिनुत्पन्नराशिगळगे वर्गशलाकार्द्धच्छेदंगळु द्विरूपवर्गादि धारात्रयदोळु पुटुवु । मत्तेल्लि पुटुगुमे दडे सर्वधारियोळं यथायोग्यमप्पधारिगळोळं पुटुवुवु । १० अर्द्धच्छेदंगळे नितप्पुवेदोडे : विरळिज्जमाणरासि दिण्णस्सद्धच्छिदिहि संगुणिदे। अद्धच्छेदा होंति हु सव्वत्थुप्पण्णरासिस्स ॥-[त्रि. सा. १०७ ] विरलनराशियप्प पल्यार्द्धच्छेदराशियं देयमप्पपल्यार्द्धच्छेदंगाळवं गुणियिसुत्तिरलु तद्राशिगर्द्धच्छेदंगळक्कं । वर्गशलाकगळं "देयराशेरुपरि विरलनराश्यर्द्धच्छेदमात्राणि वर्गस्थानानि गत्वा १५ तद्राशिरुत्पद्यते" एंदु द्विरूपवर्गधारियोळु पल्यद मेले तत्र विरलनराशिपल्यार्द्धच्छेदमदरर्द्धच्छेद तेषामर्धच्छेदसंख्या वर्गशलाकासंख्या चोच्यते । तत्र तावदद्धापल्यस्य अर्धच्छेदसंख्या द्विरूपवर्गधारायां अद्धापल्यादधः असंख्यातवर्गस्थानान्यवतीर्य उत्पन्नराशिमात्रीयं, छे । तद्वर्गशलाकासंख्या तु ततोऽप्यधोसंख्यातवर्गस्थानान्यवतीर्य उत्पन्नराशिमात्रीयं ३ छ। सागरोपमस्य सर्वधारादितद्योग्यधारोत्पन्नस्यार्धच्छेदाः पल्याधच्छेदेषु गुणकारस्य दशकोटीकोटेरर्धच्छेदसंख्यातेनाधिकेषु लब्धमात्रा भवन्ति १ तद्वर्गशलाकास्तु तस्यावर्गा-२० त्मकत्वात् न घटन्ते । सूच्यगुलस्य द्विरूपवर्गधारोत्पन्नस्य विरलनदेयक्रमेण उत्पन्नत्वात् अर्धच्छेदवर्गशलाका द्विरूपवर्गधारादित्रयं विना शेषतद्योग्यधारासु उत्पद्यन्ते । ते अर्धच्छेदाः विरलनराशौ अद्धापल्याधच्छेदे देयस्य तत्पल्यस्यार्धच्छेदैर्गुणिते लब्धमात्रा भवन्ति छे छे । तद्वर्गशलाकास्तु सूच्यङ्गुलस्य द्विरूपवर्गधारायां ___ इस प्रकार आठ प्रकारके उपमा प्रमाणका कथन पूर्ण हुआ। अब इनके अर्धच्छेदों २५ और वर्गशलाकाओंकी संख्या कहते हैं । सो प्रथम अद्धापल्यके अर्धच्छेदोंकी संख्या द्विरूपवर्गधारामें अद्धापल्यसे नीचे असंख्यात वर्गस्थान उतरकर जो राशि होती है,उतनी है । तथा अद्धापल्यकी वर्गशलाकाओंकी संख्या उससे भी नीचे असंख्यात वर्गस्थान उतरकर जो राशि है, उतनी है । सागरोपमके अर्धच्छेद सर्वधारामें होते हैं। सो सागरोपमके अर्धच्छेद पल्यके अधच्छेदोंमें गुणाकार दस कोडाकोड़ीके संख्यात अर्द्धच्छेद जोड़नेपर जो प्रमाण हो, उतने हैं। ३० यतः सागरोपमराशि अवर्गात्मक है,इसलिए उसकी वर्गशलाका नहीं बनती। सूच्यंगुल द्विरूपवर्गधारामें उत्पन्न हआ है, अतः विरलन और देयके क्रमसे उत्पन्न होनेसे इसकी अधच्छेद और वर्गशलाका द्विरूपवर्गधारा आदि तीन धाराओंके बिना शेष अपने योग्य धाराओंमें पायी जाती हैं। विरलन राशि अद्धापल्यके अर्द्धच्छेदोंमें देयराशि अद्धापल्यके अर्धच्छेदोंसे १. म द्विरूपधारे। २. म वग्गसकलद्धच्छेद । ३. १०० ल ल १०००। ४१ =Daal Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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